रांची: राज्य में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) संबंधी स्वास्थ्य कार्यक्रमों की स्थिति बदतर है. स्थिति यह है कि नवंबर तक मिशन के कुल बजट 716.71 करोड़ रु के विरुद्ध खर्च लगभग 143 करोड़ ही है. यानी अब तक सिर्फ 20 फीसदी ही खर्च हो सका है. दरअसल किसी वित्तीय वर्ष में मिशन का खर्च 70 फीसदी से अधिक नहीं रहा है. खर्च की लगातार कमी से योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल रहा या कम मिल रहा है.
इधर, झारखंड में मिशन कई कारणों से बहुत सफल नहीं रहा है. पूर्व स्वास्थ्य सचिव डॉ प्रदीप कुमार के कार्यकाल में हुई अनियमितता ने मिशन को कमजोर किया था. इधर मिशन के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन व खर्च की बेहतर मॉनिटरिंग भी नहीं हो रही. पूर्व सचिव के विद्यासागर ने स्टेट रिव्यू मिशन शुरू किया था.
इसमें जिला स्तरीय मॉनिटरिंग की व्यवस्था थी. मॉनिटरिंग तो हो रही है, लेकिन इसकी रिपोर्ट पर अपेक्षित कार्रवाई नहीं होती. स्वास्थ्य निदेशालय के निदेशक, अपर निदेशक व उप निदेशक स्तर के पदाधिकारी भी रूटीन कार्य के तहत फील्ड विजिट नहीं करते. क्षेत्रीय उप निदेशकों का भी यही हाल है. नतीजतन नियमित टीकाकरण को छोड़ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर स्वास्थ्य उप केंद्र तक सुविधाएं प्रभावित हैं.
मिशन की प्रभावित योजनाएं
जननी सुरक्षा कार्यक्रम
ममता वाहन व जननी सुरक्षा योजना
जन औषधि केंद्र
नियमित टीकाकरण
कुपोषण उपचार केंद्र
आयोडिन न्यूनतम विकार नियंत्रण कार्यक्रम
मातृ व बाल सुरक्षा कार्यक्रम
किशोरी स्वास्थ्य योजना
किशोरी स्वास्थ्य स्वच्छता कार्यक्रम
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम
एनआरएचएम का बजट व खर्च (करोड़ में)
वित्तीय वर्ष बजट खर्च
2009-10 429.93 287.50
2010-11 516.95 306.99
2011-12 555.35 316.15
2012-13 768.94 356.71
2013-14 761.00 143.00
मेरी जानकारी में 20 नहीं 35 फीसदी खर्च है. यह खर्च कम तो है, लेकिन पूर्व के वर्षो में नवंबर माह तक के खर्च की तुलना में स्थिति ठीक है. कार्यक्रमों की मॉनिटरिंग हो रही है.
डॉ मनीष रंजन, अभियान निदेशक,राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
कुछ बानगी
बच्चों को दिया जाने वाला विटामिन-ए सिरप अनुपलब्ध
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम साल भर से ठप
मोबाइल मेडिकल यूनिट (एमएमयू) का बेहतर संचालन नहीं