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स्वास्थ्य केंद्र बन गये, बिजली-पानी है ही नहीं
इस्टीमेट में नहीं होती बिजली-पानी कनेक्शन की व्यवस्था कल हमने छापा था कि झारखंड की नौकरशाही में कैसे एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) लिखी जाती है. पिछले 14 वर्षो से इस कार्य संस्कृति-मूल्यांकन ने नौकरशाही को अक्षम बना दिया है. घटना होती है, समय पर पुलिस नहीं पहुंच पाती है, समय पर फाइल का निबटारा नहीं […]
इस्टीमेट में नहीं होती बिजली-पानी कनेक्शन की व्यवस्था
कल हमने छापा था कि झारखंड की नौकरशाही में कैसे एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) लिखी जाती है. पिछले 14 वर्षो से इस कार्य संस्कृति-मूल्यांकन ने नौकरशाही को अक्षम बना दिया है.
घटना होती है, समय पर पुलिस नहीं पहुंच पाती है, समय पर फाइल का निबटारा नहीं हो पाता, काम लंबित रहते हैं, तो इसके पीछे बड़ा कारण है, सिस्टम का ध्वस्त हो जाना. इसके लिए पहले से नियम बने हुए हैं, लेकिन इनका पालन नहीं होता. रघुवर दास की सरकार के लिए यही मौका है. अगर वह सुशासन को प्राथमिकता देती है, ध्वस्त व्यवस्था को पटरी पर लाना चाहती है, तो उसे सिस्टम को ठीक करना होगा.
राज्य के सभी प्रखंडों में स्वास्थ्य केंद्र-उप केंद्र हैं. पर, इनमें से कई निजी भवनों में किराये पर चल रहे हैं. खास कर स्वास्थ्य उप केंद्रों की स्थिति ज्यादा खराब है. राज्य में कुल 3958 स्वास्थ्य उप केंद्र हैं. इनमें से 1724 ही सरकारी भवन में हैं. शेष 2234 निजी मकानों में. वहीं, राज्य के कुल 188 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में से भी 33 का ही अपना भवन है. शेष 155 का निर्माण चल रहा है.
सरकारी या निजी भवनों में संचालित स्वास्थ्य उप केंद्रों में से ज्यादातर में पानी-बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं है. भवन तो बन गये, पर हैं बेकार. सिर्फ चार जिलों में करीब 500 स्वास्थ्य केंद्र-उप केंद्र बेकार हो गये हैं. कई उप-केंद्रों के आसपास बिजली के पोल तो पहुंचे भी हैं, पर कनेक्शन तभी मिलेगा, जब उसका पैसा जमा होगा. इस पैसे का प्रबंध तो भवन निर्माण शुरू करने के समय ही किया जा सकता है.
ऐसा करने से स्वास्थ्य केंद्र पूरा होने के तुरंत बाद वहां काम शुरू हो जायेगा. ग्रामीण इलाकों के इन केंद्रों में पानी का कनेक्शन तो नहीं पहुंचाया जा सकता है, पर चापानल गाड़ कर इसका समाधान निकाला जा सकता है.
गुमला जिले में लालटेन से इलाज
गुमला जिले के सभी 242 स्वास्थ्य उप केंद्र बगैर पानी-बिजली के चल रहे हैं. अगर कहीं पानी के लिए चापानल खोदा भी गया है, तो वह बेकार पड़ा है. 100 स्वास्थ्य उप केंद्र तो ऐसे हैं, जो वीरान जगह पर बने हैं.
वहां किसी प्रकार की सुविधा नहीं है. कई जगहों पर गांव तक बिजली भी नहीं पहुंची है. बिजली व इसका पोल है भी, तो वह केंद्र से काफी दूर है. इससे उप-केंद्रों में काम करनेवाली एएनएम व नर्स को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. एक तो उन्हें रात में न रहने का बहाना मिल जाता है, फिर यदि रात में अगर किसी रोगी को स्लाइन भी चढ़ानी हो, तो लालटेन से इलाज किया जाता है.
पानी के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. कुल 242 में से 120 केंद्र ऐसे हैं, जिसका अपना भवन नहीं है. गांव की घनी आबादी के बीच अब भी भाड़े के मकान में केंद्र संचालित हो रहे हैं.
हजारीबाग : शौचालय भी नहीं उप केंद्रों में
हजारीबाग जिले में 16 प्रखंड हैं. इन प्रखंडों में 13 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 140 स्वास्थ्य उप केंद्र संचालित हैं. इनमें से 121 उप केंद्र सरकारी भवन में और 41 निजी भवन में चल रहे हैं.
