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गवाही: अमरजीत बलिहार हत्याकांड में बॉडीगार्ड बयान से मुकरा, कोर्ट में कहा गोली चली, तो मैं हो गया था बेहोश

रांची: पाकुड़ के पूर्व एसपी अमरजीत बलिहार समेत पांच पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में एक अहम गवाह ही अपने बयान से मुकर गया. शहीद अमरजीत बलिहार के अंगरक्षक रहे हवलदार बबलू मुर्मू ने अदालत में कहा है कि वह बेहोश हो गया था, इस कारण वह घटना में शामिल नक्सलियों को नहीं देख पाया […]

रांची: पाकुड़ के पूर्व एसपी अमरजीत बलिहार समेत पांच पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में एक अहम गवाह ही अपने बयान से मुकर गया. शहीद अमरजीत बलिहार के अंगरक्षक रहे हवलदार बबलू मुर्मू ने अदालत में कहा है कि वह बेहोश हो गया था, इस कारण वह घटना में शामिल नक्सलियों को नहीं देख पाया था. पुलिस अब तक घटना में शामिल 12 नक्सलियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है. सभी के खिलाफ ट्रायल चल रहा है. इसमें भाकपा माओवादी के स्पेशल एरिया कमेटी सदस्य प्रवीरदा व सीमांत सोरेन आदि शामिल हैं. अदालत में गवाह के मुकरने की जानकारी पुलिस के आला अधिकारियों को भी मिली है.

02 जुलाई 2013 को हुई थी घटना
पाकुड़ के पूर्व एसपी समेत पांच पुलिसकर्मी 02 जुलाई 2013 कोे शहीद हुए थे. एसपी अमरजीत बलिहार दुमका में डीआइजी की बैठक में पहुंचे थे. बैठक के बाद वह स्कॉरपियो से पाकुड़ लौट रहे थे. काठीकुंड थाना क्षेत्र के आमतल्ला गांव के पास नक्सलियों ने घात लगा कर एसपी के वाहन पर हमला किया था. पहले विस्फोट किया, जिससे वाहन क्षतिग्रस्त हो गया. इसके बाद एसपी व अन्य पुलिसकर्मियों ने गाड़ी से उतर कर सड़क किनारे झाड़ी में मोरचा लिया, लेकिन नक्सलियों ने घेर कर अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें एसपी समेत पांच पुलिसकर्मी शहीद हो गये थे. इस घटना में अंगरक्षक बबलू मुर्मू बच गया था.

ट्रायल पर ध्यान नहीं देती पुलिस
नक्सलियों के खिलाफ दर्ज मामलों के ट्रायल को पुलिस विभाग अक्सर हल्के में लेता है. न चार्जशीट दाखिल करते वक्त सतर्कता बरतता है, न समय पर गवाहों को कोर्ट में पेश करता है. यहां तक कि पुलिस के लोग समय पर गवाही देने भी नहीं पहुंचते हैं. इस कारण कई बड़े मामलों में नक्सली या तो बरी हो गये या जमानत पर रिहा हो गये. यहां उल्लेखनीय है कि राज्य पुलिस ने जिन नक्सलियों को टॉप-20 में रखा है, उनमें से आठ पहले भी गिरफ्तार हुए थे. वे जमानत पर छूट गये या फिर रिहा हो गये.

मुकरते रहे हैं गवाह
नथुनी मिस्त्री पर पुलिस ने पोटा लगाया था. कोर्ट में पुलिस अफसर अपने बयान पर कायम नहीं रहे. वह पोटा से बरी हो गये.
लोहरदगा के तत्कालीन एसपी अजय सिंह की हत्या में भी पुलिस के गवाह कोर्ट में मुकर गये थे.
बुंडू के तत्कालीन डीएसपी प्रमोद सिंह हत्याकांड में भी पुलिस के गवाह कोर्ट में सही तरीके से अपनी बात नहीं रख सके.

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