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बातचीत: मेडिका अस्पताल के हड्डी रोग प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ विवेक शर्मा ने कहा, एक माह की फेलोशिप में ही बन जाते हैं विशेषज्ञ
रांची: घुटना व कूल्हा प्रत्यारोपण काे हौवा बना दिया गया है, जबकि ऐसा नहीं है. भय के कारण लोग प्रत्याराेपण कराने से हिचकिचाते हैं. ऐसा ट्रेंड डॉक्टरों के अभाव के कारण होता है. कुछ चिकित्सक खुद को ट्रेंड तो बताते हैं, लेकिन उनके पास अनुभव की कमी है. हड्डी के चिकित्सक एक माह की फेलोशिप […]
रांची: घुटना व कूल्हा प्रत्यारोपण काे हौवा बना दिया गया है, जबकि ऐसा नहीं है. भय के कारण लोग प्रत्याराेपण कराने से हिचकिचाते हैं. ऐसा ट्रेंड डॉक्टरों के अभाव के कारण होता है. कुछ चिकित्सक खुद को ट्रेंड तो बताते हैं, लेकिन उनके पास अनुभव की कमी है. हड्डी के चिकित्सक एक माह की फेलोशिप करने विदेश जाते हैं और वहां से लौट कर खुद को विशेषज्ञ कहने लगते हैं. उक्त बातें मेडिका सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ विवेक शर्मा ने कहीं. प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश.
हड्डी के अधिकतर चिकित्सक प्रत्यारोपण विशेषज्ञ बन गये हैं. क्या ट्रेंड चिकित्सकों की संख्या बढ़ रही है?
यहां के ट्रेंड चिकित्सक वैसे लोग बन गये हैं, जिन्होंने विदेश में एक माह की फेलोशिप ली है. ऐसे लोग भ्रमण करने विदेश गये और वहां से फेलोशिप ले आये. वह वहां सप्ताह में दो से तीन दिन चिकित्सकों को ऑपरेशन करते देखते हैं. उन्हें मरीज का प्रत्यारोपण करने का मौका भी नहीं मिलता. इसके बावजूद यहां आते ही अपनी डिग्री में विशेषज्ञ लिख देते हैं. असल में वह आॅब्जर्बरशिप होता है. यही कारण है कि प्रत्यारोपण करने के बाद ज्यादातर केस में सफलता नहीं मिलती. मैंने एक साल तक प्रत्यारोपण विशेषज्ञों के साथ समय गुजारा है. मरीजों का खुद ऑपरेशन किया है. सिंगापुर के अस्पताल में एक साल तक काम किया है. छह माह नार्थ कोरिया में सेवा दी है. आज हर हड्डी के सर्जन (एमएस) प्रत्यारोपण करते हैं.
विदेश में हड्डी चिकित्सक प्रत्यारोपण विशेषज्ञ कब लिखते हैं?
विदेशों में कठिन परिश्रम के बाद चिकित्सक अपनी डिग्री के बाद विशेषज्ञ लिखते हैं. विदेश में चिकित्सकों को पहले मुर्दा व्यक्ति पर तकनीक सिखाई जाती है. इसके बाद विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में प्रत्यारोपण का काम सिखाया जाता है. इसके बाद जब वह ट्रेंड हो जाते हैं, तो मरीजों का प्रत्यारोपण शुरू करते हैं. इसके बाद जब चिकित्सक घुटने या कूल्हे का रिप्लेसमेंट करते हैं तो उसमें पूरी तरह सफलता मिलती है. सक्सेस रेट 95 प्रतिशत हो जाता है. यानी 20 से 22 साल तक मरीज को दिक्कत नहीं होती है.
आजकल कमर दर्द की समस्या से हर कोई पीड़ित है, क्या इसमें सर्जरी ही जरूरी है?
कमर दर्द की समस्या हमेशा स्पाइन के कारण नहीं होती है. यह कूल्हे व घुटने की वजह से भी हो सकता है. एंकल में दर्द के कारण भी कमर दर्द की समस्या होती है. इसमें सर्जरी या लंबी दवा देने की आवश्यकता नहीं होती है. फिजियोथेरेपी से समस्या लगभग दूर हो जाती है, लेकिन यहां इसका ट्रेंड ही नहीं है. हल्की सी बात में जांच व दवा शुरू हो जाती है. मेरे पास अगर कोई ऐसी समस्या ले कर आता है, तो मैं उसको फिजियोथेरेपी की सलाह ही देता हूं. स्पाइन के कारण पैर व शरीर में झनझनाहट होता है. आम आदमी को हड्डी की समस्या से बचने के लिए अपने पोश्चर पर ध्यान देना चाहिए. हिल वाले जूते व चप्पल इस्तेमाल नहीं करे. यह समस्या भी फिजियोथेरेपी से दूर हो जाती है.
प्रत्यारोपण में विदेशी सामानों का इस्तेमाल किया जाता है, क्या भारत में प्रत्यारोपण के सामान नहीं बनते?
विदेशी कंपनी के प्रत्यारोपण के सामान बेहतर तो होते ही हैं. स्मिथ एंड नैफ्यू, सिंथिस व जिमर के सामान तो अच्छे होते ही हैं. इसको काफी टेस्ट के बाद बाजार में उतारा जाता है. टैक्स के कारण भारत में ये सामान महंगे हो जाते हैं. वैसे भारतीय कंपनियों ने भी प्रत्यारोपण का सामान बनाना शुरू कर दिया है. सुश्रत व पितकर कंपनी ट्राॅमा के समान बनाने लगी है, लेकिन यह उतनी परफेक्ट नहीं है. विदेशी कंपनी से लगभग 40 प्रतिशत कम
सक्सेस रेट है.
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