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उग्रवाद का भय नहीं, बालू के अभाव में बंद है काम

रांची : सारंडा में सड़कों का काम उग्रवाद नहीं, बल्कि बालू के अभाव में बंद हो गया है. नक्सली यहां काम बंद करवाने या प्रभावित करने नहीं आ रहे हैं, बल्कि बालू नहीं मिलने से चार से पांच प्रोजेक्ट बुरी तरह प्रभावित हो गये हैं. सड़कें बन ही नहीं पा रही है. चूंकि सारी सड़कें […]

रांची : सारंडा में सड़कों का काम उग्रवाद नहीं, बल्कि बालू के अभाव में बंद हो गया है. नक्सली यहां काम बंद करवाने या प्रभावित करने नहीं आ रहे हैं, बल्कि बालू नहीं मिलने से चार से पांच प्रोजेक्ट बुरी तरह प्रभावित हो गये हैं. सड़कें बन ही नहीं पा रही है. चूंकि सारी सड़कें यहां पीसीसी आधारित बनानी है, ऐसे में बालू की जरूरत सबसे अधिक है.
कुछ योजनाएं 70 फीसदी से अधिक होकर पड़ी हुई हैं.अब यहां बालू मिलने का इंतजार किया जा रहा है. काफी मशक्कत के बाद कभी-कभार ओड़िशा के चंपुआ से हाइवा पर बालू आ रहा है, लेकिन इसके लिए ढ़ाई गुणा से अधिक कीमत चुकायी जा रही है. यानी 500 सीएफटी के लिए 15 हजार रुपये लिये जा रहे हैं, जबकि पहले झारखंड से ही बालू मिलने पर 500 सीएफटी के 6000 रुपये लिये जाते थे.
सबसे दिलचस्प बात है कि पहले 20-25 किमी दूर स्थित कोयल नदी से बालू आता था, लेकिन अब 100 किमी दूर चंपुआ से आ रहा है. कुछ एजेंसी वालों का कहना है कि अगर बालू की समस्या का हल जल्द नहीं निकला, तो योजनाएं लटक जायेगी. बालू की व्यवस्था के लिए आग्रह करते-करते गरमी भी पार हो गयी. अब बरसात आ गया है. ऐसे में तो बालू की और कमी हो जायेगी.

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