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मीठी ईद : खुशियों का त्योहार
इमतियाज गदर ईद मुसलमानों के प्रमुख त्याहारों में से एक है. ईद का अर्थ प्रसन्नता यानी खुशी है. इस दिन मुसलमान भाई सुबह-सवेरे उठ कर सबसे पहले स्नान करते हैं. इसके बाद बच्चे-जवान-बूढ़े सभी नये-नये वस्त्र बहन कर दो रिकअत शुक्राने की नमाज पढ़ने के लिए ईदगाह जाते हैं. ईदगाह खुले मैदान में होता है, […]
इमतियाज गदर
ईद मुसलमानों के प्रमुख त्याहारों में से एक है. ईद का अर्थ प्रसन्नता यानी खुशी है. इस दिन मुसलमान भाई सुबह-सवेरे उठ कर सबसे पहले स्नान करते हैं. इसके बाद बच्चे-जवान-बूढ़े सभी नये-नये वस्त्र बहन कर दो रिकअत शुक्राने की नमाज पढ़ने के लिए ईदगाह जाते हैं.
ईदगाह खुले मैदान में होता है, जहां पूरे वर्ष भर में केवल दो बार ही नमाज पढ़ी जाती है. एक बार बकरीद के समय और फिर यही ईद की नमाज. ईदगाह के बाहर का दृश्य अमूमन मेले जैसा होता है, जहां तरह-तरह के खिलौने और मिठाइयों की दुकानें सजी रहती हैं. ये दुकानें बच्चों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होती हैं. हिंदी के प्रमुख साहित्यकार प्रेमचंद ने अपनी कहानी ‘ईदगाह’ में वहां के दृश्यों का बड़े ही असरदार ढंग से वर्णन किया है.
ईद का त्योहार इसलामी कैलेंडर के रमजान महीने के बाद आये श्वाल महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है. रमजान इसलामी कैलेंडर का नवां और श्वाल दसवां महीना होता है.
इसलाम में रमजान का महीना बहुत पवित्र माना जाता है. इस महीने में तीसों दिन हर मुसलमान मर्द-औरत रोजे रखता है. रोजे रखना उन पर फर्ज (आवश्यक) हो जाता है. रोजा रखने का भी अपना एक नियम होता है. रोजा रखनेवाला, जिसे रोजेदार कहा जाता है, वह रात के तीसरे पहर उठ कर अपनी रुचि के अनुसार कुछ खाता-पीता है.
इस खाने को ‘सेहरी’ कहा जाता है. रोजेदार के लिए सेहरी करना अनिवार्य है, चाहे वह भर पेट खाने के बदले एक घूंट पानी ही क्यों न पिये. सेहरी का समय सुबह की फजर नमाज के समय से पहले समाप्त हो जाता है. फिर रोजेदार के लिए दिन भर कुछ खाने-पीने की मनाही हो जाती है.
दिन भर उपवास रखने के बाद एक रोजेदार शाम को सूरज डूबने के पश्चात नमाजे मगरीब से पहले रोजा खोलता है. इसको ‘इफ्तार’ कहा जाता है. इफ्तार का भी अपना महत्व है. इसमें खाने के लिए तरह-तरह के फल और पकवान होते हैं. इफ्तार अकेले भी किया जा सकता है, किंतु मिल कर सामूहिक रूप से इफ्तार करने का एक अलग ही महत्व है. इससे रोजेदारों की नेकियों में और अधिक वृद्धि की जाती है.
इस प्रकार एक रोजेदार का एक रोजा पूरा होता है, परंतु सेहरी और इफ्तार के बीच की अवधि में रोजेदार के लिए कई नियम होते हैं, जिनका पालन करने से रोजे की शुद्धता बढ़ती है. जैसे एक रोजेदार अपनी दिनचर्या को जारी रखते हुए न कुछ खायेगा और न कुछ पियेगा. जब आवश्यकतानुसार बाजार को निकले, तो अपनी दृष्टि नीची रखे. झूठ न बोले.
चोरी, बेईमानी न करे. किसी को मारे-पीटे नहीं और न ही अपशब्द कहे. अगर कोई दूसरा झगड़ा करने पर तुल आये, तो उसे विनम्रतापूर्वक कहे कि मैं रोजे से हूं. किसी की न चुगली करे और न सुने. ससमय नमाज अदा करे. बेहतर है कि मसजिद में जा कर नमाज पढ़े. कुरआन शरीफ की तिलावत करे. खाली समय में खुदा को याद करता रहे. इस प्रकार अगर कोई रोजेदार अपनी दिनचर्या नियमपूर्वक गुजारता है, तभी उसका रोजा रखना सफल होता है.
