नामकुम: कौशल आधारित कृषि की भारत में आज सबसे अधिक जरूरत है. इसी के तहत युवाओं को कृषि कार्य से जोड़ने तथा वैज्ञानिकों को किसानों की खेत तक ले जाने का प्रस्ताव लाया गया़ बारिश की कमी के कारण वैकल्पिक कृषि के उपायों पर विशेष जोर दिया जाता है. ऐसे में लाह की खेती का अपना अलग ही महत्व है. ये बातें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक सह सचिव डेयर डॉ एस अयप्पन ने कही. वे शुक्रवार को नामकुम स्थित भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान के स्थापना दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि कृषि के उत्थान के लिए विजन, इनोवेशन तथा पार्टनरशिप की बड़ी भूमिका है. इसके लिए सरकार तथा विश्वविद्यालयों को भी आगे आना होगा व मिल कर प्रयत्न करना होगा. डॉ अयप्पन ने कृषि ने कहा कि अगर कृषि विफल होता है, तो कोई उद्योग सफल नहीं रहेगा.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उपायुक्त विनय कुमार चौबे ने कहा कि झारखंड की भूमि आम तौर पर मैदानी इलाकों की अपेक्षा कम उपजाऊ है. यहां 33 प्रतिशत भूमि वन क्षेत्र है. अगर सुदूर वन क्षेत्र, जो नक्सल प्रभावित हैं, उन इलाकों में लाह की खेती को बढ़ावा मिले, तो न सिर्फ आम लोगों को रोजगार मिल सकेगा, वहीं उनमें भटकाव की संभावना भी कम रहेगी. केंद्रीय विवि के कुलपति डॉ डीटी खटिंग ने संस्थान के कार्यो की सराहना करते हुए संस्थान के वैज्ञानिकों को अपने विवि के शोध कार्यों से जुड़ने का आग्रह किया.
इससे पूर्व डॉ अयप्पन ने संस्थान में नवनिर्मित पलाश सभागृह का उदघाटन किया़ कार्यक्रम के दौरान खेती, मत्स्य पालन, नर्सरी तथा लाह के उत्पादन में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले किसानों तथा संस्थान में बेहतर कार्य के लिए चयनित वैज्ञानिकों और कर्मचारियों को पुरस्कृत किया गया.