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विडंबना: सरकारी अंगरेजी स्कूलों को नहीं मिल रहे बच्चे

रांची: राज्य के सरकारी अंगरेजी स्कूलों में अधिकांश सीटें रिक्त रह जा रही हैं. इन स्कूलों में अंगरेजी माध्यम के बच्चे नहीं मिलते. केंद्रीय विद्यालय की तरह खोले गये मॉडल स्कूलों में इस वर्ष 979 सीटें रिक्त रह गयीं हैं. वर्ष 2015 में 89 मॉडल स्कूलों में 3560 बच्चों के नामांकन के लिए टेस्ट लिया […]

रांची: राज्य के सरकारी अंगरेजी स्कूलों में अधिकांश सीटें रिक्त रह जा रही हैं. इन स्कूलों में अंगरेजी माध्यम के बच्चे नहीं मिलते. केंद्रीय विद्यालय की तरह खोले गये मॉडल स्कूलों में इस वर्ष 979 सीटें रिक्त रह गयीं हैं. वर्ष 2015 में 89 मॉडल स्कूलों में 3560 बच्चों के नामांकन के लिए टेस्ट लिया गया था. इनमें 2581 बच्चों का चयन किया गया. राज्य के 89 में से 84 स्कूलों में 979 सीटें रिक्त रह गयीं हैं. राज्य के 89 मॉडल स्कूल में से मात्र पांच स्कूल ऐसे हैं जिनमें पर्याप्त विद्यार्थी चयनित हुए.

गत वर्ष भी इन स्कूलों में सीटें खाली रह गयी थीं. विद्यालय में नामांकन टेस्ट का रिजल्ट गुरुवार को झारखंड एकेडमिक काउंसिल के अध्यक्ष डॉ आनंद भूषण ने जारी किया. विद्यालय में सबसे अधिक एसटी वर्ग की सीटें रिक्त रह गयीं. एसटी वर्ग के बच्चों लिए कुल 1128 सीटें आरक्षित हैं. इनमें से मात्र 454 सीट पर ही नामांकन हुआ है. इसके अलावा सामान्य वर्ग के 1780 सीट में 1705, एससी वर्ग के 271 में 148, एमबीसी वर्ग में 229 के लिए 141 व बीसी वर्ग के 152 सीट में 133 बच्चों का चयन हुआ है.
निजी स्कूल से करना था मुकाबला : मॉडल स्कूल की परिकल्पना एक ऐसे सुविधा संपन्न और आदर्श सरकारी स्कूल की थी, जो निजी स्कूल से न केवल मुकाबला कर सके, बल्कि कई मायनों में उससे बेहतर हो. विद्यालय प्रखंड मुख्यालय के आसपास खोलने के पीछे ग्रामीण क्षेत्र के प्रतिभाशाली बच्चों को अपने घर के आसपास अंगरेजी माध्यम में बेहतर शिक्षा देना उद्देश्य है. विद्यालय में पठन-पाठन में आधुनिक तरीकों के इस्तेमाल पर जोर दिया जाना था. 15 अगस्त 2007 को प्रधानमंत्री ने इसकी घोषणा की थी. प्रथम चरण में देश भर में 6000 मॉडल स्कूल खोले जाने थे़ अब केंद्र सरकार ने इस योजना को बंद कर दिया है.
अंगरेजी माध्यम में पढ़ाई
विद्यालय में अंगरेजी माध्यम से पढ़ाई होती है. विद्यालय में कक्षा छह से 12वीं तक की पढ़ाई की व्यवस्था है. प्रत्येक कक्षा में दो सेक्शन रखने का प्रावधान है. विद्यालय में नामांकन प्रवेश परीक्षा के आधार पर होता है. स्कूलों में पाठ्यक्रम भी अलग-अलग तरीके से बनाया जाना है. इससे बच्चों में नेतृत्व क्षमता, समूह भावना, कौशल विकास, भागीदारी क्षमता का विकास हो सके. पर यह व्यवस्था धरातल पर नहीं उतर पायी है.

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