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आंगनबाड़ी का पोषाहार बना पशु आहार

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि वह कुपोषण मुक्त झारखंड बनाना चाहते हैं. प्रभात खबर व यूनिसेफ के संयुक्त कार्यक्रम विजन फॉर झारखंड में 29 जनवरी को उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार अगले पांच सालों में राज्य को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए कार्य करेगी. उन्होंने मानदेय पर 14 हजार पोषण सखियों की […]

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि वह कुपोषण मुक्त झारखंड बनाना चाहते हैं. प्रभात खबर व यूनिसेफ के संयुक्त कार्यक्रम विजन फॉर झारखंड में 29 जनवरी को उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार अगले पांच सालों में राज्य को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए कार्य करेगी. उन्होंने मानदेय पर 14 हजार पोषण सखियों की नियुक्ति करने तथा राज्य में इंटीग्रेटेड न्यूट्रिशन मिशन शुरू करने की भी बात कही थी. साफ है कि मुख्यमंत्री कुपोषण की समस्या को गंभीरता से ले रहे हैं. इधर, राज्य के आंगनबाड़ी केंद्रों पर मिलने वाला तैयार खाना (रेडी-टू-इट) पशु आहार बन गया है. कई जिलों से यह शिकायत मिल रही है कि माताओं, बच्चों व धात्री महिलाओं को इसका स्वाद नहीं भा रहा, इसलिए लाभुक इसे पशुओं को खिला रहे हैं. नगड़ी के कुछ पशुपालकों ने तो पैकेट बंद यह खाद्य थोक में इकट्ठा कर रखा है.
रांची: समाज कल्याण विभाग के समेकित बाल विकास कार्यक्रम (आइसीडीएस) के तहत संचालित पोषाहार का कार्यक्रम अपना मूल उद्देश्य पूरा नहीं कर रहा. रेडी-टू-इट खाद्य राज्य भर के सभी 38432 आंगनबाड़ी केंद्रों पर छह माह से तीन वर्ष तक के बच्चों सहित गर्भवती व धात्री महिलाओं को उपलब्ध कराया जा रहा है, पर इसका लाभ उन्हें नहीं मिल रहा. बड़ी कंपनियों को पोषाहार की आपूर्ति का ठेका देकर पूर्व की राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश (13 दिसंबर 2006) का उल्लंघन किया है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि पोषाहार कार्यक्रम में ठेकेदार की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने इस कार्यक्रम को समुदाय व स्वयं सहायता समूह आधारित बनाने को कहा है.
दरअसल हेमंत सरकार में समाज कल्याण मंत्री रही अन्नपूर्णा देवी के कार्यकाल में तैयार पोषाहार आपूर्ति का ठेका दिया गया था. अभी तीन कंपनियां मेसर्स आदित्य फ्लोर मिल बोकारो, मेसर्स इंटरलिंक फूड्स प्रालि दिल्ली व मेसर्स कोटा दाल मिल कोटा राजस्थान राज्य के जिलों में अलग-अलग आपूर्ति कर रही है. चालू वित्तीय वर्ष में पोषाहार का बजट करीब 48 करोड़ का है. बच्चों, गर्भवती व धात्री महिलाओं के लिए पैकेट बंद खाद्य क्रमश: नारंगी, गुलाबी व हरे रंग के पैकेट में वितरित होता है. इसमें 750 तथा 900-900 ग्राम पंजरी तथा फोर्टिफाइड न्यूट्रो उपमा होता है. लाभुक बच्चों को हर रोज 125 ग्राम तथा गर्भवती व धात्री महिलाओं को 150-150 ग्राम प्रतिदिन के हिसाब से अधिकतम 24 दिनों के लिए हर माह चार-चार पैकेट खाद्य उपलब्ध कराया जाता है. विभिन्न स्रोतों (आम लोग, एनजीओ व लाभुक) से प्राप्त जानकारी की अनुसार राज्य भर में रेडी-टू-इट संबंधी शिकायतें मिल रही हैं. ताजा शिकायत खूंटी जिले की है.
किस कंपनी की कहां आपूर्ति
मेसर्स आदित्य फ्लोर मिल बोकारो : बोकारो, रामगढ़, कोडरमा, लोहरदगा, पलामू, गढ़वा और लातेहार.
मेसर्स इंटरलिंक फूड्स प्रालि. दिल्ली : रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, पू.सिंहभूम, प.सिंहभूम व सरायकेला.
मेसर्स कोटा दाल मिल राजस्थान : हजारीबाग, धनबाद, गिरिडीह, चतरा, दुमका, जामताड़ा, पाकुड़, गोड्डा, साहेबगंज व देवघर.
मिल रही हैं ऐसी शिकायतें
कोडरमा : पैकेट बंद खाद्य से बच्चों की तबीयत बिगड़ जाती है (10 सितंबर 14 को पंचायत समिति की बैठक)
कोडरमा : खाद्य रूचिकर नहीं है. लोग उसे पशुओं को खिला रहे हैं (सेविका-सहायिका संघ का सम्मेलन)
अनगड़ा : सड़ा हुआ खाद्य वितरित, जी मचलने की शिकायत (17 सितंबर 2014)
दुमका : कर्णपुरा पंचायत के लोग पैकेट बंद खाद्य बकरियों को खिला रहे (एनजीओ को बताया)
रांची (ओरमांझी) : पोषाहार के पैकेट में लोहे का टुकड़ा मिला है (सुप्रीम कोर्ट के प्रतिनिधि बलराम का वक्तव्य)
झारखंड में यह कार्यक्रम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर चल रहा है. समुदाय व स्वयं सहायता समूह सहित स्थानीय लोगों के हाथों में इसे सौंपने के बजाय बड़े ठेकेदार व कंपनियों को पोषाहार आपूर्ति का काम दिया गया है. इसकी जांच होनी चाहिए.
बलराम
खाद्य सुरक्षा संबंधी मामले में सुप्रीम कोर्ट के राज्य प्रतिनिधि

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