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प्रभात खबर एक्‍सक्‍लूसिव : झारखंड में गलत ढंग से लिखा जाता है पुलिस व प्रशासनिक अफसरों का एसीआर

गुड गवर्नेस हर सरकार का सपना होता है. झारखंड सरकार का भी है, लेकिन सच यह है कि अभी तक झारखंड में व्यवस्था (सिस्टम) चौपट ही है. नौकरशाही की वर्षो पुरानी-लचर व्यवस्था को आज भी ढोया रहा है. इस पर किसी का नियंत्रण नहीं है. बुनियादी व्यवस्था को सशक्त करने में, उसे ठीक करने में […]

गुड गवर्नेस हर सरकार का सपना होता है. झारखंड सरकार का भी है, लेकिन सच यह है कि अभी तक झारखंड में व्यवस्था (सिस्टम) चौपट ही है. नौकरशाही की वर्षो पुरानी-लचर व्यवस्था को आज भी ढोया रहा है. इस पर किसी का नियंत्रण नहीं है. बुनियादी व्यवस्था को सशक्त करने में, उसे ठीक करने में राजनीति पिछड़ रही है. राज्य के पास पैसा है, खर्च भी होता है, लेकिन विकास नहीं होता. यह सोचने का विषय है. अच्छे अफसरों को डंप कर दिया जाता है. पैरवी के बल पर अनेक अफसर अच्छे पद पर कब्जा कर लेते हैं. अच्छे अफसर चुप बैठ जाते हैं.
ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि मूल्यांकन का तरीका सही नहीं होता. उसे अमल में नहीं लाया जाता. पूरी दुनिया में हर नौकरी में परफॉर्मेस (प्रदर्शन) देखा जाता है. यह देखा जाता है कि उस पर जितना खर्च हो रहा है, उसके एवज में वह अधिकारी दे क्या रहा है, लेकिन झारखंड में ऐसा नहीं होता.
आइएएस-आइपीएस और अन्य अफसरों पर हर माह लाखों रुपये खर्च होते हैं, अच्छा वेतन, आवास-गाड़ी की सुविधा दी जाती है, बॉडीगार्ड दिये जाते हैं. इतनी अच्छी व्यवस्था है कि रिटायर होने के बाद भी इन्हें अनेक सुविधाएं मिलती हैं, यानी ठाठ की जिंदगी. फिर कुछ अच्छे अफसरों को छोड़ दें, तो बाकी रिजल्ट नहीं दे पाते. राजनीतिज्ञों को कागज पर घेरते रहते हैं. मूल सवाल है, इनके कामों का मूल्यांकन और इनकी मूल्यांकन पद्धति. इसी का फायदा अफसर उठाते हैं. दरअसल यह काम है विधायिका का, व्यवस्था में लगातार सुधार का प्रयास करना, उसकी मॉनिटरिंग करना, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है.
मनोज लाल/सुरजीत सिंह
रांची. झारखंड में पुलिस व प्रशासनिक अफसरों के कार्यो के मूल्यांकन या उनकी ग्रेडिंग का कोई सिस्टम नहीं है. वर्षो पुरानी एसीआर (एनुअल कंफिडेंशियल रिपोर्ट) यानी वार्षिक गोपनीय अभियुक्ति सिस्टम चल तो रहा है, लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं रह गया है. इससे तबादले बिल्कुल प्रभावित नहीं होते हैं. केवल प्रोन्नति के समय इस पर ध्यान दिया जाता है.
एसीआर के औचित्य पर सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं, क्योंकि इसके लिखने का तरीका ही गलत है. अपने अधीनस्थ कर्मियों के कार्यो के बारे में कंट्रोलिंग अफसरों को खुद एसीआर लिखना है, जबकि यहां इसका पालन नहीं हो रहा है. अधीनस्थ कर्मी खुद प्रोफार्मा भर कर या सीआर लिख कर कंट्रोलिंग अफसर के पास जाते हैं और साइन करवा लेते हैं. साथ ही अपने पक्ष में अपनी सेवा के बारे में उत्कृष्ट/बहुत अच्छा (आउटस्टैंडिंग) लिखवा लेते हैं. इसी परंपरा के तहत पूरा सिस्टम यहां चल रहा है. लगभग सारे संवर्ग के अफसरों-कर्मचारियों के एसीआर में यही चल रहा है. आला अफसर भी मानते हैं कि एक फीसदी भी ऐसा केस नहीं है, जिसमें किसी अफसर का एसीआर खराब-असंतोषजनक लिखा हो. यह तभी होता है, जब कंट्रोलिंग अफसर पूरी तरह संबंधित अफसर से नाराज हों.
