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परिवार का साथ सुकून देता है

परिवार का साथ सुकून देता है आज भी बच्चों के शिष्टाचार में कोई कमी नहीं आयी है़ लेकिन वह सामाजिक कारणों से राह भटक रहे हैं. यह कहना है एचइसी केंद्रीय विद्यालय की प्राचार्या रेणु उपाध्याय का़ लाइफ ‍@ रांची से बातचीत में कहा कि हाल के दिनों में बच्चों की सोच में थोड़ा परिवर्तन […]

परिवार का साथ सुकून देता है आज भी बच्चों के शिष्टाचार में कोई कमी नहीं आयी है़ लेकिन वह सामाजिक कारणों से राह भटक रहे हैं. यह कहना है एचइसी केंद्रीय विद्यालय की प्राचार्या रेणु उपाध्याय का़ लाइफ ‍@ रांची से बातचीत में कहा कि हाल के दिनों में बच्चों की सोच में थोड़ा परिवर्तन आया है़ इसका मुख्य कारण घर का बदलता वातावरण है. बच्चे अपनी सोच आदि को किसी से शेयर नहीं कर पाते़ उनकी बातें सुनने वाला कोई नहीं होता़ इसलिए उनमें तनाव बढ़ता जा रहा है़ उन्हें प्यार की बहुत जरूरत है़ भागलपुर है जन्म स्थल भागलपुर की रहनेवाली श्रीमति उपाध्याय ने प्रारंभिक शिक्षा संथाल परगना दुमका से हासिल की. इसके बाद राजकीय कन्या उच्च विद्यालय दुमका से 12वीं तक की पढ़ाई की. सुंदरवती महिला महाविद्यालय भागलपुर से बीए की डिग्री की हासिल की़ भागलपुर विवि से एमए और बीएड की डिग्री लेकर अध्यापन के क्षेत्र में आगे बढ़ी़ं वह कहती हैं कि दो सपने थे जिसे पूरा करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ना और दूसरा प्रशासक के रूप में कार्य करना़ बाद में अध्यापन के क्षेत्र में आ गयी. ………………………..1981 से पढ़ा रही हैं वह बताती हैं कि 1981 में शारदा झुनझुनवाला महिला महाविद्यालय भागलपुर से टीचिंग लाइफ शुरू हुई. यहां करीब 15 साल तक विद्यार्थियों को शिक्षा दी़ 1996 में केंद्रीय विद्यालय संगठन में प्रिंसिपल के पद पर नियुक्ति हुई़ कोलकाता रिजन में केवी कांचरा पारा स्कूल में 1996-98 तक प्रिंसिपल के पद पर रही़ं 1998-2000 तक केंद्रीय विद्यालय फोर्ट विलियम स्कूल कोलकाता में सेवा दीं. 2003 में हजारीबाग ट्रांसफर हुआ, यहां 2008 तक रहीं. इसी वर्ष से केंद्रीय विद्यालय एचइसी रांची में प्रिंसिपल के पद पर सेवा दे रही हैं. इस दौरान 1993 में श्री प्रकाश से शादी हुई़, जो आकाशवाणी रांची से रिटायर हो चुके है़ बेटी सांभवी प्रकाश बेंगलुरु में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है़ ……………….सबकी पसंद का खाना बनाती हूं रेणु उपाध्याय कहती हैं स्कूल के कारण घर परिवार के लिए थोड़ा सा भी समय नहीं मिलता है़ अक्सर सेमिनार आदि के लिए घर से बाहर ही रहना पड़ता है़ इसलिए संडे को जब भी समय मिलता है घर में रहना पसंद करती हूं, ताकि परिवार के साथ समय बिता सकूं. उन्हें कुकिंग का बहुत शाैक है, इसलिए छुट्टी के दिन सभी की पसंद का खाना बनाना अच्छा लगता है़ साथ ही पत्रिका और अखबारों में प्रकाशित चुनिंदा आर्टिकल्स को संडे काे ही पढ़ने का मौका मिलता है़

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