गुमला: सरकारी सुविधाआें से वंचित चैनपुर प्रखंड के चार गांवाें के 300 आदिम जनजाति असुर परिवाराें ने ईसाई धर्म अपना लिया है. पहले ये लोग सरना धर्म मानते थे. इन लाेगाें ने गांव के विकास व बच्चों की शिक्षा के लिए यह कदम उठाया है. ये गांव हैं : डोकापाट, लुपुंगपाट, भंडियापाट, बेसनापाट व नवाटोली. चाराे गांव पहाड़ व घने जंगल के बीच है. गांव जाने के लिए टेढ़े-मेढ़े रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है. यहां काेई प्रशासनिक अधिकारी नहीं जाते. शिक्षा का स्तर सबसे खराब है.
सरकारी उदासीनता से आक्रोश : लुपुंगपाट में कुल 74 परिवार हैं. गांव के श्रीयानुस असुर (60) व रफैल असुर (60)ने कहा कि सरकार व प्रशासन ने हमें क्या दिया. हम यहां समस्याओं से घिरे हैं. मर- मर कर जी रहे हैं. बिजली का पोल व तार लगा दिया. इसके अलावा गांव में कुछ नहीं है. चलने के लिए सड़क नहीं. पीने के लिए पानी नहीं. राशन तक सही ढंग से नहीं मिलता. इंदिरा आवास तो हम गरीबों के लिए नहीं है. बच्चों के भविष्य की चिंता थी. इसलिए पूरे गांव ने ईसाई धर्म अपना लिया है.
कई छात्र मैट्रिक व इंटर पास : 65 वर्षीय जवाकिम असुर ने कहा कि ईसाई धर्म अपनाने के बाद जाे बच्चे स्कूल जाने को तैयार नहीं थे, अब स्कूल जाने लगे हैं. गांव के 30 असुर बच्चे मैट्रिक पास व 15 इंटर पास है. नौवीं कक्षा के छात्र अमर असुर ने कहा कि स्कूल जाते हैं. कुछ करने की तमन्ना है. इस गांव में कोई सरकारी नौकरी में नहीं है.
झरना का पानी पीते हैं : इन गांवों के लोग आज भी आदिम युग में जी रहे हैं. भंडियापाट के भंवरा असुर ने कहा कि गांव में चापानल लगे थे. पर, सब खराब है. लोग झेड़िया नाला (झरना)का पानी पीते हैं. लोगों का कहना है कि सालों भर इसमें पानी रहता है. इसी में नहाना- धोना भी करते हैं.
बिशुनपुर में भी 60 बिरजिया परिवारों ने अपनाया था ईसाई धर्म
गुमला जिले के बिशनपुर प्रखंड से 50 किमी दूर जिलपीदह गांव में 60 बिरजिया परिवारों ने भी ईसाई धर्म अपनाया है़ बच्चों की पढ़ाई के लिए इन लोगों ने सरना धर्म छोड़ दिया़ गांव के लोगों का कहना था कि ईसाई धर्म अपनाने के बाद अब कम से कम बच्चे पढ़ तो सकेंगे. हमारा गांव विकास से कोसो दूर है़ गांव में कोई काम नहीं. गांव में स्कूल तक नहीं है़