वहीं सिर्फ 50 उप केंद्रों में ही शौचालय की सुविधा है. शेष 103 में शौचालय तक नहीं है. कुल 109 उप केंद्रों में पानी के लिए चापानल लगे हंै. वहीं 44 उप केंद्रों में न तो चापानल है और न ही पानी का कोई दूसरा स्रोत. इन उप केंद्रों में पानी की घोर समस्या है. उधर 12 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ही डीप बोरिंग व मोटर की व्यवस्था है.
51 उप-स्वास्थ्य केंद्रों में बिजली है. 102 उप स्वास्थ्य केंद्रों में बिजली नहीं है. उप स्वास्थ्य केंद्रों में बिजली और पानी नहीं रहने के कारण मरीजों को परेशानी हो रही है. गर्भवती महिलाओं का प्रसव और मामूली चिकित्सा कार्य प्रभावित होता है. सुदूरवर्ती गांवों से बड़ी संख्या में लोग उप स्वास्थ्य केंद्र पहुंचते हैं, पर वह प्यास बुझाने के लिए परेशान रहते हैं. उप स्वास्थ्य केंद्रों में साफ सफाई पर भी इसका असर पड़ता है.
पलामू : 90 फीसदी उप केंद्र अंधेरे में
पलामू के 90 प्रतिशत स्वास्थ्य उप केंद्रों में बिजली नहीं है. पलामू में कुल 171 स्वास्थ्य उप केंद्र हैं.इसमें से 90 सरकारी भवन में हैं, शेष 81 किराये पर चल रहे हैं. इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि चूंकि स्वास्थ्य उप केंद्रों में रात्रि सेवा नहीं है, इसलिए बिजली की आवश्यकता नहीं है.
पानी के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. सरकारी स्तर पर जो चापानल लगते हैं, वहीं से जरूरत के मुताबिक पानी लाया जाता है. उदाहरण के तौर पर देखा जाये, तो प्रमंडलीय मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लेस्लीगंज प्रखंड में कुल 16 स्वास्थ्य उप केंद्र हैं. इसमें आठ ऐसे हैं, जिनका न तो अपना भवन है और न ही कोई सुविधा. किराये के मकान में जो स्वास्थ्य केंद्र चल रहे हैं, उसमें भी बिजली-पानी भी नहीं है.
इनमें बांसडीह, गेठा के अतिरिक्त अन्य स्वास्थ्य उप केंद्र भी शामिल हैं, जबकि स्वास्थ्य उप केंद्रों में धावाडीह, एकता, गेठा, कोइरीपथरा व महरजा के नाम शामिल हैं. इसके अलावा हुसैनाबाद में भी लोटनिया,कमगारपुर स्वास्थ्य उप केंद्रों में बिजली नहीं है.
लोहरदगा की भी यही कहानी
लोहरदगा जिले में एक सदर अस्पताल और चार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. इनमें लोहरदगा प्रखंड में रामपुर व लोहरदगा, कुडू प्रखंड में कैरो व सलगी, भंडरा प्रखंड में नगजुआ, सेन्हा प्रखंड में उगरा व मुंगो, किस्को प्रखंड में मक्का, जोबांग व पेशरार में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैं. इनमें मुंगो, पेशरार,जोबांग में बिजली व पानी की व्यवस्था नहीं है.
जिले में 73 स्वास्थ्य उप केंद्र संचालित हैं, इनमें अधिकतर में बिजली-पानी की व्यवस्था नहीं हो सकी है. कई ग्रामीण इलाकों में आज भी बिजली की व्यवस्था नहीं है. इस कारण स्वास्थ्य केंद्रों में भी न तो पानी और न ही बिजली की व्यवस्था हो सकी है. इसी तरह लातेहार जिले में कुल 96 स्वास्थ्य उप केंद्र हैं, जिसमें 68 उप केंद्रों में बिजली-पानी की व्यवस्था नहीं है.
जिले में सदर अस्पताल एक, रेफरल अस्पताल एक, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पांच, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और स्वास्थ्य उप केंद्र 96 है़. इसमें 55 स्वास्थ्य केंद्र व उप केंद्रों में बिजली-पानी की सुविधा नहीं है़ कई का अपना भवन नहीं है. यहां डॉक्टर और एनएनएम नहीं आते.
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