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सड़क चौड़ीकरण के लिए पेड़ काटे जाने पर हाइकोर्ट नाराज, बनायी जांच समिति, कहा- झारखंड बनाना है या रेगिस्तान
रांची: सड़कों के चौड़ीकरण के लिए पेड़ों की कटाई को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकार के रवैये पर नाराजगी जतायी. चीफ जस्टिस वीरेंदर सिंह व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने मौखिक रूप से पूछा कि राज्य को झारखंड बनाना है या रेगिस्तान. […]
रांची: सड़कों के चौड़ीकरण के लिए पेड़ों की कटाई को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकार के रवैये पर नाराजगी जतायी. चीफ जस्टिस वीरेंदर सिंह व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने मौखिक रूप से पूछा कि राज्य को झारखंड बनाना है या रेगिस्तान. खंडपीठ ने पेड़ों की कटाई पर पूर्व में लगायी गयी रोक को अगले आदेश तक जारी रखने का निर्देश दिया. पेड़ों की कटाई की जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया. समिति में पीसीसीएफ, नगर आयुक्त, पथ निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता, सेवानिवृत्त आइएफएस अधिकारी नरेंद्र मिश्र और अधिवक्ता दिलीप जेरथ को शामिल किया गया है. बुलू इमाम बतौर आमंत्रित सदस्य होंगे.
दो सप्ताह में समिति को रिपोर्ट देने का निर्देश : समिति को सड़क किनारे अतिक्रमण को भी चिह्न्ति करने के लिए कहा गया है. समिति के सदस्य बिरसा चौक से लेकर डोरंडा तक हो रहे सड़क चौड़ीकरण कार्य को देखेंगे. इस बात का पता करेंगे कि क्या पेड़ काटना जरूरी था. जो पेड़ रह गये हैं, उन्हें कैसे बचाया जा सकता है. समिति बेकार पड़ी खाली सरकारी जमीन पर पेड़ लगाने पर भी विचार करेगी. खंडपीठ ने समिति की बैठक 20 जून को करने और दो सप्ताह में स्थल रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है.
बच्चों की तरह पेड़ों की देखभाल करें : खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिया है कि बिना पेड़ काटे यदि सड़क चौड़ी हो सकती है, तो किया जाये. जब तक बहुत जरूरी नहीं हो, पेड़ नहीं काटे जाने चाहिए. पेड़ को बचाएं. लोग अपने बच्चों की देखभाल जिस तरह से करते हैं, उसी प्रकार पेड़-पौधों की भी देखभाल करें. खंडपीठ ने कहा : पर्यावरण की कीमत पर विकास कार्य नहीं होना चाहिए. यहां के क्लाइमेट के लिए हरे-भरे वृक्षों का होना बहुत जरूरी है. वृक्षों को बचाने के लिए सभी लोगों को आगे आना होगा. पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी. पर्यावरण बचेगा, तभी लोग बचेंगे. खंडपीठ ने कहा कि धुर्वा में बन रहे हाइकोर्ट व झारखंड विधानसभा परिसर में योजनाबद्ध तरीके से पेड़ लगाये जायें. वैसे पौधों का चयन किया जाये, जो एक समान बढ़ते हों. छाया के साथ पर्याप्त ऑक्सीजन भी दें.
शहर भावी जरूरतों को देख कर योजना बने
खंडपीठ ने कहा : रांची शहर की भावी जरूरतों को देखते हुए योजनाएं बननी चाहिए. एक्सप्रेस-वे, फ्लाई ओवर सहित जिसकी जरूरत है, उस पर काम होना चाहिए. मोहाली व चंडीगढ़ की योजनाओं का अध्ययन कर विशेषज्ञों की सलाह लेने के बाद अधिकारियों को किसी अंतिम नतीजे पर पहुंचना चाहिए. खंडपीठ ने यह भी कहा कि राज्य सरकार हमेशा कहती है कि पैसे की कोई कमी नहीं है, लेकिन काम कुछ नहीं होता है. ऐसा लगता है कि सरकार की नीयत साफ नहीं है. योजना की आवंटित राशि किसी भी परिस्थिति में सरेंडर नहीं की जानी चाहिए. योजना पर काम किया जाये और पैसे का सदुपयोग हो. जिस मद में राशि आवंटित की गयी है, उसी मद में खर्च की जानी चाहिए.
अधिकारी खुद को बुद्धिमान समझते हैं विशेषज्ञों की सलाह भी नहीं मानते
खंडपीठ ने अधिकारियों की कार्यशैली पर मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा : ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के आइएएस अधिकारियों में विजन की कमी है. इसका खामियाजा पूरे राज्य को भुगतना पड़ रहा है. यहां कोई भी विकास योजना भविष्य को देख कर नहीं बनायी जाती है. यहां कुछ भी योजनाबद्ध तरीके से नहीं होता है. अधिकारी अपने आप को काफी बुद्धिमान समझते हैं. दूसरे लोगों की या विशेषज्ञों की सलाह भी नहीं मानते है और गलती कर जाते हैं.
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