उप विकास आयुक्त, अपर समाहत्र्ता, अनुमंडल पदाधिकारी से लेकर प्रखंड विकास पदाधिकारी, अंचलाधिकारी, कार्यपालक दंडाधिकारी यानी राज्य प्रशासनिक सेवा के अन्य सारे पदों के अफसरों के साथ यही सिस्टम लागू है. रही बात थाना प्रभारियों से लेकर पुलिस अधीक्षकों तक की, तो कार्यालय निरीक्षण, मासिक कार्य विवरणी और एनुअल कनफिडेंशियल रिपोर्ट (एसीआर) का औचित्य उनकी सेवा के लिए भी नहीं रह गया है. इसकी बड़ी वजह यह है कि कार्य के आकलन के लिए बनाये गये इन तीनों काम पर कोई ध्यान नहीं देता है. थाना, इंस्पेक्टर कार्यालय, डीएसपी कार्यालय, एसपी कार्यालय के निरीक्षण पर किसी का ध्यान नहीं है. मासिक कार्य विवरणी पर भी किसी सीनियर अफसर द्वारा टिप्पणी करने की प्रक्रिया बंद हो गयी है. सिर्फ उन पदाधिकारियों- अधिकारियों की मासिक कार्य विवरणी पर ही नकारात्मक टिप्पणी की जाती है, जिनसे सीनियर की खुन्नस रहती है.
आइएएस अफसरों को मिलता है प्वाइंट : आइएएस अफसरों का एसीआर भी उनसे उच्च पदस्थ अफसर लिखते हैं. अंत में मुख्यमंत्री भी सीआर लिखते हैं. इसमें उन्हें कार्यो के आधार पर प्वाइंट देने का सिस्टम है. यानी उनके अलग-अलग कार्यो के लिए 10 तक प्वाइंट दिये जाते हैं. यहां भी सिस्टम ऐसा है कि अच्छा काम करनेवाला व खराब काम के लिए मशहूर अफसर को भी अधिकतम प्वाइंट मिलता है. इसी प्वाइंट के आधार पर उन्हें प्रोन्नति मिलनी है. जिनका प्वाइंट 1-5 रहेगा, उनकी प्रोन्नति रुकेगी, लेकिन यहां सबको 5-10 तक प्वाइंट मिलता है.
केंद्र में एसीआर काम के आधार पर ही : केंद्र सरकार में अफसरों का एसीआर उनके कार्यो के आधार पर लिखा जाता है और प्रोन्नति भी उसी आधार पर होती है. केंद्र सरकार में कार्यरत अफसरों का प्वाइंट अच्छा नहीं रहा, तो उनका नाम प्रमोशन के पैनल में आयेगा ही नहीं. इस तरह वे ज्वायंट सेक्रेटरी या सेक्रेटरी बन ही नहीं पायेंगे.
क्या होता था पहले के जमाने में
अफसरों के मुताबिक पुराने समय (आज से 30 साल पहले) एसीआर का बड़ा महत्व था. कंट्रोलिंग अफसर एसीआर ईमानदारी से खुद लिखते थे. एसीआर में संबंधित अफसर के कार्यो का पूरा ब्योरा लिखा होता था. हर साल 31 मार्च तक का एसीआर 30 जून तक मुख्यालय में जमा हो जाता था. अफसर के बारे में 10-15 लाइन की टिप्पणी होती थी कि अफसर किस क्षेत्र में कैसा है. सरकार के प्रति निष्ठा, कार्यो के प्रति निष्ठा व ईमानदारी, आम लोगों के प्रति उसकी भावना, विकास के बारे में सोच, प्रशासनिक समझ-बूझ, वित्तीय मामलों की जानकारी आदि बातें लिखी होती थी.
