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बच्चों की पढ़ाई का स्तर न सुधरना चिंताजनक
झारखंड में प्राथमिक शिक्षा डॉ रुक्मिणी बनर्जी खूंटी होते हुए चाईबासा की तरफ जाने का रास्ता घाटी पार करके मैदानी इलाके की तरफ जाता है. पहाड़ के ऊपर से देखने पर नीचे का नजारा इस मौसम में बहुत ही खूबसूरत लगता है. जहां तक नजर दौड़ायें जंगल ही जंगल और उसी के बीच टेसू के […]
झारखंड में प्राथमिक शिक्षा
डॉ रुक्मिणी बनर्जी
खूंटी होते हुए चाईबासा की तरफ जाने का रास्ता घाटी पार करके मैदानी इलाके की तरफ जाता है. पहाड़ के ऊपर से देखने पर नीचे का नजारा इस मौसम में बहुत ही खूबसूरत लगता है. जहां तक नजर दौड़ायें जंगल ही जंगल और उसी के बीच टेसू के लाल फूल. इसी इलाके के एक छोटे से गांव में हम आकर रुके. रविवार का दिन था. हम गांव में स्कूल के सामने खड़े थे.
हमें देखकर बहुत सारे बच्चे वहां आ गये. वे जानना चाहते थे कि हम कौन हैं और कहां से आये हैं. बड़ी उत्सुकता के साथ उन्होंने हमें स्कूल दिखाया और गांव की सैर भी करायी. घूमने-घुमाने के बाद उत्साह से स्कूल के प्रांगण में पलाश के पेड़ के नीचे बच्चे हमें अपनी पसंद के खेल दिखाने लगे.
झारखंड में घूमते हुए लग रहा था कि उम्मीद की एक नयी लहर फैल रही है. इस लहर को रांची की सड़कों पर महसूस किया जा सकता है और दूर-दराज के छोटे-छोटे गांव में भी. राज्य में नयी सरकार से यह उम्मीद बनी है. हम आशा करते हैं कि नयी सरकार पांच वर्र्षो का अपना कार्यकाल पूरा करेगी. लगातार पांच साल मजबूती और लगन से काम किया जाये तो सचमुच नींव मजबूत हो सकती है.
शिक्षा की बात करें तो हमें सोचना होगा कि हम शुरू कहां से करें और हमें कहां तक जाना है? यह प्रश्न केवल स्कूल एवं आधारभूत सरंचनाओं का ही नहीं है. इसके साथ-साथ हमें यह भी सोचना होगा कि हमारे बच्चे इस शिक्षा प्रणाली से क्या सीखेंगे?
सालाना अप्रैल की शुरुआत में ‘शिक्षा के अधिकार के नियम’ (आरटीइ एक्ट ) का जन्मदिन होता है.
इस समय कई दिनों के लिए शिक्षा व्यवस्था पर बहुत चर्चाएं होती हैं. इस वक्त अगर हम झारखंड के पिछले दस सालों को देखें तो स्कूलों की प्रणाली में थोड़ा सुधार जरूर दिखा है. सरकार द्वारा उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि स्कूलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. वर्ष 2004-2005 में स्कूलों की संख्या 22,000 से बढ़कर लगभग 45,000 तक पहुंच गयी है.
इसी प्रकार कक्षा 1-8 में छात्रों का नामांकन भी 37 लाख से बढ़कर 50 लाख तक पहुंच गया है. सरकारी शिक्षकों की संख्या में भी दोगुनी वृद्धि हुई है. ‘असर’ द्वारा किये गये सर्वे बताते हैं कि स्कूलों की सुविधाओं में भी हर साल परिवर्तन आ रहा है. इन सब सुधारों के बावजूद झारखंड के स्कूलों के सीखने-सिखाने से संबंधित कुछ तथ्य ऐसे भी हैं, जिनमें कोई बदलाव नहीं हुआ है.
दस साल पहले प्राथमिक स्कूलों में औसतन दो शिक्षक हुआ करते थे. आज भी यही स्थिति है. स्कूलों की संख्या तो बढ़ी है पर साथ-साथ छोटे स्कूलों (नामांकन 50 से कम) के प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है. पहले जहां छोटे स्कूल का अनुपात 15.6 फीसदी था, 2013- 2014 में यह अनुपात बढ़ कर 40 फीसदी हो गया है.
(ये आंकड़े डाइस डाटा के हैं.) जारी.
लेखक ‘असर’ के निदेशक हैं.
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