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आगमन का पुण्यकाल झ्र 5

आगमन का पुण्यकाल – 5 फोटो ट्रैकप्रार्थना करने का समय दादाजी अखबार पढ़ रहे थे. कमरे में उनकी पांच वर्षीय पोती भगवान के सामने हाथ जोड़े बैठी कुछ बुदबुदा रही थी. काफी ध्यान लगाने पर भी उन्हें कुछ समझ में न आया.उनकी पोती शब्द या वाक्य बोलने की बजाय क, ख, ग, घ, अ, आ, […]

आगमन का पुण्यकाल – 5 फोटो ट्रैकप्रार्थना करने का समय दादाजी अखबार पढ़ रहे थे. कमरे में उनकी पांच वर्षीय पोती भगवान के सामने हाथ जोड़े बैठी कुछ बुदबुदा रही थी. काफी ध्यान लगाने पर भी उन्हें कुछ समझ में न आया.उनकी पोती शब्द या वाक्य बोलने की बजाय क, ख, ग, घ, अ, आ, इ, ई, उ ऊ जैसे अक्षर दुहरा रही थी. उन्होंने पूछा, बिटिया, तुम क्या कर रही हो? पोती बोली, ‘मैं प्रार्थना कर रही हूं. मुझे सटीक शब्द नहीं सूझ रहे, इसलिए सिर्फ अक्षर बोल रही हूं. भगवान उन अक्षरों को चुन कर सटीक शब्द बना लेंगे, क्योंकि वह जानते हैं कि मैं क्या चाहती हूं.किसी और जगह, एक और दादाजी अपने पोते की प्रार्थना सुन रहे थे. पोता कह रहा था, ‘हे भगवान, मेरे पापा की रक्षा करना और मेरी मम्मी की भी. मेरी लड़ाकू बहन की और मेरे भाई की और मेरे दादा–दादी की भी रक्षा करना. तू मेरे सभी दोस्तों को अच्छे से रखना और पड़ोस वाले अंकल–आंटी को भी. कामवाली आंटी और उसके छोटू की देखभाल की जिम्मेदारी भी तेरी है. और हां भगवान, अपनी भी देखभाल करते रहना. अगर तुझे कुछ हो गया, तो हम सब बहुत मुसीबत में फंस जाएंगे!’प्रार्थना में ईश्वर हमारे हृदय को देखता है, शब्दों को नहीं. फरीसी ने मंदिर में अच्छी प्रार्थना की थी, नाकेदार ने बस इतना कहा था, ‘मैं पापी हूं, मुझे क्षमा कर.’ उड़ाव पुत्र ने कहा था ‘मैंने आपके और स्वर्ग के विरुद्ध अपराध किया है.’ अंधे व्यक्ति ने कहा था ‘मैं फिर से देखना चाहता हूं.’ रक्तस्राव से पीड़ित सिरोफिनी स्त्री ने कहा कुछ नहीं, वह यीशु के वस्त्र को छूना चाहती थी. आगमन काल में हम प्रार्थना करें, लेकिन दिल से, सिर्फ शब्दों से नहीं.– फादर अशोक कुजूरडॉन बॉस्को यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज के निदेशक

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