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इंगलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ बोल्टन में भारतीय मूल के प्रोफेसर सुभाष आनंद की प्रभात खबर से बातचीत

लंबे व स्वस्थ जीवन की बहस विश्व स्तर पर चल रही है. सभी जीवन के बेहतर तरीके की खोज में है. मेडिकल साइंस में रोज नये-नये शोध भी हो रहे हैं. जीवन देने में उपकरणों का इस्तेमाल भी हो रहा है, लेकिन यह किसने संभव बना दिया है, इस पर ध्यान नहीं है. विकसित देशों […]

लंबे व स्वस्थ जीवन की बहस विश्व स्तर पर चल रही है. सभी जीवन के बेहतर तरीके की खोज में है. मेडिकल साइंस में रोज नये-नये शोध भी हो रहे हैं. जीवन देने में उपकरणों का इस्तेमाल भी हो रहा है, लेकिन यह किसने संभव बना दिया है, इस पर ध्यान नहीं है. विकसित देशों ने मेडिकल साइंस में हो रहे परिवर्तन को अच्छी तरह पहचान लिया है, लेकिन अभी भी हमारे देश में इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है. मेडिकल साइंस के परिवर्तन में हेल्थ केयर टेक्सटाइल का महत्वपूर्ण योगदान है. इसमें हमारा देश अभी शुरुआती स्तर पर है, लेकिन अगर देश में मेडिकल की सुविधाओं को बेहतर बनाना है, तो हेल्थ केयर टेक्सटाइल को सुगम बनाना होगा. हेल्थ केयर टेक्सटाइल क्या है? यह कैसे उपयोगी है? इस क्षेत्र के बारे में इंगलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ बोल्टन में भारतीय मूल के प्रोफेसर सुभाष आनंद से प्रभात खबर के लिए राजीव पांडेय ने बातचीत की. वह राजधानी में अयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे है. प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश.
हेल्थ केयर टेक्सटाइल है क्या. इसके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते हैं?
आज के युग में मेडिकल साइंस और टेक्सटाइल में परस्पर संबंध है. यूं कहें तो यह एक सिक्के के दो पहलू हैं. आज का इलाज उपकरण बेस हो गया है. गंभीर बीमारी में उपकरण का प्रयोग कर मनुष्य को नयी जिंदगी दी जा रही है, लेकिन ये उपकरण कैसे बनते हैं, कहां बनते हैं, यह किसी को पता नहीं है. आपको बता दूं उपकरण तैयार करने का काम बॉयो मेटेरियल का है, जिसे टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में तैयार किया जाता है. सरल तरीके से समझिये: उपकरण मटेरियल से तैयार होते हैं, जिसको बनाने का काम टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में किया जाता है. चिकित्सक प्रत्यारोपण करते हैं. उपकरण लगाते हैं, लेकिन उन्हें भी यह पता नहीं होता है कि ये उपकरण किस तरह तैयार किये गये हैं. किस चीज से बने हैं. चिकित्सकों को बस उपकरण लगाने में महारथ होती है.
हेल्थ केयर टेक्सटाइल के माध्यम से कौन-कौन से ऑर्गन तैयार किये जा सकते हैं?
हेल्थ केयर इंडस्ट्रीज में स्टेंट, आर्टरी, वेन, लंग्स सभी को कृतिम रूप से तैयार किया जाता है. टिश्यू इंजीनियरिंग का क्षेत्र है इसके लिए बन गया है. विंड पाइप, फूड पाइप भी कृतिम रूप से बनाये जा रहे हैं. मकई (कॉर्न) से नया टिशू तैयार कर आर्गन बना दिया जाता है. पॉली लैक्टिक एसिड से टिशू तैयार कर लिया जाता है. इसे स्टेम सेल भी कहा जा सकता है. यह कृतिम ऑर्गन सफल है और लंबे समय तक मनुष्य का साथ निभाते हैं. पहले यही ऑर्गन मृत व्यक्ति के दान पर संभव होते थे, इसलिए लोगों का जान बचाना बहुत मुश्किल था. अगर पहले किसी को फूड पाइप की आवश्यकता थी तो मृत व्यक्ति से दान में इसे ले लिया जाता था. यह ज्यादा उपयोगी भी नहीं होता था. एक डीएनए नहीं होने के कारण प्रत्यारोपित किये गये व्यक्ति में यह ज्यादा दिन तक चल नहीं पाता था. एंटीबायोटिक का प्रयोग करने के बाद भी तीन से चार साल में वह अंग काम करना बंद कर देता था और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी. पर अब सब कुछ संभव हो गया है.
स्टेंट को भी टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में तैयार किया जाता है, कैसे?
