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हाइकोर्ट ने सरकार के सुस्त रवैये पर जतायी नाराजगी, कहा झारखंड में कोर्ट के आदेश के बिना कोई काम नहीं होता

रांची : राज्य में सवा तीन करोड़ की आबादी पर सिर्फ आठ फूड सेफ्टी ऑफिसरों में से तीन कार्यरत हैं. राज्य के शीर्ष अधिकारियों में विजन की स्पष्ट कमी है. 24 जिलों में ही 10,000 हजार से अधिक दूध की दुकानें होंगी. इतने कम अधिकारियों से कैसे मिलावट की जांच कर पायेंगे. यह मामला आम […]

रांची : राज्य में सवा तीन करोड़ की आबादी पर सिर्फ आठ फूड सेफ्टी ऑफिसरों में से तीन कार्यरत हैं. राज्य के शीर्ष अधिकारियों में विजन की स्पष्ट कमी है. 24 जिलों में ही 10,000 हजार से अधिक दूध की दुकानें होंगी.
इतने कम अधिकारियों से कैसे मिलावट की जांच कर पायेंगे. यह मामला आम जनता से जुड़ा हुआ है. इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. राज्य सरकार मूकदर्शक बनी हुई है. यह जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने जैसा है. यह टिप्पणी झारखंड हाइकोर्ट ने की है.
मंगलवार को झारखंड हाइकोर्ट में दूध सहित अन्य खाद्य पदार्थो में हो रही मिलावट व बिक्री को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस डीएन पटेल व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने राज्य सरकार के अधिकारियों के सुस्त एवं नकारात्मक रवैये पर नाराजगी जताते हुए फटकार लगायी.
खंडपीठ ने राज्य सरकार के रवैये को निराशाजनक बताया. खंडपीठ ने कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए मुख्य सचिव को शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. पूछा कि इस मुद्दे पर सरकार ने अब तक क्या कदम उठाया है, उसकी जानकारी दी जाये.
फूड सेफ्टी ऑफिसर का प्रभार चिकित्सकों को देने को गलत बताते हुए खंडपीठ ने कहा कि देश में झारखंड ही एक ऐसा राज्य होगा, जहां के चिकित्सक घूम-घूम कर खाद्य पदार्थो का सैंपल एकत्रित करेंगे व जांच करायेंगे. राज्य के स्वास्थ्य सचिव व अन्य अधिकारियों को दूसरे राज्यों में फूड सेफ्टी के लिए की गयी व्यवस्था का अध्ययन कर योजना तैयार करनी चाहिए. झारखंड में बिना कोर्ट के आदेश के, कोई काम नहीं होता. यहां हर काम के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत पड़ती है.
यह मामला तीन वर्षो से चल रहा है. अब तक फूड सेफ्टी ऑफिसरों के पद स्वीकृति की संचिका भी लंबित है. अधिकारियों का एप्रोच लेथाजिर्क एवं सोच नकारात्मक है. इससे जनता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. अधिकारी अपना चश्मा उतारें और समस्याओं के समाधान के लिए ठोस कदम उठायें. गुणवत्तायुक्त चश्मा लगायें ताकि जनता की समस्याओं को देख सकें.
खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए छह जुलाई की तिथि निर्धारित की. सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव रमेश कुमार उपस्थित थे. उन्होंने खंडपीठ को बताया कि फूड सेफ्टी ऑफिसरों के आठ पद स्वीकृत है. इनमें से तीन ही कार्यरत हैं.
188 पदों की स्वीकृति मांगी गयी है. मामला लंबित है. सितंबर 2013 से लेकर अब तक 2858 सैंपल एकत्रित किये गये. लगभग 26 मामलों में सजा सुनायी गयी है. गौरतलब है कि मिलावट की खबरों को हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.

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