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भू-अधिग्रहण पर बिहार सरकार के रवैये से शीर्ष कोर्ट नाराज

नयी दिल्ली. बिहार में भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक मामला एक दशक से भी अधिक समय से लटकाये रखने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री को श्रेष्ठ परामर्श की आवश्यकता है, क्योंकि इसे राज्य सरकार हलके में ले रही है. चीफ जस्टिस एचएल दत्तू की अध्यक्षतावाली […]

नयी दिल्ली. बिहार में भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक मामला एक दशक से भी अधिक समय से लटकाये रखने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री को श्रेष्ठ परामर्श की आवश्यकता है, क्योंकि इसे राज्य सरकार हलके में ले रही है. चीफ जस्टिस एचएल दत्तू की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता से कहा, किसी न किसी को आ कर यह कहना चाहिए कि मामला बंद कर दिया जाये. बिहार सरकार को कुछ तो कहना होगा. हम आपसे अनुरोध करते हैं कि मुख्यमंत्री को श्रेष्ठ तरीके से परामर्श दिया जाये. वह हमें भी बहकाने की कोशिश कर रहे हैं. हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप अपने प्रभाव का इस्तेमाल कीजिये. शीर्ष अदालत बिहार वित्त सेवा आवास निर्माण सहकारी समिति लि से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी. एक अपील के माध्यम से यह मामला 2003 मंे सुप्रीम कोर्ट आया था और 22 नवंबर, 2004 को इसका निबटारा कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद से किसी न किसी आधार पर न्यायालय में आवेदन दायर किये जा रहे हैं. इस साल एक अवमानना याचिका भी दायर की गयी है. इस प्रकरण के विचित्र इतिहास पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए न्यायालय ने कहा कि इसमें तरह-तरह के तर्क दिये गये हैं. न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी (अब अटार्नी जनरल), वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार (अब सालिसीटर जनरल) और इस समय पेश हो रहे एल नागेश्वर राव का जिक्र करते हुए कहा कि कई बार यह मामला सुनवाई के लिए लग चुका है और इसमें हर बार बिहार सरकार की ओर से अलग-अलग वकील पेश हुए हैं.

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