बच्चों पर शुरू से ही दें ध्यान डॉक्टर की तस्वीर लता मेंलता रानी @ रांची बच्चे जन्म के पहले दो साल यह नहीं समझ पाते हैं कि क्या अच्छा है और क्या गलत? छोटे बच्चे कुछ भी छू लेते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम नहीं होता वह क्या है? उससे क्या फायदा और नुकसान है? मनोचिकित्सक डाॅ अनुराधा वत्स कहती हैं कि करीब दो वर्षों के बाद बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति आती है. उन्हें हम हर सीख देते हैं. उनकी जरूरत को पूरा करते हैं. इस तरह बच्चों को ये सभी चीजें अच्छी लगने लगती हैं. इन चीजों पर पूरी तरह आश्रित हो जाते हैं. इसके बाद जब बच्चे बड़े होते हैं, तब माता-पिता बताते हैं कि यह गलत है. शुरू में खुद के आराम के लिए बच्चों को हर चीज उपलब्ध कराते हैं, वहीं आदत आगे जाकर जिद में बदल जाती है. ……………………………….. बच्चों को शुरू से मिले ट्रेनिंग डाॅ अनुराधा कहती हैं कि पहले बच्चों को हम फोन, लैपटॉप आदि दे देते है. जब बच्चा उसमें रम जाता है, तो माता-पिता कहते हैं कि वह पढ़ता नहीं है. ऐसे में अभिभावकों को यह देखना चाहिए कि आप अपने बच्चे के लिए क्या कर रहे हैं? उसे कितना कंट्रोल में रख पाए हैं. इसलिए शुरू से बच्चों को ट्रेनिंग देनी चाहिए…………………………..प्यार से समझाएंकभी-कभी पिता के डांटने पर मां बच्चे का सपोर्ट कर देती हैं. इससे बच्चे को लगता है कि उसकी गलती पर भी कोई सपोर्ट करनेवाला है. इसके बाद वह अपनी बात मनवाना जान जाते हैं. ऐसे में मां को बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए. …………………………………… धमकी की आदत : बच्चों में धमकी देने की आदत अचानक नहीं आती. वह पहले से ही सीखा होता है. घर या कहीं किसी को धमकी देते सुनते हैं. इससे लगता है कि उनकी डिमांड भी इसी तरह पूरी हो जायेगी. कार्टून कैरेक्टर भी जिम्मेदार : बच्चे कार्टून कैरेक्टर को एक लेवल तक समझते हैं. कुछ कैरेक्टर ऐसे भी होते हैं, जो गलत भूमिका में होते हैं. बच्चे इनसे भी कुछ सीखते हैं. इसलिए बच्चों को अच्छे चैनल ही देखने दें. जरूरत के अनुसार डिमांड पूरी करें : यदि बच्चा किसी चीज की डिमांड कर रहा है, तो उसकी जरूरतवाली सामग्री ही दें. न कि दूसरों के साथ कांपिटिशन करने के लिए . आप बच्चों को उस चीज की जरूरत के बारे में बतायें. बच्चों को कोई भी बात उदाहरण देकर समझायें. कहानियां सुनायें. मोटिवेट करें. बच्चों का रोल मॉडल बनें : बच्चों के रोल मॉडल उनके माता-पिता होते हैं. अभिभावक जैसा करते हैं बच्चे भी वैसा ही करना चाहते हैं. इसलिए बच्चों का रोल मॉडल बनें. घर का वतावरण शांत रखें. रात को सोते समय कम से कम 10 मिनट तक बच्चों की बातों को सुनें. अपनी बात शेयर करें. उनके दोस्त और उनकी गलतियों के बारे में बतायें. उनके बाल सहलायें. बच्चे के साथ बिल्कुल फ्री रहें, ताकि कोई गलती करने पर वह आपसे शेयर कर सके. डाॅ लीना नारायण के अनुसार बच्चों को समय दें. अपने काम से ज्यादा परिवार को अहमियत दें़ बच्चों के एक्सप्रेशन को इंजॉय करें. उनके साथ उनकी खुशियों को शेयर करें. बच्चों के साथ किताब पढे़ं. खेले. कहानियां सुनायें. उनके साथ रहें.एक रुटीन के साथ उनका टाइम टेबल बनायें. उनके जीवन में अनुशासन भरें. शुरू से ही नीति की शिक्षा दें. उनका उत्साह बढाए़ं हर बच्चे में अलग विशेषता होती है. उनकी विशेषताओं को समझें. अपनी इच्छा न थोपें़ टीवी पर सलेक्टेड प्रोग्राम ही देखने दें. टीवी देखने का समय बांध दें. अपने बच्चों को किसी दूसरे के साथ तुलना न करें. उनकी विशेषताओं को सामने लायें. बार-बार उनकी कमियां न गिनायें. इन सब से ऊपर है कि आप अपने घर में कैसा व्यवहार करते हैं. आप जैसा व्यवहार करेंगे, बच्चा भी वैसा ही व्यवहार करेगा. इसलिए अपने घर में एक अच्छा इनवायरमेंट बनायें रखें.
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बच्चों पर शुरू से ही दें ध्यान
बच्चों पर शुरू से ही दें ध्यान डॉक्टर की तस्वीर लता मेंलता रानी @ रांची बच्चे जन्म के पहले दो साल यह नहीं समझ पाते हैं कि क्या अच्छा है और क्या गलत? छोटे बच्चे कुछ भी छू लेते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम नहीं होता वह क्या है? उससे क्या फायदा और नुकसान है? मनोचिकित्सक […]
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