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प्रणामी के प्रोजेक्ट को बर्ग पुरस्कार मिला
रांची : प्रणामी इस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के प्रोजेक्ट संतुष्टि को रेसिडेंशियल प्रोजेक्ट ऑफ द इयर (इस्ट) का पुरस्कार मिला है. दूसरे बर्ग रियल इस्टेट अवार्ड में प्रणामी के प्रबंध निदेशक विजय कुमार अग्रवाल ने यह पुरस्कार ग्रहण किया. सिंगापुर के बिजनेस एक्सिलेंस एंड रिसर्च ग्रुप (बर्ग) द्वारा भारत के डेवलपर्स, आर्किटेक्ट, इंटीरियर डिजाइनर को यह […]
रांची : प्रणामी इस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के प्रोजेक्ट संतुष्टि को रेसिडेंशियल प्रोजेक्ट ऑफ द इयर (इस्ट) का पुरस्कार मिला है. दूसरे बर्ग रियल इस्टेट अवार्ड में प्रणामी के प्रबंध निदेशक विजय कुमार अग्रवाल ने यह पुरस्कार ग्रहण किया.
सिंगापुर के बिजनेस एक्सिलेंस एंड रिसर्च ग्रुप (बर्ग) द्वारा भारत के डेवलपर्स, आर्किटेक्ट, इंटीरियर डिजाइनर को यह पुरस्कार दिया जाता है. कार्यक्रम में अमेरिका में जन्मे भारतीय आर्किटेक्ट प्रो क्रिस्टोफर चाल्र्स बेनिंगर को लाइफटाइम एचिवमेंट पुरस्कार मिला.
कार्यक्रम के दौरान बिल्डिंग स्मार्ट सिटिज- द माइनेलियल चैलेंज विषय पर पैनल डिस्कशन भी हुआ. बर्ग एडवाइजरी बोर्ड के चेयरमैन थॉमस मैकमहोन ने कहा कि भारतीय रियल इस्टेट समुदाय के बीच बर्ग पुरस्कारों की लोकप्रियता से काफी खुश हैं. यही सेक्टर भारत की शहरी आबादी के मैनेज कर सकता है. बर्ग पुरस्कारों में विभिन्न कैटेगरी में 15 पुरस्कार दिये गये.
सिंगापुर में रहनेवाले भारतीय व्यवसाय जगत के लोग इसमें शामिल हुए. कार्यक्रम को दौरान बेस्ट रियल इस्टेट कंसलटेंट ऑफ द इयर का पुरस्कार इंटीग्रेटेड प्रोपर्टी वेंचर मुंबई को, यंग एचिवर (फीमेल) जोनू रेड्डी को, मेल एचिवर नीतिन अग्रवाल को, फीमेल प्रोफेशनल ऑफ द इयर उज्मा इरफान को दिया गया. इसके अलावा भी देश के प्रमुख डेवलपर्स को पुरस्कृत किया गया.
राजीव पांडेय
रांची : अब चिकित्सा मरीजों की सेवा नहीं, पैसा कमाने का जरिया बनता जा रहा है. मेडिकल स्टूडेंट एमबीबीएस के बाद मालदार विभाग में नामांकन लेना चाहते हैं. हर मेडिकल स्टूडेंट अब अच्छी कमाई वाले विभाग में नामांकन लेना चाहते हैं.
भले ही इसके लिए उसे एक-दो साल इंतजार करना पड़े. पीजी में नामांकन के लिए तीन-चार विभागों की जबरदस्त डिमांड है. जानकारों के अनुसार चिकित्सा जगत में इस समय रेडियोलॉजी विभाग की सबसे ज्यादा डिमांड है. इसके बाद हड्डी, शिशु व सजर्री विभाग का नंबर आता है. सबसे कम मांग मेडिसिन विभाग की है. पीजी में जिस विद्यार्थी का रैंक पहला होता है, उसे रेडियोलॉजी विभाग मिलता है.
मेडिसिन विभाग में है कम प्रतियोगिता : चिकित्सा विशेषज्ञों की माने तो एमडी मेडिसिन में नामांकन के प्रति विद्यार्थियों की रुझान पहले से कम हुई है. फिलहाल एमडी मेडिसिन करने वाले चिकित्सकों की भरमार है. इसके कारण इनकी परामर्श की फीस भी बहुत कम है. जिसकी प्रैक्टिस चल गयी है उन्हीं के पास मरीजों की संख्या ज्यादा होती है. नये चिकित्सकों के लिए यह संघर्ष से भरा विभाग है.
एक ऑपरेशन व एक जांच, हजारों की कमाई
चिकित्सा जगत में सजर्न एवं डाइग्नो स्टिक की कमाई ज्यादा है. सूत्र बताते है कि सजर्न एक ऑपरेशन कर ले या रेडियोलॉजिस्ट एक महत्वपूर्ण जांच करें, तो हजारों रुपये की कमाई हो जाती है. वहीं फिजिशियन की कमाई कम होती है. एक फिजिशियन ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि उनके महीने भर का परामर्श शुल्क एक सजर्न व रेडियोलॉजिस्ट की एक दिन की प्रैक्टिस के बराबर है.
सीट कम, परमारामारी ज्यादा
मेडिकल साइंस में जिस विभाग की पीजी सीटें कम हैं, उनमें नामांकन के लिए उतनी ही प्रतियोगिता करनी पड़ती है.
उदाहरण के लिए रिम्स में रेडियोलॉजी विभाग में पीजी की दो सीटें हैं. एक सीट सेंट्रल और एक स्टेट कोटे की है. आर्थो में मात्र तीन सीटें हैं. शिशु विभाग में छह सीटें हैं. मेडिसिन एवं सजर्री विभाग में सीटें ज्यादा हैं, इसलिए मारामारी कम है. इन विभागों में मेडिकल स्टूडेंट ज्यादा रुचि नहीं दिखाते.
डाइग्नोस्टिक परटिक गया है इलाज
चिकित्सा जगत अब डाइग्नो स्टिक पर आधारित हो गया है. चिकित्सक अब जांच के आधार पर परामर्श देते है. पहले डॉक्टर बिना जांच कराये भी इलाज शुरू कर देते थे. एक चिकित्सक ने बताया कि इलाज का यह ट्रेंड तेजी से फैल रहा है. उन्होंने बताया कि जांच करा लेने से चिकित्सक भी निश्चिंत हो जाते है. कोई मरीज अगर इलाज पर सवाल उठाता है तो यह बताया जाता है कि जांच रिपोर्ट में यह लक्षण पाया गया था. यहीं कारण है कि रेडियोलॉजी विभाग की डिमांड बढ़ गयी है.
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