इस मामले में सुनवाई के दौरान बिल्डरों की ओर से यह तर्क पेश किया गया था कि वे तो सर्विस प्रोवाडर हैं. लोगों के अनुरोध पर उनसे पैसा लेकर उन्हीं के पैसों से उनके लिए फ्लैट बनाते हैं. इसके बाद उन्हें संबंधित फ्लैट हस्तांतरित कर देते हैं, इसलिए उन पर वैट लगाना सही नहीं है. सुनवाई के दौरान विभाग की ओर से बिल्डरों द्वारा दिये गये तर्क को गलत बताया गया था.
विभाग की ओर से यह कहा गया था कि बिल्डर जमीन लेकर उस पर बिल्डिंग बनाते हैं और बेचते हैं, इसलिए उन पर वैट लगाने का प्रावधान किया गया है. अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद विभाग के पक्ष में फैसला सुनाया था. इसके साथ ही सरकार ने बिल्डरों से वैट की वसूली शुरू की है. विभागीय आंकड़ों के अनुसार राज्य में सिर्फ 86 लोगों ने ही बिल्डर के रूप में अपना निबंधन कराया है. आदित्यपुर अंचल में 15, देवघर में पांच, धनबाद में एक, रांची पूर्वी में छह, रांची साउथ में 12, रांची स्पेशल सर्किल में नौ, रांची वेस्ट में 23, जमशेदपुर में आठ, रामगढ़ में एक, सिंहभूम में एक, जमशेदपुर शहरी सर्किल में पांच लोगों ने बिल्डर के रूप में अपना निबंधन कराया है.