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अवैध नियुक्तियों की जांच अब तक नहीं हो सकी पूरी

विधानसभा. नामधारी और आलमगीर के कार्यकाल में उठे थे सवाल रांची : झारखंड विधानसभा में नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर अनियमितता हुई. नियम-कानून को ताक पर रख कर बहाली की गयी. स्पीकर इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के समय हुई नियुक्तियों पर सवाल उठाये गये. इनके कार्यकाल में हुई नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर […]

विधानसभा. नामधारी और आलमगीर के कार्यकाल में उठे थे सवाल
रांची : झारखंड विधानसभा में नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर अनियमितता हुई. नियम-कानून को ताक पर रख कर बहाली की गयी. स्पीकर इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के समय हुई नियुक्तियों पर सवाल उठाये गये.
इनके कार्यकाल में हुई नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर अनियमितता का मामला सामने आया. नेताओं ने जिसे चाहा उसे बहाल कर लिया गया. विधानसभा में नेताओं के करीबियों को नौकरी दे कर उपकृत किया गया. एक खास इलाके से लोगों की बहाल किया गया. नामधारी ने 274 और आलमगीर ने 324 नियुक्तियां कीं.
एक दिन में 200 से 600 लोगों का साक्षात्कार लिया गया. जबकि एक ही साक्षात्कार बोर्ड का गठन किया गया था. साक्षात्कार बोर्ड में शामिल लोग व्यस्त रहे, तो उनकी जगह टाइपिंग शाखा के दो लोगों ने साक्षात्कार लिया. 40 से 50 वर्ष की उम्र के लोगों को भी सहायक के रूप में बहाल किया गया. वर्तमान में सभी उप सचिव या अवर सचिव के पद पर कार्यरत हैं.
ये लोग बिहार विधानसभा में भी नियुक्त हुए थे, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इनकी नियुक्ति को रद्द कर दिया था. बिहार में रद्द हुई नियुक्तियों को झारखंड में बहाल कर दिया गया. विधानसभा में नियुक्ति घोटाले की शिकायत राज्यपाल तक पहुंची. राज्यपाल ने जब सवाल किया, तो आयोग का गठन हुआ. आयोग की जांच भी पूरी नहीं हुई.
झारखंड विधानसभा में प्रोन्नति घोटाला हुआ. एक वर्ष में ही कई लोगों को प्रोन्नत कर दिया गया. स्पीकर आलमगीर आलम के समय सहायक पद नेताओं के बीच बांटे गये. इन सहायकों को प्रशाखा पदाधिकारी (एसओ)भी बना दिया गया. विधानसभा नियुक्ति -प्रोन्नति की जांच पूरी नहीं हुई. गरीबों और नौजवानों का हक मारने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. विधानसभा से ही राज्य के लोगों को न्याय नहीं मिला.
क्या-क्या खेल हुआ
– एक ही क्षेत्र के लोगों को विधानसभा में बहाल किया गया.
– 50 वर्ष के उम्र वालों को भी नियम शिथिल कर दी गयी नौकरी.
– एक दिन में एक साक्षात्कार कमेटी ने लिया 200 से 600 लोगों का इंटरव्यू, साक्षात्कार के लिए थी मात्र एक कमेटी
– साक्षात्कार कमेटी के सदस्य रहे व्यस्त, तो टाइपिंग शाखा के लोगों ने लिया इंटरव्यू
– बहाली के एक वर्ष बाद ही कर दिया प्रोन्नत, नेताओं के करीबी को बनाया एसओ
– राज्यपाल ने अनुसेवक के स्वीकृत किये 75 पद, बहाल कर लिया 150, आज तक पद नहीं हुए स्वीकृत
– जिनकी नियुक्ति बिहार में कोर्ट ने रद्द की, झारखंड विधानसभा ने बहाल किया
राज्यपाल ने नियुक्तियों/प्रोन्नतियों पर क्या सवाल उठाये
– क्या नियुक्ति/ प्रोन्नति में पिक एंड चूज पद्धति अपनायी गयी.
– क्या विज्ञापन में पदों की संख्या का उल्लेख नहीं था. क्या बिना पदों की संख्या जारी किया गया विज्ञापन वैध है.
– क्या तैयार मेधा सूची में कई रौल नंबर पर ओवर राइटिंग की गयी है.
– क्या गृह जिला (पलामू) के 13 अभ्यर्थियों को स्थायी डाक -पता पर पोस्ट भेजा गया. क्या पत्र 12 घंटा के भीतर मिल गया. क्या सफल उम्मीदवार दो दिनों के अंदर ही योगदान कर दिये.
– क्या अनुसेवक के लिए नियुक्ति प्रक्रिया द्वारा कथित रूप से चयनित व्यक्तियों को ऑर्डरली के रूप में नियुक्त कर लिया गया.
– क्या गठित नियुक्ति कोषांग में कौशल किशोर प्रसाद और सोनेत सोरेन को शामिल किया गया. जिनके खिलाफ एमपी सिंह ने प्रतिकूल टिप्पणी की थी.
– तत्कालीन सचिव-सह-साक्षात्कार कमेटी के अध्यक्ष व सदस्य कौशल किशोर प्रसाद विधानसभा सत्र में व्यस्त थे, पूरी अवधि में टाइपिंग शाखा के तारकेश्वर झा व सहायक महेश नारायण सिंह शामिल हुए. इसके बाद भी साक्षात्कार कमेटी के सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिये.
– क्या नियुक्ति की कार्रवाई बिना पद रहे प्रारंभ कर दी गयी या बिना पद के उपलब्ध परिणाम घोषित कर दिये गये.
– क्या ड्राइवरों की नियुक्ति के लिए निकाले गये 28 दिसंबर, 2006 के विज्ञापन में विहित अंतिम तिथि तक पार्थसारथी चौधरी अपना आवेदन नहीं जमा कराये थे. क्या वे तत्कालीन विधायक निरसा अपर्णा सेन गुप्ता के भाई थे. तो किस आधार पर साक्षात्कार के लिए बुलाया गया.
– चालकों के 17 नियुक्तियों में 14 को एमवीआइ ने जांच में असफल पाया था, बावजूद इसके नौकरी पर रख लिये गये.
– क्या इंदर सिंह नामधारी के अध्यक्ष काल में प्रतिवेदकों के 23 पदों के विरुद्ध 30 व्यक्तियों की नियुक्ति की गयी.

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