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बच्चों को स्कूल से जोड़ने की अनोखी मुहिम

रांची : लालखटंगा के सीजनल हॉस्टल एवं रातू स्थित विशेष प्रशिक्षण शिविर में बच्चों को ब्रिज कोर्स के जरिये वापस शिक्षा व स्कूलों से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. सीजनल हॉस्टल एवं रातू के डायट परिसर स्थित महिला समाख्या के विशेष प्रशिक्षण शिविर का संचालन यूनिसेफ के सहयोग से हो रहा है. सीजनल […]

रांची : लालखटंगा के सीजनल हॉस्टल एवं रातू स्थित विशेष प्रशिक्षण शिविर में बच्चों को ब्रिज कोर्स के जरिये वापस शिक्षा व स्कूलों से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है.
सीजनल हॉस्टल एवं रातू के डायट परिसर स्थित महिला समाख्या के विशेष प्रशिक्षण शिविर का संचालन यूनिसेफ के सहयोग से हो रहा है. सीजनल हॉस्टल ईंट भट्टे या अन्य कामों के लिए पलायन करनेवाले मजदूरों के बच्चों के लिए है. राज्य में ऐसे महज दो हॉस्टल हैं. एक रांची (लालखटंगा) व दूसरा सरायकेला में. महिला समाख्या सोसाइटी के द्वारा दस जिलों में विशेष प्रशिक्षण शिविर चलाया जा रहा है.
यूनिसेफ के झारखंड प्रमुख जॉब जकारिया ने कहा कि शिक्षा से वंचित बच्चों को स्कूलों से जोड़ने के लिए यह सराहनीय प्रयास है, पर राज्य में जितनी तादाद में ऐसे बच्चे हैं उन सभी के लिए इस तरह के सीजनल हॉस्टल व विशेष प्रशिक्षण शिविर का होना आवश्यक है.
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में लगभग 28 लाख बच्चे ऐसे हैं जो नियमित रूप से स्कूल नहीं जाते. इसके अलावा लगभग दो से तीन लाख बच्चे ऐसे हैं जिनका स्कूलों में कभी नामांकन नहीं हुआ और जो पूरी तरह शिक्षा से वंचित हैं. इन बच्चों की अलग-अलग श्रेणी है. कुछ बच्चे पलायन करनेवाले मजदूरों के परिवार के हैं. कुछ ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चे, कुछ घरेलू काम में उलझने के कारण स्कूल नहीं जाते हैं. ऐसे बच्चों को स्कूलों में प्रवेश दिलाने से पहले ब्रिज कोर्स कराना जरूरी होता है.
केस : एक
13 साल का एतवा उरांव पिछले तीन साल से आशा (एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस) के सीजनल हॉस्टल में रह रहा है. यह हॉस्टल लालखटंगा पंचायत के नया भुसूर गांव में स्थित है. एतवा के पिता मनी उरांव व मां पश्चिम बंगाल में ईंट भट्ठे में काम करते हैं. कुछ साल पहले तक वह भी अपने माता-पिता के साथ साल के कई महीने ईंट भट्ठे में अमानवीय परिस्थिति में रह रहा था.
अब वह सीजनल हॉस्टल में रहता हैजहां उसने बुनियादी शिक्षा प्राप्त की. अब वह बगल के ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई कर रहा है. फिलहाल सीजनल हॉस्टल में 84 बच्चे हैं. इनके माता-पिता इन्हें निश्चिंत हो कर साल के छह से आठ महीने तक इस हॉस्टल में छोड़ देते हैं जहां बच्चों के रहने, खाने-पीने व शिक्षा की व्यवस्था की जाती है.
केस : दो
चान्हो की रहनेवाली सूरजमनी कुमारी की स्कूली की पढ़ाई छूट गयी थी क्योंकि उसे मवेशियों को चराने जाना पड़ता था. कुछ महीने पहले वह झारखंड महिला समाख्या सोसाइटी के विशेष प्रशिक्षण शिविर में आयी. अब वह फिर से पढ़ाई से जुड़ गयी है. वहां पढ़ाई के साथ योग, पेंटिंग, गीत आदि सीख रही है. शिविर में उसके जैसी अन्य बच्चियां (छह से 14 वर्ष) भी हैं. इनमें कई बच्चियां ऐसी हैं जो कभी भी स्कूल नहीं गयीं. इन सभी को ब्रिज कोर्स के जरिये स्कूलों के लिए तैयार किया जाता है. फिर उम्र व शिक्षण स्तर के आधार पर सरकारी स्कूलों में नामांकन कराया जाता है.

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