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उदासीनता: सितंबर 2012 में ही हुए थे रिटायर अब तक नियुक्त नहीं हो पाये नि:शक्तता आयुक्त

रांची: झारखंड सरकार 39 महीने में भी राज्य नि:शक्तता आयुक्त की बहाली नहीं कर पायी है. सितंबर 2012 में तत्कालीन नि:शक्तता आयुक्त सतीश चंद्र का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से अब तक इस पद पर किसी की बहाली नहीं की जा सकी है. महिला, बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा विभाग की तरफ से झारखंड […]

रांची: झारखंड सरकार 39 महीने में भी राज्य नि:शक्तता आयुक्त की बहाली नहीं कर पायी है. सितंबर 2012 में तत्कालीन नि:शक्तता आयुक्त सतीश चंद्र का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से अब तक इस पद पर किसी की बहाली नहीं की जा सकी है. महिला, बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा विभाग की तरफ से झारखंड हाइकोर्ट में नि:शक्तता आयुक्त की बहाली को लेकर जो शपथ पत्र दायर किया गया है, उसमें कहा गया है कि मंगाये गये आवेदनों की ग्रेडिंग की जा रही है. स्वतंत्र रूप से नि:शक्तता आयुक्त के नहीं रहने पर झारखंड विकलांग जन नीति राज्य में लागू नहीं हो पायी है. इतना ही नहीं सरकार की तरफ से जिलों में नि:शक्तों के लिए मोबाइल कोर्ट भी नियमित रूप से नहीं लगाये जा रहे हैं.

पूर्व में हर जिलों में सुनवाई कर विकलांग जनों के लिए पेंशन का निबटारा और प्रमाण पत्र दिये जाने का काम ऑन द स्पॉट करने का निर्णय भी लिया जाता था. विभागीय मंत्री डॉ लुईस मरांडी ने एक वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर यह घोषणा की है कि राज्य सरकार निश:क्तों के लिए बजट में विशेष प्रावधान करेगी. इतना ही नहीं नि:शक्तों के लिए शैक्षणिक और अन्य देय सुविधाओं का भी विकास किया जायेगा.

स्वामी विवेकानंद नि:शक्त स्वावलंबन योजना का ही मिल रहा है लाभ

वर्तमान में झारखंड सरकार की ओर से नि:शक्तों को स्वामी विवेकानंद नि:शक्त स्वावलंबन प्रोत्साहन योजना का ही लाभ मिल रहा है. इसके तहत 1.67 लाख नि:शक्तों को जुलाई 2015 से छह सौ रुपये की सम्मान राशि दी जा रही है. पहले चार सौ रुपये की सहायता राशि सरकार की ओर से निशक्तों को दी जाती थी.

सरकार की ओर से हो रहा मूक बधिर विद्यालय का संचालन

सरकार की तरफ से रांची में नेत्रहीन और मूक-बधिर विद्यालय का संचालन किया जा रहा है. इस विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों को बुनियादी सुविधाएं भी समय पर नहीं मिल पाती हैं. उप राजधानी में नेत्रहीन विद्यालय चलाया जा रहा है. देवघर, गिरिडीह, गुमला में नेत्रहीन विद्यालय का संचालन स्वयंसेवी संस्थानों की मदद से की जा रही है, वहीं हजारीबाग, चाईबासा, गुमला, धनबाद, देवघर और गिरिडीह में मूकबधिर विद्यालय भी एनजीओ चला रहे हैं.

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