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त्रासदी ऐसी कि सबकुछ लुट गया
केदारनाथ में आयी प्राकृतिक आपदा में परिवार गंवाया, देवघर में खुद हुए घायल राजीव पांडेय, रांची सावन की दूसरी सोमवारी को देवघर में हुई भगदड़ में उत्तराखंड के गंगोत्री निवासी लक्की मिश्रा भी घायल हुए हैं. उन्हें सिर अौर गले में गंभीर चोटें आयी हैं. भगदड़ में जब भीड़ ने उन्हें रौंदा, तो वे बेहोश […]
केदारनाथ में आयी प्राकृतिक आपदा में परिवार गंवाया, देवघर में खुद हुए घायल
राजीव पांडेय, रांची
सावन की दूसरी सोमवारी को देवघर में हुई भगदड़ में उत्तराखंड के गंगोत्री निवासी लक्की मिश्रा भी घायल हुए हैं. उन्हें सिर अौर गले में गंभीर चोटें आयी हैं. भगदड़ में जब भीड़ ने उन्हें रौंदा, तो वे बेहोश हो गये, होश आने पर उन्होंने खुद को रिम्स के ट्रॉमा सेंटर में पाया. अभी भी वे सहमे हुए हैं, सिर्फ भगदड़ में घायल होने की वजह से नहीं, बल्कि इसलिए भी कि संकट की इस घड़ी में उनके साथ अपना कोई नहीं है, जो उनकी मदद कर सके. डॉक्टर्स अौर नर्स को छोड़ कर उनकी देखभाल करनेवाला कोई नहीं है.
इसे विडंबना कहें या कुछ अौर, पर लक्की मिश्रा के जीवन की ये अजीब त्रासदी है. 16 जून 2013 को आये केदारनाथ ( उत्तराखंड) की त्रासदी में उन्होंने अपने पूरे परिवार को खो दिया. अपनी आंखों के सामने अपने मां, पिता, भाई, बहन एवं दो मासूम बच्चों को पानी में बहते हुए देखा. उनके सिर पर बर्फ के टुकड़े गिर जाने से वे बेहोश हो गये और काेमा में चले गये. महीनों बाद होश आया और वहां भी उनकी देखभाल करनेवाला कोई नहीं था. आज भी वे अकेले हैं, वह भी उस जगह जहां उन्हें जाननेवाला कोई नहीं है. आंखों से आंसू जैसे थम से गये हैं.
…बच्चों की नहीं जाती यादें
लक्की कहते हैं कि उनके दो बच्चे थे. एक डेढ़ वर्षीय शिवम तो दूसरा छह माह का मिट्ठू. बच्चों की याद आज भी जेहन से निकलती नहीं है. अभी तो बच्चे उन्हें पहचान भी नहीं पाये थे. कुछ दिन ही उनका साथ रहा. पत्नी के साथ उन्होंने कई सपने सजाये थे. सोचा था एक बच्चे को इंजीनियर या डॉक्टर बनऊंगा, लेकिन सब धरा का धरा रह गया. अब तो बस जीवन बाबा के लिए है. जिंदगी तब तक है, जब तक बाबा का साथ है.
निगलने में दिक्कत, पर मिल रही है रोटी
एक तो खाने में दिक्कत, दूसरा कोई खिलाने वाला नहीं है, उस पर से रिम्स का कहर. रिम्स से जो खाना उन्हें मिल रहा है, उसे वे खा नहीं पा रहे हैं. रिम्स द्वारा रोटी व चावल दिये जा रहे हैं. जबकि ऐसे मरीज को लिक्विड डायट दिया जाता है. दूध-ब्रेड भी डायट में देना है, लेकिन लक्की को नहीं मिल रहा है. फिर भी वे किसी से कोई शिकायत नहीं करते हैं.
थोड़ा कम, लेकिन नकद पैसा दिया होता
लक्की बताते हैं कि उनका कहीं खाता नहीं है, जिसमें वह सरकार द्वारा दिया चेक जमा कर सकें. वह तो उत्तराखंड में रहते हैं. वे कहते हैं कि अगर सरकार को मदद करनी थी, तो थाेड़ा कम ही, पर नगद पैसा ही दे दिया होता. उन्होंने कहा कि अब तो जहर खाने के लिए दो रुपये भी नहीं हैं. किसी ने उनके मोबाइल व पैसे भी निकाल लिये. सिर्फ मोबाइल चार्जर एवं पर्स बचा है. वे चिंतित हैं कि आगे क्या करें.
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