रांची: ब्रिटिश शासन के दौरान डोरंडा एक मिलिट्री कैंप था, और वहां दक्षिण भारत के कैथोलिक मसीही काफी तादाद में थ़े 1877 में फादर फर्दीनंद डी कुक वहां एक मिट्टी का घर बना कर रहने लग़े 1880 के आसपास सुसमाचार प्रचार के क्रम में उन्होंने जमगांई क्षेत्र में कई लोगों को बपतिस्मा दिया़. राजनीतिक कारणों से बटालियन को डोरंडा छोड़ रामगढ़ जाना पड़ा. तब डोरंडा में चर्च के निर्माण के लिए फादर डी मुल्डर ने रामगढ़ कैंट के प्रिजनर्स ऑफ वॉर कैंप से संपर्क किया, जिसमें इटली के सैनिक थ़े. उन सैनिकों ने इस कार्य में रुची दिखायी.
एक इटालियन आर्किटेक्ट ने ऑल सेंट्स गिरजाघर का नक्शा तैयार किया. द्वितीय विश्वयुद्घ के बाद जब इतालवी सैनिक वहां से लौटने लगे, तब उन्होंने चर्च निर्माण के लिए जरूरी राशि भी उपलब्ध करायी़ इटली के सैनिकों ने इस चर्च की नींव भी खोदी थी और निर्माण के लिए पैसे दिये थ़े डोरंडा पेरिश की शुरुआत 1940-45 के दरमियान हुई़ 10 अगस्त 1952 को चर्च का उदघाटन हुआ़ ग्रोटो की आशिष 11 फरवरी 1959 को की गयी. सर्वप्रथम लॉरेटो धर्मबहनों ने इस पेरिश की देखभाल शुरू की. इसके बाद संत अन्ना धर्मसमाज का आगमन हुआ़ 1959 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी धर्मबहनों के आने से डोरंडा मिशन को काफी संबल मिला. फादर क्रिस्टोफर लकड़ा डोरंडा चर्च के पल्ली पुरोहित हैं.
परिवारों की संख्या 950 : इस पेरिश में कैथोलिक परिवारों की संख्या 950 व सदस्यों की संख्या 4750 है. यहां आरसी चर्च द्वारा निर्मला कॉलेज, लॉरेटो कांवेंट, शांति रानी उच्च विद्यालय, संत मथियस बालिका उवि, संत जेवियर्स स्कूल, संत कुलदीप स्कूल, निर्मला शिशु भवन, शांति रानी हेल्थ सेंटर, फादर स्कूल आदि का संचालन किया जा रहा है.