हां हृदय में लगने वाले स्टेंट को टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में तैयार किया जाता है. स्टेंट को पॉलिस्टर और निटॉल से तैयार किया जाता है. हम लोगों ने इसको तैयार किया है. स्टेंट को तैयार करने के लिए पहले पॉलिस्टर से ग्राफ्टिंग की जाती है. इसके बाद निटॉल (मेटल) से इसकी इंबोडरिंग की जाती है. इससे यह सिकुड़ती नहीं है. आर्टरी के माध्यम से कार्डियेक सर्जन इस स्टेंट को ब्लॉकेज वाली आर्टरी में लगा देते हैं. यह आर्टरी में जाते ही फैल जाती है. आयोटिक हार्ट वाल्व भी टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में ही तैयार किया जाता है. इसको स्पेशलाइज्ड स्टेंट कहा जाता है.
जो स्टेंट आप लोग तैयार करते हैं उसकी कीमत क्या होगी?
स्टेंट की वास्तविक लागत इंगलैंड में 100 पाउंड होगी, यानी भारत में स्टेंट की कीमत 10,000 रुपये हो सकती है. अब भारत में इसके लिए अस्पताल व चिकित्सकों द्वारा क्या लिया जाता है यह मैं नहीं जानता. मैं एक वैज्ञानिक हूं, कंपनी व अस्पताल के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता. हमलोगों का काम शोध कर उपकरण तैयार करना है. स्टेंट को तैयार करने के बाद मेडिकेटेड बना दिया जाता है. उसका स्ट्रेलाइजेशन किया जाता है. इससे उनके अंदर के जर्म मर जाते हैं.
आपने अब तक क्या उपकरण तैयार किये हैं, जो आपके नाम से पेटेंट है?
मैंने अब तक सात उपकरण तैयार किये हैं, जो पेटेंट भी हैं. इसमें से एक उपकरण का निर्माण भिलवाड़ा ग्रुप राजस्थान द्वारा किया जा रहा है. यह मेडिकेटेड कुशन है. यह कुशन बेड सोर वाले मरीजों के लिए लाभकारी है. जो मरीज लंबे समय तक बेड पर रहते हैं उनके बिस्तर पर इस कुशन का इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे ब्लड सर्कुलेशन नियंत्रित होता है. मरीज को इससे बेड सोर होने की संभावना नहीं के बराबर होती है. सात पेटेंट में पीसो इलेक्ट्रिसिटी, पैडिंग, कट एंड स्लैश प्रूफ मटेरियल, कंप्रेशन गारमेंट एवं बॉडी आर्मर है. बॉडी आर्मर यानी बुलेट प्रूफ. यह ऐसा बुलेट फ्रूफ है जिसमें जब गोली लगती है तो मुड़ जाती है, छिटकती नहीं है. अन्य बुलेट फ्रूफ पर गोली लगने के बाद छिटक कर अन्य किसी को घायल कर देती है.
क्या भारत में प्रत्यारोपण के उपकरण तैयार नहीं किये जा सकते हैं?
भारत में मेक इन डंडिया की बात की जा रही है. आयात करने के बजाय भारत में ही वस्तुओं के निर्माण की बात हो रही है. ऐसे में सभी प्रत्यारोपण के उपकरण भारत में भी बनाये जा सकते हैं. सरकार ने इसकी पहल भी की है. एम्स, आइआइटी दिल्ली व भारत सरकार के सहयोग से एक कार्यशाला का आयोजन पिछले साल छह दिसंबर को दिल्ली में किया गया था. इसमें देश में ही उपकरणों को तैयार करने पर चर्चा हुई थी. इंगलैंड में यूनिवर्सिटी को रिसर्च एवं डवलपमेंट से जोड़ कर रखा जाता है. इससे नये शोध की संभावना बनी रहती है. अगर यह भारत में भी होता तो नये-नये शोध होते.
एक व्यक्ति को स्वस्थ रहना है तो वह क्या करे ? आपके अनुभव क्या कहते हैं?
अगर शरीर को स्वस्थ रखना है तो रक्त संचार को सही रखना होगा. यह तभी संभव है जब आप व्यायाम करें. मैं मानता हूं कि अगर 30 मिनट प्रतिदिन तेजी से टहला जाये, तो स्वस्थ रहा जा सकत है. तेजी से चलते वक्त पैर का तलवा जमीन पर तेजी से टिकता है, इससे खून का प्रवाह तेजी से हृदय तक पहुंचता है. खून शुद्ध होता है, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है. जो व्यक्ति कंप्यूटर पर ज्यादा समय व्यतित करते हैं उनके लिए खतरे की घंटी हमेशा रहती है. उनका खून शुद्ध नहीं हो पाता है और समस्या बढ़नी शुरू हो जाती है.
शोध कार्य के लिए आपको क्या-क्या सम्मान मिला है?
हायर एजुकेशन एंड टेक्सटाइल में अच्छे कार्य को देखते हुए मुझे इंगलैंड में सम्मानित भी किया गया है. मेंबर ऑफ द आर्डर आॅफ द ब्रिटिश इंपावर (एमबीइ) के सम्मान से सम्मानि किया गया है. यह पुरस्कार वर्ष 2008 में चार्ल प्रिंस द्वारा दिया गया था.
प्रोफेसर सुभाष का परिचय
प्रोफेसर सुभाष आनंद बोल्डन यूनिवर्सिटी यूके में इंस्टीट्यूट आॅफ मेटेरियल रिसर्च एंड इनोवेशन में प्रोफेसर हैं. उन्होंने टेक्सटाइल में बीएससी, एमएससी, पीएचडी मैनचेस्टर इंगलैंड से किया है. वर्ष 1973 से उन्होंने यूनिवर्सिटी आॅफ बोल्टन में पढ़ाना शुरू किया. मेडिकल साइंस में रिसर्च का कार्य किया. उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता, भाई-भाभी और चाचा-चाची सभी डाॅक्टर हैं.

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