एक रोजेदार का दिन भर का सफर इफ्तार में आकर समाप्त नहीं होता है, बल्कि रात के लगभग आठ बजे पढ़ी जानेवाली ‘एशा’ की नमाज के साथ बीस रकअत का अतिरिक्त नमाज पढ़ना होता है. इसमें क्रमानुसार कुरआन पढ़ा जाता है. इसे ‘तरावीह’ कहा जाता है. इस प्रकार एक रोजेदार महीने भर इन प्रक्रियाओं से गुजर कर रोजा रखेगा, तभी सही अर्थो में उसके लिए ईद का दिन खुशियां लेकर आयेगा.
इसलाम में हर मुसलमान जो सोहबे निसाब है, उस पर ईदगाह जाने से पहले-पहले सदका व फितर व जकात अदा करना फर्ज (आवश्यक) है. अगर कोई मालदार मुसलमान अपने माल का जकात अदा नहीं करता है, तो पैगंबर मोहम्मद (स) के कहे अनुसार यही माल दोजख (नरक) में उसके अजाब (सजा) का कारण बनेगा. इसलिए कहा गया है कि जो भी मुसलमान साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या फिर इतने ही मूल्य के माल या रुपये का मालिक होता है, तो उस पर अपने धन का ढाई प्रतिशत जगात निकालना फर्ज हो जाता है.
आजकल साढ़े बावन तोला चांदी के मूल्य के बराबर होने पर एक मुसलमान को सोहबे निसाब मानना बेहतर समझा जाता है. इस जकात की राशि को ईदगाह जाने से पूर्व इसके हकदार गरीब, अनाथ, मुफलिसों आदि में बांटने की ताकीद है. अगर एक मुसलमान जो जकात अदा करने में सक्षम है और वह ऐसा नहीं करता है, तब उसका रोजे रखना और ईद मनाना फलाफल नहीं समझा जाता है.
आप खायें और अपका पड़ोसी भूखा रहे, आपका बच्च नये-नये कपड़े पहन कर ईद की खुशियां मनाये और पड़ोसी का बेटा फटे कपड़े पहन कर ईदगाह जाये, यह जायज नहीं है. इसलाम में इसकी बहुत पकड़ है.
बेहतर यह है कि यदि आप सोहबे निसाब हैं, तो अपने आस-पड़ोस के गरीबों, अनाथों, बेवाओं का पहले ध्यान रखें. उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए रिश्तेदारों की मदद जकात और दूसरे तरीके से करें. तभी सही अर्थो में रोजे का फल मिलेगा और ईद की सही खुशी.
ईद शब्द ‘औद’ से बना है, जिसका अर्थ लौटने और बार-बार आने के हैं. चूंकि यह खुशियों का दिन हर बार लौट कर आता है और अपने दामन में बेपनाह खुशियां और मुहब्बत का पैगाम लेकर आता है, इसलिए यह दिन ईद का दिन कहलाता है. ईद के के दिन चूंकि मिठाइयों-सेवइयों आदि चीजों का प्रयोग बहुतायत में किया जाता है. इसलिए इस दिन को लोग मीठी ईद भी कहते हैं. इस दिन लोग सेवइयां खाते हैं और अपने मिलने-जुलने वालों को भी खिलाते हैं.
ईद के दिन लोग आपस की दुश्मनी को भुला कर एक-दूसरे से गले मिल कर ईद की बधाई देते हैं. महीने में ईद दो हिजरी से मनाया जाता है. हमारे देश हिंदुस्तान में भी ईद पूरे जोश व खरोश के साथ मनाया जाता है. हमारा देश विभिन्न धर्मावलंबियों व तहजीबों का देश है. इसके इंद्रधनुषी रंग में एक रंग ईद का भी होता है. ईद के दिन सारे मुसलमान हाथ उठा कर खुदा से अपने प्यारे देश और देशवासियों की भलाई के लिए दुआ मांगते हैं. यह त्योहार हमारी गंगा-जमुनी तहजीब की एक मिसाल है.
(लेखक अध्यापक एवं साहित्यकार हैं.)
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