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सरकारी उदासीनता से लटका अपोलो का निर्माण

रांची: राजधानी के घाघरा में चेन्नई अपोलो अस्पताल बनाने का मामला सरकारी उदासीनता के कारण लटका हुआ है. फाइलों के मकड़जाल में उलङो इस अस्पताल का निर्माण कब तक प्रारंभ होगा, यह कहने की स्थिति में न तो सरकार के अधिकारी हैं और न ही नगर निगम के अधिकारी. अक्तूबर 2014 में कैबिनेट की बैठक […]

रांची: राजधानी के घाघरा में चेन्नई अपोलो अस्पताल बनाने का मामला सरकारी उदासीनता के कारण लटका हुआ है. फाइलों के मकड़जाल में उलङो इस अस्पताल का निर्माण कब तक प्रारंभ होगा, यह कहने की स्थिति में न तो सरकार के अधिकारी हैं और न ही नगर निगम के अधिकारी.
अक्तूबर 2014 में कैबिनेट की बैठक में ही अपोलो प्रबंधन को टोकन मनी (एक रुपये) में जमीन देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी जा चुकी थी, परंतु निगम के पास लीज एग्रीमेंट से संबंधी कोई भी निर्देश सरकार के द्वारा नहीं दिये जाने के कारण अब तक अपोलो से निगम एग्रीमेंट नहीं कर पाया है.2.81 एकड़ में बनता अस्पताल : रांची नगर निगम का घाघरा में 2.81 एकड़ जमीन है. निगम यहां अस्पताल निर्माण को लेकर अपोलो ग्रुप से पांच सालों से प्रयासरत था.
वर्ष 2014 के अगस्त-सितंबर माह में सारी प्रक्रिया पूरी करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपोलो ग्रुप को एलओए(लेटर ऑफ अवार्ड) भी दिया था. बाद में निगम के अत्यधिक लीज रेंट को लेकर अपोलो ने अस्पताल निर्माण में असमर्थता जतायी थी. जिस पर सरकार ने कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर एक रुपये में जमीन देने की घोषणा की थी.
100 करोड़ से बनता अपोलो अस्पताल
निगम की इस जमीन पर अपोलो 100 करोड़ की लागत से अत्याधुनिक अस्पताल का निर्माण कराता. इस अस्पताल में अत्याधुनिक मशीनों से गंभीर से गंभीर बीमारियों का इलाज होता. इसके अलावा अस्पताल प्रबंधन यहां राज्य के बीपीएल मरीजों को इलाज में रियायत देने के अलावा अपनी कमाई का 0.5 प्रतिशत निगम को भी देता.

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