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वनभूमि के सामुदायिक पट्टे की हो रही गलत व्याख्या
रांची: झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के जेवियर कुजूर ने कहा कि राज्य सरकार 496 सामुदायिक पट्टा देने की बात करती है ,लेकिन वनाधिकार कानून के आलोक में उन पट्टों को सामुदायिक वन अधिकार पट्टा नहीं कहा जा सकता. उन्होंने इसका कारण बताया कि वनाधिकार कानून 2006 के अंतर्गत सामुदायिक पट्टा के अधिकार में गांवों को […]
रांची: झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के जेवियर कुजूर ने कहा कि राज्य सरकार 496 सामुदायिक पट्टा देने की बात करती है ,लेकिन वनाधिकार कानून के आलोक में उन पट्टों को सामुदायिक वन अधिकार पट्टा नहीं कहा जा सकता. उन्होंने इसका कारण बताया कि वनाधिकार कानून 2006 के अंतर्गत सामुदायिक पट्टा के अधिकार में गांवों को अपने पारंपरिक वन की सीमा में निस्तार के अधिकार सहित उन वनों के संरक्षण, संवर्धन और प्रबंधन का अधिकार भी दिया जाना है.
उन्होंने उपस्थिल लोगों से कहा कि वनाधिकार कानून के प्रभावकारी क्रियान्वयन के लिए नोडल विभाग कल्याण, वन और राजस्व विभाग में तालमेल की जरूरत है. वह बुधवार को पुरुलिया रोड स्थित एसडीसी सभागार में ‘संवाद’ और ‘एफआरए वाच, झारखंड द्वारा आयोजित ‘झारखंड में वनाधिकार : एक परिदृश्य’ विषयक सेमिनार में बोल रहे थे.
ट्राइबल सब प्लान के पैसों से चलायें योजनाएं
एनसीडीएचआर के अभय खाखा ने कहा कि वनाधिकार कानून 2006 द्वारा पेसा कानून और ग्राम सभा के सशक्तीकरण पर बल दिया गया है. आदिवासी उपयोजना के संबंध में कहा कि जिन क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों को वन पट्टा दिया गया है, वहां आदिवासी उपयोजना की राशि से विकास की योजनाएं चलानी चाहिए.
ग्रामीणों को वनाधिकार कानून की जानकारी ही नहीं
केस्टो सोरेन ने कहा कि पाकुड़ जिला में लगभग ढाई हजार राजस्व ग्राम पर अधिसंख्य गांवों में वनाधिकार कानून के प्रचार-प्रसार के लिए कोई प्रभावकारी कार्य नहीं किया गया है. इससे ग्रामीणों को इस कानून के संबंध में जानकारी नहीं है.
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