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..हर घंटे लगता था कि अब अंतिम घड़ी आ गयी

काठमांडू से सुरक्षित लौटे सीसीएल के अफसर, बतायी आपबीती दहशत में गुजरे तीन दिन मनोज सिंह रांची : सीसीएल के अफसर आलोक गुप्ता काठमांडू (नेपाल) से सकुशल रांची लौट आये. भूकंप के दिन (25 अप्रैल) को वह काठमांडु में ही थे. भूकंप के बाद तीन दिन पूरे परिवार के साथ दहशत में रहे. हर घंटे […]

काठमांडू से सुरक्षित लौटे सीसीएल के अफसर, बतायी आपबीती
दहशत में गुजरे तीन दिन
मनोज सिंह
रांची : सीसीएल के अफसर आलोक गुप्ता काठमांडू (नेपाल) से सकुशल रांची लौट आये. भूकंप के दिन (25 अप्रैल) को वह काठमांडु में ही थे. भूकंप के बाद तीन दिन पूरे परिवार के साथ दहशत में रहे. हर घंटे मौत के साये में गुजारा. एक-एक मिनट काटना मुश्किल हो गया था.
वहां से लौटने के बाद उन्होंने पूरा संस्मरण सुनाया. श्री गुप्ता पूरे परिवार के साथ 17 अप्रैल को शादी समारोह में शामिल होने काठमांडू गये थे. 22 अप्रैल को होटल एवरेस्ट इंटरनेशनल में शादी हुई. 23 को होटल से काठमांडू स्थित घर में आ गये थे. 24 अप्रैल को पूरे परिवार के साथ काठमांडू घूमे. 25 अप्रैल की शाम को काठमांडू से फ्लाइट था. इसी दिन सुबह अपने भांजा के साथ पूजा करने पशुपति नाथ मंदिर गये.
घर से पशुपति नाथ मंदिर की दूरी 10 किलोमीटर थी. लौटने के क्रम में होटल का बिल भी देना था, इस कारण दोनों मोटरसाइकिल से ही निकले थे. पूजा कर लौटने के क्रम में होटल एवरेस्ट इंटरनेशनल पहुंचे. वहां पहुंच कर कुछ मिनट ही रुके थे कि होटल की लॉबी से कुछ जापानी हल्ला करते हुए बाहर भागे. उस समय तक उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन समझते देर नहीं लगा कि भूकंप आ गया है.
उन्होंने बताया कि होटल से भागने के क्रम में एक डेकोरेटेड ग्लास मेरे बगल में गिरा. मैं जाकर होटल के एक पिलर से सट कर खड़ा हो गया. पिलर भी कांपने लगा. तब लगा यहां से भागना चाहिए. भागते हुए होटल के सामने से ओपेन स्पेश में पहुंचा. तब भांजे की याद आयी. पीछे मुड़ कर देखा तो वह भी मेरे पीछे ही था. दोनों वहां से भाग कर करीब 100 फीट आगे 70 फीट चौड़ी सड़क पर आ गया. वहां सभी बदहवास इधर-उधर भाग रहे थे.
रास्ते में चलने वाले करीब-करीब सभी मोटरसाइकिल चालक गिरे हुए थे. उस वक्त तक झटका महसूस हो रहा था. भांजे के साथ मैं डिवाइडर पकड़ कर बैठ गया. सामने कई कमजोर बिल्डिंग गिर रहे थे. होटल एवरेस्ट इंटरनेशनल ऐसा हिल रहा था कि मानों पवन के झोंके से पेड़ हिल रहा है. देखते-देखते पूरा काठमांडू सड़क पर आ गया था.
अब तक झटका खत्म हो चुका था. तब अपने पिता कुलदीप नारायण गुप्ता (79 साल) और माता शांति देवी गुप्ता (75 साल) सहित अपने बच्चों और परिजनों की याद आयी. भांजे के साथ मोटरसाइकिल से घर की ओर निकला. घर जाने का शॉर्टकट रास्ता धरहरा टावर की ओर से जाता था. उधर गया तो पुलिस जाने नहीं दे रही थी. टावर गिर गया था. इसमें करीब 250 लोगों के दबे होने की सूचना थी. जैसे-तैसे कुछ देर में घर पहुंचा. देखा पूरा परिवार घर के बाहर ओपेन स्पेश में खड़ा है. कोई रो रहा है, तो कोई सांत्वना दे रहा है. सभी सुरक्षित थे. दो-तीन घंटे घर के बाहर ही रहे. सभी भूख-प्यासे थे.
