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अवैध डिपो करवा रहे कोयला चोरी

रांची: कोलियरियों से बड़े पैमाने पर कोयला चोरी पर अंकुश लगने के बाद अवैध कोयला कारोबारियों/ गिरोहों ने कोयला चोरी का नया रास्ता खोज निकाला है. अब यह गिरोह ट्रक चालकों को मिला कर कोयला की चोरी कर रहा है. हर दिन पांच लाख की कमाई : इसके लिए सड़क किनारे सुनसान स्थान पर कोयला […]

रांची: कोलियरियों से बड़े पैमाने पर कोयला चोरी पर अंकुश लगने के बाद अवैध कोयला कारोबारियों/ गिरोहों ने कोयला चोरी का नया रास्ता खोज निकाला है. अब यह गिरोह ट्रक चालकों को मिला कर कोयला की चोरी कर रहा है.

हर दिन पांच लाख की कमाई : इसके लिए सड़क किनारे सुनसान स्थान पर कोयला डिपो तक बना दिया गया है. इसी डिपो में ट्रक को घुसा दिया जाता है, कोयला उतार लिया जाता है और उसकी जगह पत्थर, घटिया कोयला भर दिया जाता है, ताकि कोयले लदे ट्रक का कुल वजन नहीं घटे. यह पूरा धंधा पुलिस की जानकारी में होता है. एक अंदाज के मुताबिक, इस कोयला चोरी का हिस्सा पांच जिलों के थानों में बंटता है. इससे पुलिस को हर दिन लगभग पांच लाख की कमाई होती है. इस धंधे में शामिल ड्राइवर, लाइन होटल, छोटी कंपनियों व धंधा चलानेवाले गिरोह की आय अलग है.

कुछ जगहों पर बड़े पुलिस अधिकारियों के दबाव में छापामारी की गयी तो इस मामले का खुलासा हुआ. खबर यह है कि सड़क किनारे बने ढाबों के अलावा कुछ छोटी-छोटी कंपनियां भी हैं, जो यह कोयला खरीदती है. बड़ी कंपनियों के लिए चला कोयला चोरी कर छोटी-छोटी कंपनियों को भेज दिया जाता है. खलारी, रामगढ़, लातेहार व पलामू से कोयला ट्रक से आदित्यपुर, गम्हरिया और चांडिल इलाके में लाया जाता है. ट्रक चालकों की मिलीभगत से बीच रास्ते में पड़ने वाले होटलों में कोयला उतार लिया जाता है. फिर उसे सड़क किनारे बने डिपो में जमा किया जाता है. डीपो से कंपनियों और ईंट-भट्ठों को चोरी का कोयला कम कीमत पर बेचा जाता है.

काम ठप, योजनाएं लटकी
हेमंत सोरेन की सरकार ने 13 जुलाई को कार्यभार संभाला था. सरकार बने 16 दिन हो गये. पर अब तक मंत्रिमंडल का गठन नहीं हो सका है. मंत्रियों के नाम ही तय नहीं हो पाये हैं. मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव की भी नियुक्ति नहीं हो पायी है. इससे सरकार का काम ठप है. विभागों में फाइलों का मूवमेंट करीब-करीब बंद हो गया है. इससे पहले मंत्रिमंडल के विस्तार और प्रधान सचिव की नियुक्ति में कभी इतनी देर नहीं हुई थी.

रांची: झारखंड में अब तक मंत्रिमंडल का गठन नहीं होने से चालू वित्तीय वर्ष की नयी योजनाओं को स्वीकृति नहीं मिल पा रही है. विभागों में फाइलों का मूवमेंट लगभग बंद है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और मंत्री राजेंद्र सिंह व अन्नपूर्णा देवी ने 13 जुलाई को शपथ ली थी. 16 दिन गुजर गये, पर नौ अन्य मंत्रियों का चयन नहीं हो सका है. मुख्यमंत्री और दोनों मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा भी नहीं हुआ है. यहां तक की अब तक प्रधान सचिव की नियुक्ति भी नहीं हो सकी है. इससे सचिवालय का कामकाज प्रभावित हो रहा है. चालू वित्तीय वर्ष के दौरान निर्धारित करीब 500 करोड़ रुपये की नयी योजनाओं पर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है. अधिकारी असमंजस में हैं. विभागों में भी केवल संभावित मंत्री पर चर्चा हो रही है.

नहीं हो पा रहा नीतिगत निर्णय
राज्य में लागू कार्यपालिका नियमावली के तहत 10 करोड़ तक की नयी योजनाओं को विभाग अपने ही स्तर से क्रियान्वित कर सकता है. इसके लिए विभागीय मंत्री की सहमति आवश्यक है. 10-20 करोड़ की योजनाओं पर विकास आयुक्त की अध्यक्षता में गठित समिति की सहमति के बाद इसे विभाग अपने स्तर के क्रियान्वित कर सकता है. 20 करोड़ से अधिक की योजनाओं को कैबिनेट की सहमति के बाद विभाग क्रियान्वित कर सकता है. पर विभागों में अभी मंत्री ही नहीं हैं. इससे इन योजनाओं से संबंधित काम ठप है. साथ ही चालू वित्तीय वर्ष के दौरान जिन सामान्य नीतिगत निर्णयों पर विभागीय मंत्री या मुख्यमंत्री की सहमति आवश्यक है, वैसी फाइलों का मूवमेंट भी पूरी तरह ठप हो गया है.

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