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रिम्स: एफरेसिस मशीन का उपयोग नहीं, लोग नयी तकनीक का फायदा नहीं उठा रहे हैं
रांची: रिम्स के ब्लड बैंक में एफरेसिस मशीन लग गयी है, पर लोग इसका लाभ नहीं ले रहे. ब्लड बैंक में यह मशीन दो साल से आ कर पड़ी है. अभी तक इसका इस्तेमाल नहीं हुआ है. महानगरों के अस्पतालों व एम्स सहित अन्य निजी अस्पताल में एफरेसिस पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है. यह […]
रांची: रिम्स के ब्लड बैंक में एफरेसिस मशीन लग गयी है, पर लोग इसका लाभ नहीं ले रहे. ब्लड बैंक में यह मशीन दो साल से आ कर पड़ी है. अभी तक इसका इस्तेमाल नहीं हुआ है. महानगरों के अस्पतालों व एम्स सहित अन्य निजी अस्पताल में एफरेसिस पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है. यह मशीन पूरे बिहार-झारखंड में सिर्फ रिम्स में ही है.
जानकारी के अभाव में प्लेटलेट्स एवं प्लाज्मा की आपूर्ति के लिए अभी भी होल ब्लड से ही प्लेटलेट्स बनाया जा रहा है. सूत्रों के अनुसार होल ब्लड से एक यूनिट प्लेटलेट्स निकालने में 350 रुपये खर्च होते हैं. पांच यूनिट के लिए 1750 रुपये लगेंगे. वहीं एफरेसिस मशीन से पांच यूनिट के लिए बीपीएल मरीज को 9,500 रुपये और एपीएल को 11,000 रुपये देने पड़ते हैं. हालांकि यह शुल्क देश के अन्य शहरों की तुलना में कम है.
क्या है एफरेसिस पद्धति
एफरेसिस पद्धति को सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसटीपी) कहा जाता है. इसके द्वारा डोनर से होल ब्लड के बजाय सिर्फ प्लेटलेट्स लिया जा सकता है. यह मशीन ब्लड के अन्य कंपोनेंट को डोनर के शरीर में लौटा देती है. डॉक्टरों के अनुसार एक डोनर से पांच यूनिट प्लेटलेट्स लिये जा सकते हैं. यह मरीजों के लिए होल ब्लड की तुलना में ज्यादा कारगर होता है.
चिकित्सक नहीं देते परामर्श
ब्लड बैंक के अधिकारियों की मानें, तो एफरेसिस पद्धति रिम्स में शुरू है, लेकिन इसका प्रचार-प्रसार नहीं हुआ है. रिम्स के चिकित्सक भी मरीज के परिजनों को इसकी जानकारी नहीं देते. एफरेसिस पद्धति से प्लेटलेट्स निकालने के लिए नहीं भेजा जाता है. इस पद्धति से कई गंभीर बीमारी: जीबी सिंड्रोम, माइस्थेनिया ग्रेविस का इलाज किया जा सकता है. बीमारी का इलाज प्लाज्मा से भी किया जा सकता है.
ये होंगे फायदे
एक बार पांच यूनिट प्लेटलेट्स की पूर्ति की जा सकती है
एक डोनर होने से प्लेटलेट्स की गुणवत्ता अधिक रहती है
मरीज के संक्रमित होने का खतरा बुहत कम रहता है
डोनर दो सप्ताह बाद फिर से प्लेटलेट्स डोनेट कर सकता है
एफरेसिस पद्धति की शुरुआत हो गयी है, लेकिन कोई आ ही नहीं रहा है. किट की कीमत ज्यादा है. इसलिए यह महंगा है. इस पद्धति से जो प्लेटलेट्स निकाला जाता है, वह ज्यादा लाभदायक है. मरीज को चढ़ाने के बाद संक्रमण होने का खतरा बहुत कम रहता है.
डॉ आर के श्रीवास्तव, इंचार्ज ब्लड बैंक
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