-संजय-
रांचीः राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाये, तो झारखंड में अस्पतालों की कमी अपेक्षाकृत अधिक है. दूर-दराज के ग्रामीणों को जहां बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, वहीं कई अस्पताल भवन पूरी तरह तैयार होने के बावजूद अनुपयोगी बने हुए हैं. इससे राज्य में प्रति बेड जनसंख्या का दबाव अधिक हो गया है. झारखंड में करीब तीन हजार आबादी के लिए अस्पताल का एक बेड है. यह औसत सरकारी व निजी अस्पतालों को मिला कर है. उधर, राष्ट्रीय औसत एक हजार लोग प्रति बेड है. यानी राज्य का औसत राष्ट्रीय औसत से तीन गुना है. पूरी दुनिया की बात करें, तो यह अनुपात करीब 335 लोग प्रति बेड है.
गौरतलब है कि सदर अस्पताल रांची, सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल रिम्स व रांची नगर निगम अस्पताल सहित कुछ अन्य अस्पताल भवन बन कर भी शुरू नहीं हो सके हैं. वहीं, राज्य के 12 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के 48 बेड संचालित नहीं हैं. राज्य सरकार ने यह आकलन नहीं किया है कि वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए कितने बेड की आवश्यकता है.
अस्पतालों की यह कमी ग्रामीण आबादी के लिए भारी पड़ती है. टेक्नोपैक एडवाइजर्स प्रा.लि. की रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर की करीब 45 फीसदी आबादी को बेहतर इलाज के लिए औसतन 100 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है. झारखंड की स्थिति भी कमोबेश यही है. संताल परगना व पलामू प्रमंडल के लोगों को इलाज के लिए ज्यादा भटकना पड़ता है. टेक्नोपैक की रिपोर्ट कहती है कि इलाज पर होनेवाले कुल खर्च की 80 फीसदी राशि निजी अस्पतालों में खर्च होती है. एमजीएम, रिम्स, पीएमसीएच, रिनपास, 21 जिला अस्पताल, 12 सब डिविजनल अस्पताल, 188 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 330 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व मातृ-शिशु सुरक्षा केंद्र सहित राज्य के विभिन्न निजी अस्पतालों में करीब 1100 बेड हैं.