रांची: राज्य में बंद हो गयी कोयला खदानों में मछली पालन किया जायेगा़ इसकी संभावना तलाशने के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय और सीएमपीडीआइ के बीच समझौता हुआ है़ भारत सरकार ने इसके लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय को दो करोड़ रुपये की स्वीकृति दी है. अभी यह योजना तीन साल के लिए स्वीकृत की गयी है.
मछली पालन की संभावना मिलने पर इसे 10 साल के लिए स्वीकृति दी जा सकती है. खाने वाली मछली का जीवन पानी में 25 से 30 फीट की गहराई तक ही होता है. इसके बाद मछली को जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन नहीं मिल पाती राज्य में कोयला कंपनियाें द्वारा जो खदान खुदाई कर छोड़ दी गयी है, उसकी गहराई 300 से 400 फीट तक है. पानी में ऑक्सीजन की कमी है. इतनी गहराई में मछली के जीवन को कैसे बचाया जाये, इस पर अनुसंधान किया जाना है. इतनी गहराई में पानी के तापमान में भी अंतर हो जाता है. इससे भी मछली को नुकसान पहुंचता है.
केज कल्चर की संभावना पर भी विचार
विशेषज्ञों ने बताया कि केज कल्चर से मछली पालन की संभावना पर भी विचार हो रहा है. इसमें एक-दो साल मछली ली जा सकती है़ मछली का खाना नीचे चले जाने पर एक समय के बाद अमोनिया गैस बनने लगेगी़ इससे मछली के जीवन को नुकसान पहुंचेगा़ बीएयू का मत्स्य विभाग सभी संभावनाओं पर विचार करने के बाद खदान में काम करने जा रहा है. पहले बीएयू को भुरकुंडा में खदान दिया गया था. तकनीकी कारणों से इस पर काम नहीं हो पाया. अब दूसरी खदान खोजी जा रही है.
देश में इस तरह का पहला काम
विश्व में इस तरह के काम की जानकारी अब तक नहीं है. कई अंतरराष्ट्रीय संस्था से भी इस मुद्दे पर बात की गयी, किसी ने इसमें सहयोग नहीं किया है. अगर इस दिशा में प्रगति हुई तो यह देश में अपने स्तर का पहला काम होगा. इससे झारखंड जैसे राज्य को बहुत लाभ होगा.
डॉ एके सिंह, अध्यक्ष एक्वाकल्चर विभाग, बीएयू