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झारखंड शिक्षा परियोजना ने किताब के टेंडर की शर्तो में किया बदलाव पेपर मिल का एकाधिकार खत्म

रांची: राज्य सरकार ने शैक्षणिक सत्र 2016-17 में किताब छपाई के लिए टेंडर की जो शर्त निर्धारित की है, उसमें पेपर मिल की क्षमता काफी कम कर दी गयी है़. इससे किताब छपाई के टेंडर में एक विशेष पेपर मिल का एकाधिकार इस वर्ष से खत्म हो जायेगा. अब तक किताब छपाई के लिए कागज […]

रांची: राज्य सरकार ने शैक्षणिक सत्र 2016-17 में किताब छपाई के लिए टेंडर की जो शर्त निर्धारित की है, उसमें पेपर मिल की क्षमता काफी कम कर दी गयी है़. इससे किताब छपाई के टेंडर में एक विशेष पेपर मिल का एकाधिकार इस वर्ष से खत्म हो जायेगा. अब तक किताब छपाई के लिए कागज आपूर्ति करनेवाली मिल की उत्पादन क्षमता एक लाख नाै हजार मीट्रिक टन प्रति वर्ष हुआ करती थी.
झारखंड शिक्षा परियोजना ने इस वर्ष इसे कम कर उत्पादन क्षमता 40 हजार मीट्रिक टन प्रति वर्ष कर दिया है़ इससे एक विशेष मिल का एकाधिकार समाप्त हो जायेगा़. अब प्रकाशक के पास कागज क्रय करने के लिए मिलों का विकल्प बढ़ गया है. अब तक प्रकाशक उन्हीं मिल से कागज क्रय कर सकते थे जिनकी उत्पादन क्षमता एक लाख नौ हजार मीट्रिक टन प्रति वर्ष होती थी. इतनी क्षमता की मिल गिनी-चुनी थीं. मिल की उत्पादन क्षमता कम होने से अब प्रकाशक छोटी पेपर मिल से भी कागज क्रय कर सकेंगें.
गत वर्षों में हुई क्षति
वर्ष 2013-14 में टेंडर में जोड़ी गयी अतार्किक व गलत शर्तों से सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ़ टेंडर में गड़बड़ी के आरोप के बाद भारत सरकार ने राशि भुगतान से इनकार कर दिया़.
वर्ष 2013-14 में कागज आपूर्ति के लिए जो शर्त लगायी गयी उसके अनुसार पेपर मिल गत दो वित्तीय वर्ष में सरकारी किताब की छपाई के लिए प्रतिवर्ष तीन हजार मीट्रिक टन कागज की बिक्री कर चुकी हो़ संबंधित कंपनी का दैनिक उत्पादन 300 एमटी हो़ वित्तीय वर्ष 2011-12 में कंपनी का वाटर मार्क या लोगो कम से कम 50,000 एमटी 100 फीसदी बांस का उत्पादन किया गया हो़ ये सभी कागज आपूर्ति में एक विशेष मिल का एकाधिकार स्थापित करने के लिए किया गया़ भारत सरकार के निर्देश में वर्ष 2013-14 में टेंडर गड़बड़ी की जांच हुई पर दोषियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई़
किताब छपाई का बजट
वर्ष बच्चों की संख्या खर्च(करोड़ में)
2005-06 32.00
2006-07 —- 34.88 2007-08 41,16712 51.79 2008-09 51,93088 52.43
2009-10 64,26504 72.71
वर्ष बच्चों की संख्या खर्च
2010-11 44,98,547 48.51 2011-12 4500000 45.58 2012-13 4500000 75.99
2013-14 5500000 99.00 2014-15 4900000 89.00
एक साल में 13 लाख तक बढ़े बच्चे
किताब के टेंडर में बच्चाें की संख्या घटाने-बढ़ाने का भी खेल होता रहा है़ एक वर्ष के अंदर बच्चों की संख्या में दस लाख तक का अंतर आया है़ ऐसे में फरजी बच्चों की संख्या के आधार पर किताब की छपाई होती रही है़ वर्ष 2008-09 में 51 लाख बच्चों के लिए किताब की छपाई हुई थी़ अगले वर्ष बच्चों की संख्या 13 लाख बढ़ गयी़ वर्ष 2009-10 में 64 लाख बच्चों के लिए किताब की छपाई की गयी़ 2010-11 में यह घटकर 48 लाख हो गयी.

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