रांची: खाद्य सुरक्षा व मानक अधिनियम-06 के तहत सरकार खाद्य नमूनों की जांच कर रही है. मिलावट वाले नमूनों से संबंधित केस उपायुक्त कोर्ट व जिला न्यायालयों में दर्ज कराये जा रहे हैं. इधर, विभिन्न जिले के उपायुक्त बगैर गवाह का पक्ष सुने फैसला सुना रहे हैं. दूसरी ओर जिला न्यायालयों से गवाहों (खाद्य निरीक्षकों) को नोटिस दिया जा रहा है.
रांची के खाद्य निरीक्षक संजय कुमार को तथ्य व अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस मिली है. रांची, धनबाद व गिरिडीह में बगैर गवाह का पक्ष सुने निर्णय के मामले सामने आये हैं. रांची में सुधा दूध में मिलावट के दो मामले में डेयरी प्रबंधक को बरी कर दिया गया है. उधर, धनबाद में मिलावट करने के दोषी होटल व रेस्तरां मालिकों को अधिकतम पांच-पांच लाख रुपये जुर्माना के बजाये 25-25 हजार रु आर्थिक दंड लेकर निबटा दिया गया है. गिरिडीह के एक मामले में तो सिर्फ दो हजार रुपया जुर्माना लगाया गया है. इधर, आम उपभोक्ता की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो पा रही है.
अब तक 2105 सैंपल की जांच
राज्य खाद्य प्रयोगशाला, आरसीएच नामकुम में अब तक 1205 खाद्य नमूनों की जांच की गयी है. एक साल (सितंबर-12 से सितंबर-13) में इतनी जांच हुई है. इनमें से 245 नमूनों में गड़बड़ी (मिलावट, अमानक स्तर या मिथ्या प्रचार) पायी गयी है. हालांकि अब तक बमुश्किल 10 मामले में ही सजा सुनायी गयी है. गड़बड़ी के इन सभी मामलों में संबंधित जिलों के सहायक मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी (एसीएमओ) ने उपायुक्तों व जिला न्यायालय में मामला दर्ज कराया है.
क्या है प्रावधान
लोक खाद्य विश्लेषक जेके सिंह के अनुसार खाद्य सुरक्षा व मानक अधिनियम में यह निर्देश है कि मिलावट व गड़बड़ी के अन्य मामलों में 60 से 90 दिनों (दो से तीन माह) के अंदर निर्णय हो जाना चाहिए. इधर, विभिन्न जिलों में जनवरी से जून तक में दर्ज इक्का-दुक्का मामले में ही निर्णय नहीं लिया जा सका है.
गंभीर मामले जिला कोर्ट में
अधिनियम के प्रावधानों के तहत अमानक स्तर व मिथ्या प्रचार (मिस ब्रांडेड) वाले खाद्य उत्पादों के मामले उपायुक्त स्तर से निबटाये जाते हैं. वहीं ऐसे मिलावट, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक व खतरनाक हैं, जिला कोर्ट में दायर किये जाते हैं. सिर्फ रांची में 38 मामले न्यायालय में दर्ज हैं. रांची डीसी के पास लगभग 50 मामले लंबित हैं.
हमलोगों के संज्ञान में ये मामले हैं. कागजात तैयार हो रहा है. इस पर विभाग की ओर से अगली कार्रवाई होगी. सैंपल इकट्ठा करना, जांच करना व फिर केस दर्ज करना एक लंबी प्रक्रिया है. इसके बाद दोषी आराम से छूट जाये, तो यह दुर्भाग्य होगा.
डॉ टीपी वर्णवाल, राज्य खाद्य नियंत्रक
सीआरपीसी, आइपीसी या इविडेंस एक्ट के मामले में गवाहों को सुनना जरूरी है. इसके बगैर निर्णय नहीं किया जा सकता. गवाह के बगैर निर्णय आइ-वाश है.
राजीव कुमार, अधिवक्ता झारखंड उच्च न्यायालय