इस्लाम में आतंक की कोई जगह नहीं- डॉ शाहिद हसन पेरिस के आतंकी हमले की घटना ने संपूर्ण जगत को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि मुट्ठी भर धर्मांध लोग सारी दुनिया में कितनी भयानक तबाही लाने का मंसूबा बना रहे हैं और समय-समय पर उसे अंजाम भी दे रहे हैं. इस्लाम के नाम पर जितने भी आतंकी संगठन जिहाद की आड़ में जिस तरह मासूमों का कत्ले-आम कर रहे हैं, वे क्या वास्तव में इस्लाम धर्म के सच्चे अनुयायी हैं? क्या उन्हें पवित्र कुरान में वर्णित नैतिकता और शांति के उपदेशों का सही अर्थ मालूम है? क्या वे इस्लाम के अंतिम पैगंबर हजरत मुहम्मद (स.) द्वारा हदीस में दिये गए उपदेशों को ठीक से समझते है? क्या इस्लाम मासूम और बेकसूरों की हत्या का उपदेश देता है? क्या इस्लाम बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के पक्ष में है? क्या इस्लाम युसूफजई मलाला के जज्बात की मनाही करता है और महिलाओं को अशिक्षित रखने की वकालत करता है? इस तरह के हजारों सवाल आज इन आतंकी घटनाओं के बाद प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लोग एक-दूसरे से पूछ रहे हैं. कल अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सारी दुनिया के मुसलिम समुदाय से आत्ममंथन करने का अनुरोध किया है. वास्तव में सारी दुनिया के बुद्धिजीवियों का आज पहला कर्तव्य बन जाता है कि इस्लाम की मौलिकता और वास्तविकता को न केवल मुस्लिम समाज के बीच युद्ध स्तर पर प्रचारित और प्रसारित करें बल्कि अन्य समुदायों के बीच भी मुट्ठी भर लोगों द्वारा इस्लाम के नाम पर इस्लाम विरोधी हरकत करनेवालों के चेहरे को भी बेनकाब करें. इस्लाम के बारे में उनका नजरिया इस्लाम के मौलिक नजरिये से बिलकुल भिन्न हैं. इस्लाम धर्म के अंतिम पैगंबर हजरत मुहम्मद (स.) का जन्म मक्का में उस समय हुआ, जब वहां पूरी तरह से अशांति थी. विभिन्न कबीलों में बात-बात पर तलवारें निकल आती थी, विधि-व्यवस्था का नामोनिशान नहीं था, औरतों की स्थिति पशुओं से बदतर थी. ऐसे में अल्लाह ने मुहम्मद (स.) को पैगंबरी देकर शांति दूत बनाया. इस्लाम में मानवाधिकार, युद्ध के नियम, जायज संपित्त का अर्जन, स्त्रियों को सम्मान, दूसरे धर्म के माननेवालों के प्रति आदर की भावना, विश्व बंधुत्व आदि विषयों पर बल दिया गया. इस्लाम में मानव जीवन की रक्षा को आवश्यकता से अधिक महत्त्व दिया गया है. पवित्र कुरान (5:32) में कहा गया है कि – ‘‘राजद्रोह या हत्या के आरोप को छोड़ कर जो भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की हत्या करता है समझो उसने संपूर्ण मानवजाति कि हत्या की और जिसने सारे को जीवनदान दिया समझो सारी इंसानियत की रक्षा की.’’ पवित्र कुरान में यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति किसी निर्दोष की हत्या करता है, अल्लाह उससे पूछेगा कि उसने कौन सा गुनाह किया था जिसकी सजा उसे मौत के रूप में दी गयी. पवित्र कुरान (5:45) में कहा गया है कि – ‘‘और हमने उस (तौरात) में लिख दिया था कि जान जान के बराबर है, आंख आंख के बराबर है, नाक नाक के बराबर है, कान कान के बराबर है, दांत दांत के बराबर है और सब आघातों के लिए इसी तरह बराबर का बदला है. तो जो कोई उसे क्षमा कर दे तो वह उसके लिए प्रायश्चित होगा और जो लोग उस विधान के अनुसार फैसला ना करे जिसे अल्लाह ने उतारा है तो ऐसे ही लोग अत्याचारी हैं.’’ अर्थात इस आयत में अल्लाह ने हिदायत दी है कि तुम सीमा का उल्लंघन ना करो. पवित्र कुरान (2:27) में कहा गया है कि–‘‘जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे सुदृढ़ करने के बाद तोड़ देते हैं, जिसे अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया है, उसे काट डालते हैं और जमीन में बिगाड़ पैदा करते हैं, वही है जो घाटे में हैं .’’ धरती पर बिगाड़ ना पैदा करने की हिदायत अल्लाह ने पवित्र कुरान (2:60) में दी है ‘ ..अल्लाह ने जो दिया उसे खाओ और पियो और धरती में बिगाड़ फैलाते ना फिरो ’’ कुरान (2:190) में अल्लाह का स्पष्ट आदेश है – ‘‘और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़ें किंतु ज्यादती ना करो. नि:संदेह अल्लाह ज्यादती करनेवालों को पसंद नहीं करता.’’ बदर के युद्ध के समय मुहम्मद (स.) का अपने सिपाहियों के लिए स्पष्ट आदेश था कि– ‘‘युद्ध में बूढ़े बीमार, बच्चों, स्त्रियों का कत्ल ना किया जाये जो उनसे लड़ें उनके साथ ही युद्ध हो और युद्धबंदियों के लिए भी स्पष्ट आदेश था कि उन्हें जंजीरों में ना बांधा जाये. जो हमारे सैनिक खाते हैं, उन्हें वही खाना दिया जाये और जो पहनते हैं, उन्हें वही कपड़ा दिया जाये. उनके शरीर के अंगों को ना काटा जाये. जो युद्धबंदी पढ़ना-लिखना जानते हैं, वे दस बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखा दें और आजाद हो जायें.’’ जिस प्रकार कुछ अत्याचारी युद्ध के पश्चात दूसरे धर्म के लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश करते हैं उनके विरुद्ध भी कुरान (2:256) में साफ आदेश है कि–‘‘धर्म के विषय में कोई जबरदस्ती नहीं .’’ इसी प्रकार पवित्र कुरान में एक अध्याय (सूरा) विशेष रूप से महिलाओं के लिए रखा गया है, जिसमें महिलाओं के अधिकार और कर्तव्य के विषय में प्राय: सभी बातें कही गयी हैं. हजरत मुहम्मद (स.) ने अपने जीवन में पवित्र कुरान में वर्णित महिलाओं के अधिकारों एवं उनकी सुरक्षा पर अमलीजामा पहनाया. दो बार की विधवा और उम्र में 15 साल बड़ी हजरत खदीजा (रजी.) से विवाह किया. विवाह में लड़कियों की सहमति को प्राथमिकता दी. लड़कियों को पति से तलाक (खुला) का अधिकार दिया. शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया. दूसरे धर्म के लोगों के लिए पवित्र कुरान के एक अध्याय (109:6) में कहा गया है कि–‘‘तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म है और मेरे लिए मेरा धर्म ’’. पवित्र कुरान में साफ-साफ कहा गया है कि–‘‘दूसरे धर्म के गुरुओं को भला-बुरा ना कहो.’’ केवल इतना ही नहीं बल्कि मुहम्मद (स.) ने ईसाईयों की एक जमात को रविवार के दिन मदीना में अपनी मसजिद में इबादत करने की अनुमति दी. इस तरह इंसानियत से जुड़ी हुई हजारों बातें पवित्र कुरान और हदीस में कही गयी है. जिनमें हम कुछ बातों पर अमल करते हैं और अधिकांश बातों को अपनी सुविधानुसार तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत कर रहे हैं. जिससे सारी दुनिया में अशांति फैल रही है. हमारे देश, समाज और विश्व में अशांति फैलानेवालों से अपील है कि पहले वे धर्म को समझें और उसपर अमल करें और खास कर के युवा वर्ग से गुजारिश है कि वैसे सभी तत्वों से दूर रहें, जो धर्म और संप्रदाय के नाम पर लोगों को गोलबंद कर हिंसा को बढ़ावा देते हैं.
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इस्लाम में आतंक की कोई जगह नहीं
इस्लाम में आतंक की कोई जगह नहीं- डॉ शाहिद हसन पेरिस के आतंकी हमले की घटना ने संपूर्ण जगत को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि मुट्ठी भर धर्मांध लोग सारी दुनिया में कितनी भयानक तबाही लाने का मंसूबा बना रहे हैं और समय-समय पर उसे अंजाम भी दे रहे हैं. इस्लाम के नाम […]
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