चेतिये, नहीं तो पीने के पानी के लिए तरसेंगे10 साल में खत्म हो सकता है भूगर्भ जलमौसम का मिजाज बदला है़ इस वर्ष औसत से कम वर्षा हुई है़ सूखे की स्थिति है़ किसान संकट में है़ं डैम, नहर, तालाब पानी से भरे नहीं है़ं कंक्रीट के बढ़ते जंगल ने जलस्रोतों को पहले ही नुकसान पहुंचा दिया है़ कम वर्षा के कारण जलस्रोत रिचार्ज नहीं हो पाये है़ं शहरी इलाकों में प्राकृतिक जल चक्र पूरा नहीं हो रहा है. हरियाली खत्म हो गयी है. नादियां बरसाती नालों का रूप लेती जा रही है. दूर-सुदूर की बात छोड़िये, नदियों के आसपास के क्षेत्र में भी भूमिगत जलस्रोत पाताल तक पहुंच गये हैं. डीप बोरिंग फेल हो रहे हैं. कई जगहों पर हजार फीट की गहराई में भी पानी नहीं मिल रहा है. ऐसे में स्थिति और भी भयावह होनेवाली है़ अभी से हम नहीं चेते, तो लोग पीने के पानी के लिए तरसेंगे़ डैमों से शुरू हो गयी राशनिंगरांची के आसपास के सभी डैम में पानी की कमी है. वैसे गरमी में डैमों में पानी की कमी होती थी. लेकिन, इस साल शहर में पानी की राशनिंग मानसून लौटने के तुरंत बाद शुरू हो गयी है. स्वर्णरेखा नदी पर अतिक्रमण की कीमत हटिया डैम चुका रहा है. ठंड की शुरुआत से पहले ही हटिया डैम का पानी रिकाॅर्ड स्तर पर कम हो गया. पानी की कटौती करने की नौबत आ गयी है. रुक्का डैम में पिछले वर्ष की तुलना में आठ फीट जलस्तर कम हो गया है. गोंदा की स्थिति भी बेहतर नहीं है. वहां भी गत वर्ष की तुलना में दो फीट तक पानी कम हो गया है. विशेषज्ञ गरमी के मौसम में त्राहिमाम का अंदाजा लगा रहे हैं. उनको गरमी की शुरुआत से ही सभी डैमों से पानी की राशनिंग का अंदेशा है. हर साल कम होता जाता है डैमों का जलस्तरडैम ® 2011 में जलस्तर ® 2012 में जलस्तर ® 2013 में जलस्तर ® 2014 में जलस्तर ® 2015 में जलस्तरहटिया ® 2129 ® 2126 ® 2126 ® 2126 फीट ® 2117 फीटरुक्का ® 1930 ® 1929 ® 1930 ® 1932 फीट ® 1924 फीटगोंदा ® 2129 ® 2127 ® 2125 ® 2126 फीट ® 2122 फीटसेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट (2013-14) में इस बात का खुलासा हुआ है कि अगर इसी रफ्तार से भू-गर्भ जल का दोहन जारी रहा, तो 10 साल में रांची में भूगर्भ जल खत्म हो सकता है. ऐसी स्थिति में पानी का गंभीर संकट उत्पन्न हो जायेगा. रांची के कई इलाकों में बड़ी-बड़ी इमारतें बनने के बाद तेजी से भूगर्भ जल का दोहन किया जा रहा है. इससे तेजी से जलस्तर नीचे जा रहा है. बोर्ड के सर्वे से पता चला है कि राज्य में हर वर्ष जलस्तर औसतन छह फीट कम होता जा रहा है. रिपोर्ट बताती है कि राज्य में औसतन 1400 मिमी बारिश होती है. इसके बाद भी भूमिगत जल दोहन का 4.46% पानी ही रिचार्ज हो पाता है. बारिश के 80 फीसदी से अधिक पानी का संचयन राज्य में नहीं होता है. नतीजा, एक वर्ष में राज्य के कुओं का औसत जलस्तर 19 मीटर तक नीचे जा रहा है. फेल होनेवाले डीप बोरिंग की संख्या में गुणात्मक वृद्धि हो रही है. चापानलों की पहुंच से पानी दूर होता जा रहा है. लगातार कम होती बारिशरांची में भी मानसून में अब 1400 मिमी बारिश नहीं होती है. राज्य गठन के बाद रांची में मात्र दो बार 1400 मिमी से अधिक बारिश हुई है. राज्य में सबसे अधिक बारिश रांची जिले में होती है. 2006 में 1600 से अधिक तथा 2011 में 2100 मिमी से अधिक बारिश हुई थी. इसके बाद हर बार एक हजार या उसके आसपास ही बारिश हुई है. पिछले चार साल से जून से सितंबर माह तक औसत बारिश एक हजार मिमी से नीचे हो रही है. 2015 में जून से सितंबर तक मात्र 622 मिमी बारिश ही रांची में हुई. यह राज्य के इतिहास में अब तक की सबसे कम बारिश है. वर्ष® बारिश (मिमी में) 2000®10412001®10592002®11272003®12162004®10222005®8972006®16342007®10992008®11772009®10612010®10952011®21062012®9172013®7212014®6822015®622जल संकट का क्या है कारण – रिचार्ज के परंपरागत स्रोत (जैसे तालाब, नाले, नदी, मैदान) बंद होते जा रहे हैं- हरियाली लगातार कम होती जा रही है- कच्ची सड़कों की जगह पीसीसी पथ बन गये हैं- भवनों में शॉकपिट नहीं बनाये जा रहे हैं – वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा नहीं मिलता- डीप बोरिंग के बाद पानी के रिचार्ज का इंतजाम नहीं होता- बारिश के पानी को रोकने के लिए व्यवस्था नहीं हैक्या है निदान- छोटे घरों में भी शॉकपिट बने- वाटर हार्वेस्टिंग – पेड़-पौधों को लगायें व बढ़ायें- पीसीसी सड़क पर रोक लगे- पानी की बर्बादी रोकें
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