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10 साल जेल में रहने के बाद निलंबित हुआ इंजीनियर
शकील अख्तर रांची : हत्या के जुर्म में 10 साल की सजा काटने के बाद जमानत पर छूटे इंजीनियर नवल प्रसाद ने फिर से अपने पद पर योगदान किया था. योगदान के करीब छह माह बाद सरकार ने इस इंजीनियर को निलंबित कर दिया. उम्र कैद की सजा पाये इस इंजीनियर के जेल में रहने […]
शकील अख्तर
रांची : हत्या के जुर्म में 10 साल की सजा काटने के बाद जमानत पर छूटे इंजीनियर नवल प्रसाद ने फिर से अपने पद पर योगदान किया था. योगदान के करीब छह माह बाद सरकार ने इस इंजीनियर को निलंबित कर दिया.
उम्र कैद की सजा पाये इस इंजीनियर के जेल में रहने की जानकारी सरकार को नहीं थी और न ही कार्यपालक अभियंता ने सरकार को इस इंजीनियर के ड्यूटी से गायब रहने की जानकारी दी थी. घटना के समय इस इंजीनियर ने खुद को ड्यूटी पर बताया था और अदालत में सिंचाई विभाग के डालटनगंज प्रंडल की उपस्थिति पंजी भी पेश की थी.
बिहार के शेखपुरा थाना क्षेत्र के मूल निवासी इंजीनियर नवल प्रसाद सहित तीन को मुंगेर के फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सुरेंद्र कुमार की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
22 दिसंबर 2003 को फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा सजा सुनाये जाने के बाद इंजीनियर सहित तीनों मुजरिमों को जेल भेज दिया गया था. पटना हाइकोर्ट ने भी मुजरिमों की याचिका पर सुनवाई के बाद निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और आजीवन कारावास की सजा भुगतने का आदेश दिया. हाइकोर्ट से राहत नहीं मिलने का बाद इंजीनियर नवल प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और जमानत देने का अनुरोध किया.
सुप्रीम ने याचिका पर सुनवाई के बाद 20 सितंबर 2013 को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में भागलपुर जेल से छूटने के बाद उसने सिंचाई विभाग के डालटनगंज कार्यालय में अपना योगदान दे दिया. इसके बाद सिंचाई विभाग डालटनगंज के कार्यपालक अभियंता ने उसके योगदान से संबंधित कागजात मुख्यालय को भेजा.
डालटनगंज से मिले कागजात पर कार्रवाई के दौरान विभाग को इस बात की जानकारी मिली कि अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा दी थी. वह 10 साल तक जेल में रहा. इससे संबंधित सूचना एकत्रित करने और निलंबित करने में और छह माह का समय लगा. सरकार ने जनवरी 2014 में उसे दिसंबर 2003 की तिथि से निलंबित कर दिया. उसके जेल में रहने या ड्यूटी से 10 साल तक गायब रहने की जानकारी डालटनगंज कार्यालय के तत्कालीन कार्यपालक अभियंताओं ने नहीं दी.
हत्या के दिन खुद को ड्यूटी पर बताया था
नवल प्रसाद ने हत्या के इस मामले की सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि घटना के दिन वह डालटनगंज स्थित अपने कार्यालय में मौजूद था. उसने अदालत से कहा था कि 30 नवंबर को उसने बजट से संबंधित फाइल पर अपनी टिप्पणी लिखी है.
उसके इस दलील के पक्ष में डालटनगंज कार्यालय के टाइपिस्ट राम अवधेश सिंह उपस्थिति पंजी सहित अन्य आवश्य फाइल लेकर अदालत में बतौर गवाह पेश हुआ था. उसने बजट से जुड़ी फाइल में नवल प्रसाद की लिखावट में 30 नवंबर को टिप्पणी लिखे होने की पुष्टि की. साथ ही उसके कार्यालय में उपस्थित होने का प्रमाण पत्र पेश किया था. उसने यह भी कहा कि जांच के दौरान पुलिस ने उसके अलावा सहायक अभियंता जगदीश प्रसाद, तकनीकी सचिव हरिहर बैठा आदि का बयान दर्ज किया था.
क्या है मामला
बिहार के शेखपुरा थाना क्षेत्र में जमीन विवाद को लेकर में सुरेंद्र कुमार की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी. इस सिलसिले में मृतक के भाई राजेंद्र प्रसाद ने शेखपुरा थाने में 30 नवंबर 1995 को प्राथमिकी (285/95) दर्ज करायी थी. इसमें नवल प्रसाद, नंदलाल प्रसाद, जीतेंद्र प्रसाद, शुभाष प्रसाद, सुजीत प्रसाद और जयकांत प्रसाद को नामजद अभियुक्त बनाया गया था. हत्या के इस मामले को मुंगेर स्थित फास्ट ट्रैक कोर्ट में स्थानांतरित किया गया.
अदलत ने मामले की सुनवाई के बाद 22 दिसंबर 2003 को फैसला सुनाया. अदालत ने जल संसाधन विभाग के सहायक अभियंता नवल प्रसाद, जयकांत प्रसाद और जीतेंद्र प्रसाद को आइपीसी की धारा 302 और 27 आर्म्स एक्ट के तहत दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. अदालत ने अभियुक्त नंदलाल प्रसाद, सुभाष प्रसाद और सुजीत प्रसाद को बरी कर दिया.
फैसले के बाद इंजीनियर नवल प्रसाद सहित तीनों मुजरिमों को जेल भेज दिया गया. निचली अदालत के फैसले को मुजरिमों ने पटना हाइकोर्ट में चुनौती दी. हाइकोर्ट ने मामले का सुनवाई के बाद निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और आजीवन कारावास की सजा भुगतने का आदेश दिया.
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