बंगाली समुदाय में दुर्गा पूजा का उल्लास फोटो लाइफ में बंगाली पूजा के नाम से लाइफ रिपोर्टर @ रांची बंगाली समुदाय में दुर्गा पूजा का काफी उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस समुदाय का यह सबसे बड़ा पर्व है़ पश्चिम बंगाल में 10 दिनों तक दशहरे की धूम रहती है. लोग पारंपरिक तरीके से पूजा-अर्चना करते हैं. रांची में भी बंगाल की तरह ही पारंपरिक पूजा की झलकियां देखती हैं. आगोमनी, ढाक धूलि नाच, वेलवरण, संध्या आरती, शंख ध्वनि, उल्लू ध्वनि से पूजा की शुरुआत कर मां का आवाहन किया जाता है़ पकवान, मिठाइयां के साथ-साथ पहनावे पर भी जोर रहता है़ उपहार और आशीर्वाद का सिलसिला विजय दशमी के बाद भी जारी रहता है. यह पर्व का सांस्कृतिक महत्व भी है़ पष्ठी से होती है पूजा की शुरुआत बंग समुदाय में षष्ठी से पूजा आरंभ होती है़ वैसे महालया के बाद पूजा आरंभ मानी जाती है़, लेकिन षष्ठी के दिन बेलवरण और बोधन होता है़ कलश की स्थापना होती है. फिर मां का पट खुल जाता है़ पट खुलने के बाद महिलाएं मां का शृंगार करती हैं. पूजा में महिला और पुरुष दोनों की भागीदारी समान होती है़ पूजा के वेलवरण से लेकर विसर्जन तक महिला और पुरुष दोनों शामिल होते है़ं षष्ठी के दिन महिलाएं रखती है व्रत षष्ठी के दिन वैसी महिलाएं जिनके बच्चे होते हैं, वह अपने बच्चों के लिए व्रत रखती है़ं उस दिन व्रती महिलाएं चावल नहीं खाती. शाम को लूची खाने का रिवाज है़ बंगाली समुदाय में मछली बहुत ही शुभ मानी जाती है़ इसलिए पूजा के दौरान हर दिन मछली बनाना शुभ होता है़ सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी को मछली बनती है़ सप्तमी को नवपत्रिका नवपत्रिका अर्थात केला के पेड़ में मां के नौ रूप के समान नौ तरह के पूजन सामग्री से सजाया जाता है़ इसमें फल फूल तील, हल्दी आदि मुख्य हाेते है़ं सत्पती को नवपत्रिका का पोखर में प्रवेश होता है़ महिलाएं एकसाथ पूजा के लिए जाती हैं. वहां से लौटने के बाद मां की पूजा की जाती है़ आरती के बाद पुष्पांजलि होती है़ सप्तमी के दिन संध्या आरती के बाद मां को शीतल प्रसाद आदि चढ़ाया जाता है़ अष्टमी को बलि और खिचड़ी भोग अर्पित किया जाता है. नवमी की आरती और पुष्पांजलि महत्वपूर्ण हाेती है़ दशमी को अपराजिता पूजा होती है़ महिलाएं मां को सिंदूर लगा कर सिंदूर खेला की परंपरा निभाती है़ं सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती है़ं कलश का विसर्जन किया जाता है़ कुल्ला कुल्ली और विजया विजय दशमी के दिन जहां महिलाओं में मां और सुहागिनों के साथ सिंदूर खेलने और पुरुषों में आलिंगन होकर बधाई देने की परंपरा है. बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है़ छोटे को उपहार और पैसे देने की परंपरा है़ छोटे बड़ों के घर विजया करने अर्थात मिठाई लेकर आशीर्वाद लेने जाते है़ं यह सिलसिला पूजा के बाद कुछ दिनों तक चलता रहता है़ …………………….दुर्गा पूजा बंगालियों का धार्मिक ही नहीं सांस्कृतिक पर्व भी है़ महालया के दिन से बंग समुदाय पूजा के उल्लास में डूब जाता है़ दुर्गा बाड़ी में महालया के दिन समुदाय के लोग जुटते हैं. सांस्कृतिक कार्यक्रमों का समावेश होता है़ सुबिर लाहिड़ी, यूनियन क्लब ……………………..बंगालियों में पूजा को लेकर जितनी भागीदारी पुरुषोें की होती है उतनी ही महिलाओं की होती है़ वेलवरण के लिए सब महिलाएं लाल पाढ़ सादा साड़ी में शंख ध्वनि और उल्लू ध्वनि के साथ तालाब तक जाती है़ं वहां पूजा करके मां के पंडाल तक पहंचती है़ं इस दौरान हमारी बंगाली संस्कृति की झलक देखी जा सकती है़ बुलबुल सरकार, देशप्रिय क्लब
बंगाली समुदाय में दुर्गा पूजा का उल्लास
बंगाली समुदाय में दुर्गा पूजा का उल्लास फोटो लाइफ में बंगाली पूजा के नाम से लाइफ रिपोर्टर @ रांची बंगाली समुदाय में दुर्गा पूजा का काफी उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस समुदाय का यह सबसे बड़ा पर्व है़ पश्चिम बंगाल में 10 दिनों तक दशहरे की धूम रहती है. लोग पारंपरिक तरीके से […]
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