चुनाव के बाद दलों के बीच सरकार बनाने के दावे के लिए राजभवन की दौड़ लगती थी. झारखंड में राज्यपाल की भूमिका लेकर सवाल उठे. यहां 14 दिन के लिए भी मुख्यमंत्री बने. राज्य गठन के बाद तीन विधानसभा चुनाव हुए. वर्ष 2014 की विदाई के साथ नयी राजनीतिक व्यवस्था ने दस्तक दी. इस बार सरकार बनाने को लेकर कोई जिच नहीं थी. वोटरों का मैंडेट साफ था. भाजपा और आजसू गंठबंधन ने अपने दम पर बहुमत का 42 का आंकड़ा छू लिया. वहीं विधानसभा के अंदर दलों का समीकरण भी बदला. राज्य गठन के बाद पहली बार राजद व जदयू के विधायक सदन नहीं पहुंच सके.
निर्दलियों की तादाद भी घटी. सदन में पहली बार किसी विधायक की सदस्यता भी गयी. आजसू पांच विधायकों के साथ जीत कर आयी और कमल किशोर भगत की सजा मिलने के साथ वह चार हो गयी. आजसू की लोहरदगा सीट जीत कर कांग्रेस ने अपना आंकड़ा छह से सात कर लिया. राज्य में कई स्थापित अवधारणाएं टूटी. सरकार में पहली बार कोई उप मुख्यमंत्री और मंत्री बनने के दबाव का खेल नहीं हुआ. मंत्रिमंडल में विभाग के लिए राजनीतिक बारगेनिंग नहीं हुई. राजनीतिक हिचकोले खाता झारखंड यहां तक पहुंचा है. अब बहुमत की सरकार अपने तेवर पर काम कर रही है.