रांचीः हाइकोर्ट ने बुधवार को आइएएस अफसरों के कमी को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र व राज्य सरकार की कार्यशैली पर नाराजगी जतायी. कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा: गैर सिविल सेवा के अधिकारियों को आइएएस कैडर में प्रोन्नति के लिए निर्धारित पद कैसे लैप्स हो गये. वर्ष 2000 से लेकर 2013 तक नौ पद के विरुद्ध सिर्फ एक अधिकारी को ही प्रोन्नति मिली है, वह भी कोर्ट के आदेश के बाद.
ऐसा लगता है कि राज्य सरकार जानबूझ कर गैर सिविल सेवा के अधिकारियों को आइएएस बनाना नहीं चाहती है. इन सेवाओं के अधिकारियों से क्या एलर्जी है. प्रोन्नति के लिए सरकार यूपीएससी को अनुशंसा नहीं भेजती है या त्रुटिपूर्ण अनुशंसा भेज दी जाती है. राज्य सरकार की अनुशंसा को यूपीएससी डिफेक्ट बताता है. यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है. मामला लंबित रखना उचित नहीं है. आइएएस अफसरों की कमी व वर्तमान अधिकारियों के लेथाजिर्क एप्रोच की वजह से झारखंड, केंद्र सरकार से करोड़ों रुपये नहीं ले पा रहा है. राशि लैप्स हो जाती है.
कोर्ट अब और समय नहीं देगा. केंद्र, यूपीएसएसी व राज्य सरकार के अफसर अभिलेख के साथ 19 सितंबर को सुनवाई के दौरान उपस्थित रहें. पिछली बेंच पर बैठ कर आपत्तियों का निराकरण करें. साथ ही कोर्ट ने राज्य व केंद्र सरकार को शपथ पत्र के माध्यम से विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. एक्टिंग चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस एस चंद्रशेखर की खंडपीठ में मामले की सुनवाई हुई. प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अनिल कुमार सिन्हा, एमीकस क्यूरी सुमित गड़ोदिया ने पैरवी की. उल्लेखनीय है कि आइएएस अफसरों के कमी को गंभीरता से लेते हुए हाइकोर्ट ने जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था. गैर सिविल सेवा के उमेश मेहता, उदय शंकर सहाय, माधव जी व अन्य की ओर से हस्तक्षेप याचिका दायर की गयी है.