इस दौरान कई बार हल्का-हल्का कंपन हो रहा था. हर कंपन से कुछ सेकेंड पहले कु त्ते रोने लगते थे. इसी बीच कुछ लोग आये, कहा कि सात बजे शाम को 13.5 रिक्टर स्केल का कंपन होगा. पूरा परिवार घर से एक-एक चादर लेकर भूगोल पार्क पहुंच गये. पूरा पार्क भरा हुआ था. किसी तरह एडजस्ट किया. तब तक पूरा परिवार भूखा था. जैसे-जैसे सात बजने को आ रहा था.
पूरा परिवार सहमा हुआ था. सभी एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर भगवान को याद कर रहे थे. एक रिश्तेदार को एसएमएस किया कि कुछ होगा, तो परिवार को देख लेना. सात बजे कुछ नहीं हुआ. इसके बाद किसी ने कहा कि 11 बजे फिर तेज झटका आयेगा. सामने नेपाल फायर स्टेशन का कार्यालय था. वहां पूछने गया कि क्या सूचना में सच्चई है? वहां बैठे लोगों ने बताया कि 10 रिक्टर स्केल से ज्यादा का झटका आया, तो कोई नहीं बचेगा.
वहां से मैदान में आया तो नेपाल सरकार की ओर से खाने के लिए एक-एक पैकेट चूड़ा और पानी की बोतल दी गयी. 11 बजे भी कोई झटका नहीं आया, लेकिन तेज बारिश होने लगी. पूरा परिवार बारिश में भीग रहा था, ठंड लग रही थी. सामने छिपने का स्थान था, लेकिन वहां कोई नहीं जा रहा था. जगमगाने वाला काठमांडू घुप्प अंधरे में था.
26 अप्रैल को दिन खुला तो हम लोग घर गये. वहां से किसी तरह सामान लेकर एयरपोर्ट के लिए निकले. करीब 10 किलोमीटर दूर एयरपोर्ट जाने के लिए तीन हजार रुपये किराया देना पड़ा. एयरपोर्ट की हालत तो और खराब थी. रोड और रेल का माध्यम बंद हो चुका था.
नेपाल से निकलने का एक मात्र विकल्प हवाई जहाज ही था. कॉमर्शियल फ्लाइट नहीं आ रहा था. बताया गया कि एयरफोर्स की रेस्क्यू वाली टीम के साथ जाना होगा. हम लोग कतार में खड़े हो गये. करीब तीन किलोमीटर लंबी लाइन थी. हम 1200 से अधिक लोगों के पीछे थे. एक फ्लाइट एक बार में 250 लोगों को ही लेकर भारत जा रहा था.
कतार में ही हम लोगों की रात गुजर गयी. 27 अप्रैल को कुछ लोग भारत विरोधी नारे लगाने लगे. कुछ लोगों को कहना था कि रेस्क्यू फ्लाइट नहीं आयेगी. नेपाल के अधिकारी भी कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे. मोबाइल डिस्चार्ज हो गया था.
एक बार में 10 मिनट से ज्यादा मोबाइल चार्ज नहीं करने दिया जाता था. चार्ज होने पर रांची में रमेश पुष्कर से संपर्क किया. उससे पूछा कि भारत सरकार क्या फ्लाइट भेज रही है? थोड़ी देर बाद रमेश पुष्कर ने बताया कि चार फ्लाइट जानेवाली है. हम लोगों के हाथ में नंबर लिख दिया गया था. 27 अप्रैल को फ्लाइट आयी, तो हमलोग भारत आ सके.
दिल्ली में झारखंड सरकार के अधिकारी वीके सिंह हम लोगों को लेकर झारखंड भवन गये. वहां हम लोगों के लिए रहने की व्यवस्था की गयी थी. भारत आकर लगा कि अब हम बच गये हैं..

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