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मनोज कुमार मामले में वित्त सचिव ने सौंपी रिपोर्ट, स्क्रिनिंग कमेटी ने भी अनुशंसा में गलती की

रांची. बोकारो के उपायुक्त मनोज कुमार के मामले की जांच कर रहे वित्त सचिव अमित खरे ने कार्मिक विभाग को रिपोर्ट सौंपी है. इसमें कहा गया है कि सहायक अभियंता मनोज कुमार (वर्तमान में बोकारो डीसी) को चयन प्रक्रिया के सहारे भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्त करने की अनुशंसा में गड़बड़ी हुई है. सचिवालय स्तर […]

रांची. बोकारो के उपायुक्त मनोज कुमार के मामले की जांच कर रहे वित्त सचिव अमित खरे ने कार्मिक विभाग को रिपोर्ट सौंपी है. इसमें कहा गया है कि सहायक अभियंता मनोज कुमार (वर्तमान में बोकारो डीसी) को चयन प्रक्रिया के सहारे भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्त करने की अनुशंसा में गड़बड़ी हुई है. सचिवालय स्तर पर बनी उच्च स्तरीय स्क्रिनिंग कमेटी ने भी विभिन्न विभागों द्वारा की गयी अनुशंसा और उससे संबंधित दस्तावेज की जांच नहीं की थी. मुख्यालय की स्क्रिनिंग कमेटी ने विभागों से मिले सभी 12 नामों को संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के पास भेज दिया था. यूपीएससी ने इंटरव्यू के बाद इसमें से दो लोगों (जटाशंकर चौधरी और मनोज कुमार) को आइएएस में नियुक्त किया.
मालूम हो कि सरकार ने मनोज कुमार को आइएएस में नियुक्त कराने के लिए की गयी अनुशंसा पर प्रकाशित खबरों के बाद वित्त सचिव को मामले की जांच का आदेश दिया था.
फारेंसिक जांच में स्पष्ट होगा
रिपोर्ट में इन तथ्यों का भी उल्लेख है कि जल संसाधन विभाग ने अनुशंसा करने के क्रम में कार्मिक के निर्देशों का उल्लंघन कर नियमित वार्षिक गोपनीय चारित्री (एसीआर) के बदले विशेष चारित्री (स्पेशल सीआर) को भी आधार बनाया था. इनके कारणों का कहीं उल्लेख नहीं था. एश्योर्ड कैरियर प्रोमोशन (एसीपी) के लिए लिखे गये विशेष चारित्री का इस्तेमाल आइएएस में नियुक्त करने की अनुशंसा में किया गया था. फारेंसिक जांच के बाद ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि दोनों विशेष चारित्री मनोज कुमार की लिखावट में है या नहीं.
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि मनोज कुमार 14 मार्च 2007 से पहले बिहार में पदस्थापित थे. पर, जल संसाधन विभाग में कार्यरत उपसचिव सुबोध कुमार ने मनोज कुमार द्वारा बिहार में ( 2003-04 से 2006-07 तक ) तक किये गये कार्यों का मूल्यांकन विशेष चारित्री में ‘उत्तम’ लिखा. इतना ही नहीं, उन्होंने एक ही साथ छह साल (2003-09) तक की गोपनीय चारित्री लिखी. इसके बाद दो और वित्तीय वर्षों(2011-13) के लिए मनोज कुमार की गोपनीय चारित्री लिखी गयी. इसे जल संसाधन विभाग के तत्कालीन सचिव ने हस्ताक्षरित किया. इन दो वर्षों में मनोज कुमार के कार्यों को उत्कृष्ट बताया गया. मनोज कुमार के लिए जारी छह वर्षों के विशेष गोपनीय चारित्री पर विभागीय पत्रंक ‘एक’ का उल्लेख किया गया है. यह पत्रंक उन्हें एसीआर का लाभ देने के लिए जारी किये गये विशेष गोपनीय चारित्री के लिए था. पर, इसका इस्तेमाल आइएएस में नियुक्ति के लिए कर लिया गया.
कार्मिक के निर्देशों का उल्लंघन
रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी भी अधिकारी या कर्मचारी के लिए विशेष गोपनीय चारित्री लिखे जाने के कारणों का उल्लेख करना आवश्यक है. पर, मनोज कुमार के मामले में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि उनके तत्कालीन नियंत्री पदाधिकारियों की मृत्यु हो गयी है, सेवानिवृत्त हो गये हैं या ऐसी कोई स्थिति पैदा हो गयी है, जिससे अब वे वार्षिक गोपनीय चारित्री नहीं लिख सकते हैं. बिहार के कार्यकाल का विशेष चारित्री झारखंड के अधिकारियों द्वारा लिखा जाना हास्यास्पद है. मनोज कुमार के दोनों विशेष चारित्री में से किसी पर तीनों स्तर के अधिकारियों (रिपोर्टिंग, रिव्यूइंग व एक्सेप्टिंग अथॉरिटी) का हस्ताक्षर नहीं है. तकनीकी रूप से कोई विशेष चारित्री सही नहीं है. मनोज कुमार का वित्तीय वर्ष 2012-13 (आठ माह चार दिन) का नियमित गोपनीय चारित्री रहने के बावजूद इस वर्ष का विशेष गोपनीय चारित्री लिखे जाने का कारण भी अस्पष्ट है. दोनों विशेष गोपनीय चारित्रियों के मनोज कुमार की लिखावट में होने की पुष्टि फारेंसिक जांच के बाद ही हो सकती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जल संसाधन विभाग ने आइएएस में नियुक्ति के लिए नामों की अनुशंसा में कार्मिक के निर्देशों का उल्लंघन किया था.
मनोज कुमार पर कार्रवाई संभव
राज्य सरकार द्वारा अपनी रिपोर्ट लोक सेवा आयोग को भेजे जाने पर मनोज कुमार के विरुद्ध कार्रवाई संभव है. मनोज कुमार अभी प्रोबेशन पीरियड में हैं. नियमानुसार यूपीएसी प्रोबेशन पीरियड के दौरान भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों पर कार्रवाई कर सकता है. हालांकि ऐसा तभी संभव होगा, जब राज्य सरकार नामों की अनुशंसा के दौरान स्क्रूटनी में हुई गड़बड़ी की बात स्वीकार करते हुए अपनी रिपोर्ट यूपीएससी को भेजे. फिलहाल यूपीएससी को रिपोर्ट भेजे जाने का मामला सरकार के विचाराधीन है.

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