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संस्कृति का नहीं करें परित्याग

रांची : डॉ फादर सुभाष आनंद ने कहा कि ईश्वर को स्वीकार करने के लिए हमें अपनी संस्कृति के परित्याग की जरूरत नहीं. अपने विश्वास के सूत्रीकरण व सुस्पष्ट करने के लिए हम उनकी बात भी सुन सकते हैं, जो दूसरे विश्वास के हैं. वे शनिवार को मसीही ईश शास्त्र अध्ययन केंद्र, संत अलबर्ट कॉलेज […]

रांची : डॉ फादर सुभाष आनंद ने कहा कि ईश्वर को स्वीकार करने के लिए हमें अपनी संस्कृति के परित्याग की जरूरत नहीं. अपने विश्वास के सूत्रीकरण व सुस्पष्ट करने के लिए हम उनकी बात भी सुन सकते हैं, जो दूसरे विश्वास के हैं. वे शनिवार को मसीही ईश शास्त्र अध्ययन केंद्र, संत अलबर्ट कॉलेज के छात्रों से रू-ब-रू थे. उन्होंने विश्वास प्रशिक्षण के नये आयाम व छोटानागपुर में चुनौतियां विषय पर अपने विचार रखे़
चर्च भवन की सुंदरता और वाह्य आडंबरों पर पैसे खर्च न करें : उन्होंने कहा कि मसीही कलीसिया के लिए प्रतिकूल समुदाय बनना महत्वपूर्ण है. एक ऐसा समुदाय जो चर्च भवन की सुंदरता और वाह्य आडंबरों पर पैसे व संसाधन खर्च नहीं करता. प्रतिकूल समुदाय होने के लिए प्रतिकूल व्यक्तित्वों का होना भी जरूरी है. यह एक बड़ी चुनौती है. मसीही होने का अर्थ साक्षी बनना और शहादत देना है़ इसके लिए ध्यानशील जीवन जरूरी है. दूसरों को विश्वास में आगे बढ़ाने के लिए भी हमें ध्यानशील होना होगा़ विश्वास प्रशिक्षण के निमित्त व्यक्ति के रूप में हमारे लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है.
उन्होंने बाइबल से अब्राहम के जीवन का उदाहरण दिया और कहा कि अब्राहम की विश्वास की यात्रा हमें बताती है कि विश्वास ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण है. हमें अपने जीवन में ईश्वर को सर्वोच्च स्थान देना है, जो सिर्फ ध्यान-मनन से ही संभव है. मुक्ति प्राप्त करने के लिए लोगों का हमारे नहीं, ईश्वर के साथ होना जरूरी है. हर व्यक्ति में मौजूद ईश्वर हमें उनके माध्यम से आशिष दे सकते हैं. ईश्वर प्रेम हैं. हम उनसे उनकी संतान के रूप में बातचीत करें. चाहें जो भी चुनौतियां आयेंगी, वे हमारे जीवन में अपनी योजनाओं को अवश्य पूरा करेंगे. हमारे विश्वास को हमारी मृत्यु में पूर्णता मिलती है़ ईश्वर के प्रति हमारी समझ और नैतिकता के मानकों के संदर्भ में हम तीर्थयात्री ही हैं. मंच का समचालन जॉन मिंज ने किया़

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