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ग्रामसभा में वन पट्टा के 12293 मामले लंबित

संजय रांची : राज्य भर के कुल 49237 लोगों ने वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत वन भूमि का पट्टा के लिए आवेदन दिये हैं. इनमें से 18516 लोगों को पट्टा वितरित किये गये हैं, जिसका रकबा लगभग 44387 एकड़ है. वहीं 26 फरवरी 2015 तक के आंकड़े के अनुसार कुल 13295 आवेदन ग्रामसभा, अनुमंडल वन […]

संजय
रांची : राज्य भर के कुल 49237 लोगों ने वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत वन भूमि का पट्टा के लिए आवेदन दिये हैं. इनमें से 18516 लोगों को पट्टा वितरित किये गये हैं, जिसका रकबा लगभग 44387 एकड़ है. वहीं 26 फरवरी 2015 तक के आंकड़े के अनुसार कुल 13295 आवेदन ग्रामसभा, अनुमंडल वन अधिकार समिति व जिला स्तरीय कमेटी के स्तर पर लंबित हैं.
सबसे ज्यादा 12293 मामले ग्रामसभा स्तर पर लंबित हैं. वन पट्टा संबंधी आवेदन सत्यापन के लिए ग्रामीण वनाधिकार समिति (वीआरसी) को न देने तथा सत्यापन के बाद इसे अनुमंडल वन अधिकार समिति को अग्रसारित न करने वाले जिलों में सिमडेगा, प.सिंहभूम, गढ़वा व लातेहार जिले शामिल हैं. वहीं लातेहार व लोहरदगा की अनुमंडल स्तरीय समिति तथा लातेहार, सरायकेला व गढ़वा की जिला स्तरीय कमेटी के पास भी पट्टा आवेदन लंबित है.
क्या है वन अधिकार अधिनियम : वन अधिकार अधिनियम-06, वनों में रहने वाले परंपरागत निवासी व वन वासियों को वन भूमि व अन्य संसाधनों की सहायता से जीवन यापन का अधिकार देता है. वनों में रहने वाले जनजातीय (एसटी) समुदाय के लोग, जो 13 दिसंबर 2005 से पहले से वनों पर निर्भर हैं, उन्हें अधिनियम के तहत वन भूमि पट्टा देने का प्रावधान है. वहीं उन गैर जनजातीय लोगों को भी पट्टा दिया जाना है, जो 13 दिसंबर 2005 से पूर्व तीन पीढ़ियों (75 वर्षो) से जंगलों में रह रहे हैं.
क्या है प्रक्रिया : वन भूमि पट्टा पाने के लिए लाभुक ग्राम सभा को आवेदन देते हैं. ग्राम सभा इसे स्वीकार करने से पहले ग्रामीण वन अधिकार समिति को प्राधिकृत करती है. ग्रामीण समिति आवेदन को सत्यापित कर ग्राम सभा को लौटाती है. ग्राम सभा समिति के निष्कर्षो पर विचार कर संकल्प पारित करती है तथा आवेदन अनुमंडल वन अधिकार समिति को अग्रसारित कर दिया जाता है. एसएलडीसी आवेदन की जांच कर इसे जिला स्तरीय समिति को भेज देती है. वहां स्वीकृत हो जाने पर वन भूमि पट्टा संबंधित व्यक्तिगत को मिल जाता है.
क्या-क्या मिलता है अधिकार : निवास स्थान की भूमि पर खेती का अधिकार. लघु वन उत्पादों के संग्रह, उपयोग, स्वामित्व व व्ययन का अधिकार. घुमक्कड़ जातियों को वनों में स्थित जलाशय व नदियों से मछली पकड़ने तथा अन्य मौसमी संसाधनों तक पहुंच का अधिकार. आदिम जनजाति को वन भूमि सामुदायिक रूप से धारित करने का अधिकार. वन ग्राम व बसावट को राजस्व ग्राम में परिवर्तित करने का अधिकार मिलता है.
कहां कितने लंबित मामले
ग्रामसभा (12293) : सिमडेगा-4167, प.सिंहभूम-3901, गढ़वा-1716, लातेहार-1646, पलामू-461, चतरा-366, बोकारो-21, लोहरदगा-13 तथा खूंटी-02
अनुमंडल वन अधिकार समिति (709): लातेहार-262, लोहरदगा-227, रांची-88, प.सिंहभूम-44, गुमला-35, बोकारो-29 तथा चतरा-18
जिला स्तरीय समिति (293) : लातेहार-77, सरायकेला-76, गढ़वा-56, सिमडेगा-35, गुमला-23 तथा पू.सिंहभूम-17

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