गुमला: सिर पर गांधी टोपी. बदन पर खादी वस्त्र. हाथों में शंख व घंट. यही टाना भगतों की पहचान है. देश की आजादी में टाना भगत महात्मा गांधी के कदम से कदम मिलाकर चले. पर आज वे अपने ही गांव-घर में बेगाने हाे गये हैं. जमीन पर मालिकाना हक को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. सत्य व अहिंसा के मार्ग पर चलनेवाले टाना भगतों को अपने हक के लिए सरकार के समक्ष आंदोलन करना पड़ रहा है़ आज भी ये लोग अपनी समस्याओं को लेकर प्रखंड, जिला मुख्यालय से लेकर राज्य की राजधानी तक आवाज उठा रहे हैं.
सुभाषचंद्र के साथ काम किया
महात्मा गांधी व सुभाषचंद्र बोस से मिल कर टाना भगतों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था. आजादी का आंदोलन हुआ, देश आजाद हुआ, संविधान बना. सभी जाति के लोगों को अधिकार मिला. पर टाना भगत आज भी अपने हक व अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
आने वाली पीढ़ी की चिंता
टाना भगतों की संख्या गुमला जिले के बिशुनपुर, भरनो व घाघरा प्रखंड में सबसे अधिक है. इनकी आबादी गुमला जिले में लगभग 5500 है. घाघरा प्रखंड के कच्चापाड़ा, लूदगो, डुको, नवाडीह में सबसे अधिक टाना भगत है. टाना भगतों ने एक सूची तैयार की है. इसमें 551 परिवार है. आज भी बीहड़ जंगल व पहाड़ों के बीच रहने वाले टाना भगतों के गांवों की दशा दयनीय है. विकास नहीं पहुंच पाया है. टाना भगत जाति में कुछ लोग पढ़े-लिखे हैं, जो अपनी भावी पीढ़ी को लेकर चिंतित हैं.
टाना भगतों का आंदोलन जारी है
टाना भगतों की हालात कैसे सुधरे, इसके लिए टाना भगतों ने अखिल भारतीय गुमला जिला टाना भगत उत्थान समिति का गठन किया है. इसके बैनर तले टाना भगत अपनी मांगों को लेकर प्रखंड से लेकर जिला मुख्यालय यहां तक कि राजधानी रांची में भी धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं. पर, इनकी समस्या बरकरार है.
तिरंगा झंडे व तुलसी की पूजा करते हैं
बिशुनपुर के सचिव भिखारी टाना भगत ने कहा कि आज भी टाना भगत गांधी जी की टोपी व खादी वस्त्र पहनते हैं. घर के आंगन में सादा तिरंगा झंडा व तुलसी पौधे का चबूतरा रखना अनिवार्य है. टाना भगत समाज के लोग सुबह उठने के बाद पहले तिरंगा झंडा व तुलसी के पौधे की पूजा करते हैं. इसके अलावा धरती माता, चांद, सूर्य, हवा, पानी, गो-माता व ठनका (वज्रपात) की पूजा की जाती है. उसके बाद ही घर में कोई भोजन करता है.