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वाहनों में नहीं लगा हाई सिक्यूरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट

रांची: झारखंड में रजिस्टर्ड लाखों वाहनों में हाई सिक्यूिरटी रजिस्ट्रेशन प्लेट (एचएसआरपी) लगाने की योजना वर्ष 2001 से अधर में लटकी हुई है. एचएसआरपी के लिए उच्च तकनीक का इस्तेमाल होना था. यह केंद्र सरकार की योजना थी, जिसे देश के सभी राज्य सरकारों को लागू करना था. कई राज्यों में एचएसआरपी पर काम चल […]

रांची: झारखंड में रजिस्टर्ड लाखों वाहनों में हाई सिक्यूिरटी रजिस्ट्रेशन प्लेट (एचएसआरपी) लगाने की योजना वर्ष 2001 से अधर में लटकी हुई है. एचएसआरपी के लिए उच्च तकनीक का इस्तेमाल होना था.

यह केंद्र सरकार की योजना थी, जिसे देश के सभी राज्य सरकारों को लागू करना था. कई राज्यों में एचएसआरपी पर काम चल रहा है. वाहनों में तकनीक पर आधारित रजिस्ट्रेशन नंबर प्लेट लगाये जा रहे हैं, लेकिन झारखंड में यह महत्वाकांक्षी योजना अब तक ठप पड़ी हुई है. राज्य सरकार ने 30 अप्रैल 2012 को वाहनों में एचएसआरपी लगाने के लिए मेसर्स एग्रोस इंपेक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से करार किया था. राज्य के सभी 24 जिलों में समय पर एचएसआरपी का काम शुरू नहीं करने का आरोप लगाते हुए सरकार ने 13 अगस्त 2012 को करार रद्द कर दिया. साथ ही एग्रोस इंपेक्स कंपनी को ब्लैकलिस्टेड कर दिया. इसे गलत बताते हुए एग्रोस इंपेक्स ने हाइकोर्ट में सरकार के आदेश को चुनाैती दी. मामला हाइकोर्ट में लंबित है, जिस पर 10 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी.

क्यों जरूरी है एचएसआरपी
मोटर वाहन एक्ट 1988, सेंट्रल मोटर व्हिकल्स रूल्स 1989 व मोटर व्हिकल्स अॉर्डर 2001 के तहत एचएसआरपी लगाना अनिवार्य है. यह वाहनों की सुरक्षा के लिए लगाया जाता है. हाई सिक्यूरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट (एचएसआरपी) उच्च तकनीक पर आधारित होता है. इससे वाहनों की चोरी आैर चोरी के वाहनों का परिचालन करना कठिन हो जायेगा. वाहन चोरी होने के बाद उक्त इंजन व चेसिस नंबर पर दोबारा एचएसआरपी गुप्त तरीके से नहीं लगाया जा सकेगा. एचएसआरपी के अलावा राज्य में सामान्य नंबर प्लेट लगाने का काम पूरी तरह से बंद कर दिया जायेगा.

निकालें समाधान, दें जवाब: हाइकोर्ट
जस्टिस अपरेश कुमार सिंह की अदालत में विगत दिनों एचएसआरपी करार रद्द करने के मुद्दे पर लंबी सुनवाई चली. कहा कि यह तकनीकी कार्य है. सरकार ने करार रद्द करने के बाद टेंडर निकाली, लेकिन कार्य किसी को आवंटित नहीं किया. एचएसआरपी वाहनों की सुरक्षा के लिए जरूरी है. सुनवाई के दाैरान अदालत ने सरकार के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे इस मसले पर सभी पक्षों के साथ विचार करें. इसका समाधान निकालने के बिंदु पर निर्णय लेते हुए अदालत को अवगत कराया जाये. इसके लिए राजकीय अधिवक्ता राजेश शंकर के आग्रह पर अदालत ने सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है. सरकार यदि निर्णय नहीं ले पाती है, तो अदालत फैसला सुनायेगी.

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