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पूर्व मंत्री योगेंद्र साव ने शिकायतकर्ता को बनाया था अतिथि
शकील अख्तर रांची : रंगदारी का मुकदमा वापस कराने के लिए तत्कालीन कृषि मंत्री योगेंद्र साव ने शिकायतकर्ता को अपना अतिथि बनाया था. इस काम में कुछ पुलिसवालों ने भी उनकी मदद की थी. पर, आपराधिक गिरोह चलाने के आरोप में जेल जाने की वजह से मंत्री की यह योजना विफल हो गयी. तत्कालीन कृषि […]
शकील अख्तर
रांची : रंगदारी का मुकदमा वापस कराने के लिए तत्कालीन कृषि मंत्री योगेंद्र साव ने शिकायतकर्ता को अपना अतिथि बनाया था. इस काम में कुछ पुलिसवालों ने भी उनकी मदद की थी. पर, आपराधिक गिरोह चलाने के आरोप में जेल जाने की वजह से मंत्री की यह योजना विफल हो गयी.
तत्कालीन कृषि मंत्री ने रंगदारी मांगने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करानेवाले वीरेंद्र प्रसाद राय को अतिथि बनाया था. बताया जाता है कि वीरेंद्र को बिहार से डरा धमका कर रांची लाया गया था और हटिया स्टेशन रोड के पार्क इन नामक होटल में ठहराया गया था. उसके लिए होटल का 209 नंबर कमरा बुक कराया गया था.
होटल के बिल में राय को मंत्री के अतिथि के रूप में दर्शाया गया है. होटल में ठहराने के बाद मंत्री के करीबी लोगों ने उससे अदालत में ऐसा बयान दर्ज कराने का सुझाव दिया, जिससे मंत्री आरोप मुक्त हो सकें. इस काम को अंजाम देने के लिए राय का बयान दर्ज कराने के बाद उससे पूछे जानेवाले ऐसे सवाल और जवाब भी तैयार किये गये थे, जिससे मंत्री आरोप मुक्त हो सकें. पर इसी बीच मंत्री के जेल चले जाने की वजह से रंगदारी के मुकदमे से आरोप मुक्त होने के लिए बनायी गयी योजना अधूरी रह गयी. योगेंद्र साव पर पहले से न्यायालय में दो मामले चल रहे थे.
इनमें से एक मामला सरकारी काम में बाधा पहुंचाने और दूसरा रामगढ़ स्पंज आयरन कंपनी से रंगदारी मांगने का है. रंगदारी मांगने की प्राथमिकी कंपनी के तत्कालीन मैनेजर वीरेंद्र राय ने दर्ज करायी थी. वह फिलहाल बिहार में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं. योगेंद्र साव ने मंत्री बनने के बाद इन दोनों मुकदमों को वापस कराने की कोशिश शुरू की थी. गृह विभाग ने इस मामले में हजारीबाग के उपायुक्त से रिपोर्ट भी मांगी थी.
डीसी ने हजारीबाग न्यायालय में मुकदमे की पैरवी कर रहे सरकारी वकील की राय सरकार के पास भेजी भी. इसमें सरकारी वकील ने राय देते हुए सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का उदाहरण दिया था, जिसमें यह कहा गया था कि राज्य सरकार ऐसे मुकदमे जनहित और राज्य हित में ही वापस ले सकती है. साथ ही फैसला लेने की जिम्मेवारी सरकार पर डाल दी थी. इस मामले में विधि विभाग ने भी अपनी राय देते हुए रंगदारी के मुकदमे को वापस लेने पर असहमति जतायी थी.
विधि विभाग की राय के बाद अंतिम निर्णय के लिए इस मामले को मुख्यमंत्री के पास भेज दिया गया था. मुख्यमंत्री द्वारा मुकदमा वापस लेने की सहमति नहीं देने की संभावनाओं देखते हुए कृषि मंत्री ने शिकायतकर्ता को बल प्रयोग कर और समझा कर अपने पक्ष में करने की नाकाम योजना बनायी थी.
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