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छत्तीसगढ़ की तर्ज पर चलेगी गज परियोजना

रांची : वन, पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन विभाग ने छत्तीसगढ़ की तर्ज पर झारखंड में गज परियोजना शुरू करने का निर्णय लिया है. इसके तहत हाथियों के सदियों पुराने अावागमन मार्ग को फिर से विकसित किया जायेगा. झारखंड अपनी सीमा के अंदर इनके माइग्रेशन रूट व कॉरिडोर को स्थानीय लोगों की मदद से विकसित करेगा. […]

रांची : वन, पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन विभाग ने छत्तीसगढ़ की तर्ज पर झारखंड में गज परियोजना शुरू करने का निर्णय लिया है. इसके तहत हाथियों के सदियों पुराने अावागमन मार्ग को फिर से विकसित किया जायेगा. झारखंड अपनी सीमा के अंदर इनके माइग्रेशन रूट व कॉरिडोर को स्थानीय लोगों की मदद से विकसित करेगा.
वन्य प्राणियों व मनुष्य के बीच बढ़ते टकराव से निपटने तथा इससे होनेवाले जान-माल के नुकसान को समाप्त या कम करने के उद्देश्य से यह परियोजना शुरू होगी. इसके तहत हाथियों के निवास स्थल तथा आवागमन मार्ग के इलाके में अवस्थित गांवों में समितियां बनेगी, जिन्हें हाथियों के झुंड से बगैर हिंसा के निपटने के लिए प्रशिक्षण व संसाधन भी दिये जायेंगे.
शुक्रवार को विभाग की अोर से सूचना भवन में आयोजित प्रेस वार्ता में इस बात की जानकारी दी गयी. विभागीय सचिव सुखदेव सिंह, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) बीसी निगम तथा पीसीसीएफ (वन्य प्राणी) प्रदीप कुमार की अोर से बताया गया कि वर्ष 2010 में झारखंड में जहां हाथियों की कुल संख्या 624 थी, वहीं अब यह 688 हो गयी है.
उधर, पलामू में व्याघ्र परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर) को अौर बेहतर तरीके से संचालित करने की पहल भी हो रही है. वर्ष 2010 की सैंपलिंग के आधार पर झारखंड में सिर्फ चार बाघ होने संबंधी सर्वे रिपोर्ट पर वन विभाग पूरी तरह सहमत नहीं है.
बताया गया कि यह रिपोर्ट बाघों के रैंडमली लिये गये सिर्फ 30 शौच सैंपल पर आधारित है, जबकि प्रोजेक्ट टाइगर का कोर एरिया करीब 414 वर्ग किमी है. एक बाघ का आधिपत्य क्षेत्र करीब 25 वर्ग किमी होता है, इसलिए विभाग को उम्मीद है कि प्रोजेक्ट एरिया में कम से कम 15 बाघ होने चाहिए. इसके लिए यह निर्णय लिया गया है कि कोर एरिया से कम से कम पांच-छह सौ शौच सैंपल लिये जायें.
इधर, विभाग ने वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल प्रोग्राम (वन्य प्राणी अपराध नियंत्रण कार्यक्रम) शुरू किया है. इसके तहत विभिन्न रेंज में वन्य प्राणियों के खिलाफ हिंसा संबंधी अपराध रोकने तथा ऐसा करने वालों को चिह्नित करने के लिए सेंटर होगा. इसका मुख्यालय रांची में बनाया जाना है.
मुख्यालय में वन्य प्राणियों के खिलाफ हिंसा रोकने तथा उनकी हिफाजत के लिए विशेषज्ञों की एक टीम भी होगी. प्रोजेक्ट टाइगर के लिए सौ फीसदी केंद्रीय सहायता के बदले अब सिर्फ 60 फीसदी ही वित्तीय सहायता मिलने के सवाल पर विभागीय अधिकारियों ने कहा कि इसके लिए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से बात हुई है, तथा उन्हें इससे अवगत कराया गया है. फिर भी यदि सहायता नहीं बढ़ी, तो प्रोजेक्ट टाइगर सहित वन्य प्राणियों की सभी आश्रयणी तथा इनसे जुड़े किसी भी कार्यक्रम के लिए फंड की व्यवस्था राज्य सरकार अपने स्तर से करेगी.

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