कैसे चलता है पुलिस विभाग (क्या है नियम)
पुरस्कृत/दंडित करने का सिस्टम ही समाप्त
अफसरों को पुरस्कृत या दंडित करने की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है. एसीआर लिखने का सिस्टम भी अब सिर्फ कोरम भर रह गया है. एसीआर लिखने की कोई समय-सीमा तय नहीं है. दो से चार साल बाद तक एसीआर लिखा जाता रहता है. एक साथ फाइलें आती हैं, उस पर नाम और संबंध को देख कर उत्कृष्ट, अच्छा, औसत या खराब लिख दिया जाता है. एसीआर का भी कोई महत्व नहीं रहा. एसीआर खराब रहने पर एएसआइ, दारोगा या इंस्पेक्टर की प्रोन्नति तो रोक दी जाती है, लेकिन एसपी या इसके ऊपर के स्तर के अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाता है. एसीआर में कुछ भी दर्ज हो, प्रोन्नति मिल ही जाती है.
सुधार के लिए यह हो सकता है सिस्टम
– पुलिस मैनुअल में जो प्रावधान है, उसमे कुछ संशोधन कर और सही तरीके से लागू करके पुलिस पदाधिकारियों के कार्यो के मूल्यांकन किया जा सकता है. हर दिन या माह कार्यो का मूल्यांकन थोड़ा कठिन जरूर है, पर त्रैमासिक व वार्षिक मूल्यांकन जरुर होना चाहिए. इसके साथ ही पदाधिकारियों को जनता के प्रति जिम्मेदारी तय करनी होगी. इसके लिए शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में वार्ड पार्षद, विधायक, सांसद का सहयोग लिया जा सकता है. आम जनता को यह लगेगा कि अगर पुलिस उनकी बात नहीं सुनती है, तो वार्ड पार्षद, विधायक या सांसद उनके हक में अफसरों से सवाल पूछ सकते हैं.
– थाना, इंस्पेक्टर कार्यालय, डीएसपी कार्यालय और एसपी कार्यालय का निरीक्षण तय समय पर हो. निरीक्षण रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई भी शुरू की जाये.
– पुलिस पदाधिकारियों के मासिक कार्य विवरणी पर सीनियर अफसरों के द्वारा टिप्पणी किया जाना सुनिश्चित किया जाये. लगातार खराब टिप्पणी होने पर पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जाये.
– एसीआर लिखने और लिखवाने की समय सीमा तय हो. हर साल का एसीआर हर हाल में 31 मार्च तक निकल जाये. एक अप्रैल को सरकार के स्तर से एक अलर्ट निकले कि जिन्होंने पिछले साल का एसीआर नहीं लिखवाया है, उन्हें 30 अप्रैल तक का समय दिया जाता है. अगर 30 दिन के भीतर वह एसीआर नहीं लिखते या लिखवाते हैं, तो उन्हें पदस्थापन की प्रतीक्षा में रख दिया जायेगा. साथ ही यह भी तय हो कि अगर कोई सीनियर एसीआर नहीं लिखते हैं, तो 30 अप्रैल के उनके मंतव्य का महत्व को खत्म माना जायेगा.
– एसीआर में पदाधिकारी के जिन कामों का उल्लेख किया जाता है, जिस पर उनके सीनियर मंतव्य देते हैं, उन कामों का डिटेल भी एसीआर में दिया जाये. इससे ग्रेडिंग करने का काम शुरू किया जा सकेगा.
– पांच-छह साल पहले डीएसपी का एसीआर का नया परफार्मा तैयार कर स्वीकृति के लिए सरकार के पास भेजा गया था, उसे स्वीकृत कर नया सिस्टम शुरू किया जा सकता है.
– इंस्पेक्टर, दारोगा और एएसआइ का एसीआर का नया परफार्मा पुलिस मुख्यालय के स्तर पर बनाया जाये.
न पुरस्कार मिला, न ही दंड
झारखंड ही नहीं, बल्कि एकीकृत बिहार के समय भी नौकरी कर सेवानिवृत्त हुए अफसरों के मुताबिक उन्होंने अपने कार्यकाल में कभी ऐसा नहीं देखा कि किसी अफसर को सीआर की वजह से पुरस्कार या दंड मिला हो. सीआर की वजह से कभी भी किसी का प्रमोशन तक बाधित नहीं हुआ. अमूमन सीआर सबका बेहतर लिखा होता है. अगर किसी अफसर को सीआर के तहत प्वाइंट आठ से कम मिलता है, तब भी उनकी प्रोन्नति नहीं रुकती है, जबकि आठ या इससे कम प्वाइंट होने पर प्रमोशन बाधित होने का प्रावधान है. उन्होंने बताया : सीआर लिखनेवाला अफसर, संबंधित पदाधिकारी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी व गंभीर टिप्पणी न करे, प्रमोशन बाधित नहीं होता है. यही नहीं, प्वाइंट काफी अच्छा होने के बाद भी पुरस्कृत नहीं किया जाता है.
