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कैसी हो हमारी स्थानीय नीति

सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज […]

सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज सकते हैं. हमारा पता है : सिटी डेस्क, प्रभात खबर, 15-पी, कोकर इंडस्ट्रीयल एरिया, रांची या फिर हमें मेल करें.
स्थानीयता का मानदंड राज्य गठन की तिथि हो
बिकास कुमार सिंह
इस बात पर सहमति बनायी जा सकती है कि स्थानीयता का मानदंड राज्य गठन की तिथि (15 नवंबर 2000) हो. इसका आधार, जो लोग राज्य गठन के दिन तक का प्रमाण पत्र रखते हैं, उन्हें स्थानीयता का लाभ देना बेहतर होगा. जबकि कुछ लोग यह कह रहे हैं कि जिनके पास खतियानी है, जमीन है वे ही यहां के स्थानीय कहलाने के हकदार हैं. मैं इस बात से सहमत नहीं हूं.
झारखंड बनने में सभी वर्ग के लोगों ने अपने-अपने तरीके से संघर्ष किया था और ऐसे में सरकार को सिर्फ खतियानी रखने वाले लोगों को स्थानीयता का लाभ देना कतिपय अनुचित निर्णय होगा. आज भी बहुत लोग ऐसे हैं जिनके पास जमीन नहीं है, तो क्या वे यहां के स्थानीय नहीं हैं. झारखंडी भाषा, संस्कृति, परंपरा और जनसंख्या को आधार बनाकर स्थानीयता तय करना राज्य की जनता के साथ छलावा होगा, क्योंकि राज्य सरकार की ओर से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए नौकरी या अन्य कई जनोपयोगी सेवाओं में लाभ दिया जाता है.
छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल में भी स्थानीयता का मानदंड यही है. मुङो लगता है कि झारखंड सरकार को भी इसी आधार पर स्थानीयता तय करना चाहिए. 15 नवंबर 2000 के अलावा और कोई भी तिथि से स्थानीयता का मानदंड नहीं तय करना चाहिए.
(लेखक चेंबर के निवर्तमान अध्यक्ष हैं)
अंतिम सर्वे, परंपरा और संस्कृति हो आधार
आनंद सिंह मुंडा
झारखंड में बाहर से आये वे लोग जिनका समाज के प्रत्येक क्षेत्र में प्रभुत्व है, वे स्थानीयता के मुद्दे को उलझाना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि स्थानीयता भी उनके अनुकूल हो. लगातार इसके लिए कोशिश चल रही है. कभी सभी के हितों को लेकर स्थानीय नीति बनाने की बात कही जाती है, तो कभी वर्ष 2000 को आधार बनाने की बात कही जाती है. कभी झारखंड की सामाजिक समरसता की बात कही जाती है. यह एक गहरी साजिश है. इसे झारखंडी लोगों को समझना होगा. झारखंड भौगोलिक और सांस्कृतिक आधार पर हमेशा से ही बिहार से अलग रहा है और यही आधार झारखंड के अलग होने का कारण बना. स्थानीयता का सवाल सिर्फ नौकरी का ही नहीं बल्कि पहचान व अस्तित्व से भी जुड़ा है. झारखंड के आदिवासियों ने अपनी अलग पहचान बनाकर रखी.
मूल संकट सदानों के साथ है. बिहार के उपनिवेश के दौरान आदिवासियों ने अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाकर रखी, किंतु गैरआदिवासी सदानों का बाहरी लोगों के संपर्क एवं संस्कृतीकरण के कारण उनकी पहचान खत्म होने लगी. स्थानीय नीति बनाने का आधार अंतिम सर्वे खतियान तथा भाषायी और सांस्कृतिक आधार नहीं बनाया गया तो झारखंड के मूल निवासी ठगे जायेंगे. अन्य आधारों पर बनी स्थानीय नीति यहां के आदिवासी सदानों के लिए मजाक बनकर रह जायेगा.
(लेखक आदिवासी छात्र संघ के संस्थापक सदस्य हैं)

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