किसका कौन लिखता है एसीआर
डीसी का कमिश्नर, फिर सदस्य राजस्व पर्षद व मुख्य सचिव, अंत में मुख्यमंत्री
कमिश्नर का सदस्य राजस्व पर्षद, मुख्य सचिव, अंत में मुख्यमंत्री
सचिवों का मुख्य सचिव, विभागीय मंत्री, फिर मुख्यमंत्री
मुख्य सचिव का मुख्यमंत्री
राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर
डीडीसी-उपायुक्त, फिर आयुक्त, अंत में मुख्य सचिव
एसडीओ-उपायुक्त, फिर आयुक्त
बीडीओ/सीओ-उपायुक्त, फिर आयुक्त
गड़बड़ी का नहीं होता है उल्लेख
अफसरों के एसीआर मे उनके द्वारा बरती गयी अनियमितता का स्पष्ट उल्लेख तक नहीं होता है. इसका लाभ उन्हें प्रोन्नति या बेहतर स्थान में तबादला करवाने में मिल जाता है.
मौखिक जानकारी पर भी तबादला
सरकार में सामान्यत: तबादले का आधार साफ है. सरकार की इच्छा तबादले का मुख्य आधार होता है. तबादले में यह नहीं देखा जाता है कि अफसर की कार्यशैली क्या रही है. किस फील्ड में वह बेहतर कर रहा है. उसका क्रियाकलाप अच्छा है या नहीं? उक्त पद के योग्य है या नहीं? इन सारे विषयों को दरकिनार किया जाता है और अफसर की सरकार से नजदीकी व पैठ के आधार पर तबादला किया जाता है. हालांकि कई दफा आला अफसर महत्वपूर्ण पदों पर तबादले के पहले उक्त अफसर के बारे में मौखिक जानकारी दूसरे कंट्रोलिंग अफसरों (उपायुक्तों व अन्य) से प्राप्त करते हैं.
सरकार मानती है कि सिस्टम ठीक नहीं
राज्य सरकार भी मानती है कि अफसरों का एसीआर पर्याप्त नहीं है. मौजूदा सिस्टम ठीक नहीं है. इसमें सुधार की जरूरत है. इस वजह से पूर्व की हेमंत सरकार के समय कार्मिक विभाग ने अफसरों के एसीआर लिखने की पद्धति में बदलाव लाने के लिए संचिका बढ़ायी थी, पर सारे अफसरों के लिए एक ही व्यवस्था करने की टिप्पणी के साथ संचिका लौटा दी गयी. तब यह केवल राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के लिए था. तब से यह मामला पड़ा हुआ है.
बार-बार तबादले से क्षति
अफसरों के बार-बार तबादले का असर सीधे सरकार के काम पर पड़ता है. अफसर काम सीख भी नहीं पाते और उन्हें बदल दिया जाता है. ऐसे में उक्त विभाग का काम काफी पीछे चला जाता है. ऐसे कई मामले राज्य में देखने को मिलते हैं. मुख्य सचिव से लेकर सचिवों के पद तक में यही स्थिति हो रही है. यानी बिना टर्म पूरा किये ही तबादले की परंपरा यहां बन गयी है. नतीजन धीमी प्रगति, धीमा विकास, कम खर्च, कम राजस्व उगाही, सारा कुछ लक्ष्य से पीछे आदि परिणाम सामने आते हैं, जो राज्य को पीछे धकेलती है.
अफसरों की विशिष्टता देखने की परिपाटी तक नहीं
यहां शुरू से अफसरों की विशिष्टता नहीं देखी जाती है. उसके आधार पर उन्हें काम पर नहीं लगाया जाता है. अफसरों को अलग-अलग विषयों में महारथ हासिल होती है. जैसे विकास कार्यो, प्रशासनिक काम, वित्तीय कार्य, राजस्व वसूली, शैक्षणिक काम आदि के वे जानकार होते हैं. ऐसे में उनकी विशिष्टता को देख कर पद नहीं दिया जाता है.

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