रांची: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करानेवाली मोबाइल मेडिकल यूनिट (एमएमयू या मोबाइल बस) की सेवा ठप हो गयी है. बस संचालक गैर सरकारी संस्थाओं को चार माह से भुगतान नहीं हुआ है. नतीजतन बसें बेकार खड़ी हैं या फिर कागजों पर इन्हें संचालित बताया जा रहा है. रांची व कुछ अन्य जिलों में ही इक्का-दुक्का बसों के संचालन की सूचना है. एक गैर सरकारी संस्था प्रतिनिधि के अनुसार एमएमयू के नहीं चलने से ग्रामीण मरीजों का इलाज नहीं हो रहा. बरसात के इन दिनों में जब मलेरिया, डायरिया व वायरल फीवर सहित अन्य बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है, बसों का नहीं चलना महंगा पड़ रहा है. इधर, स्वास्थ्य विभाग व सिविल सजर्न इस पूरे प्रकरण में उदासीन बना हुआ है. कुल संचालित 99 बसों में से 70 से अधिक बसों में दवाएं नहीं है. संविदा पर कार्यरत डॉक्टर भी कन्नी काट रहे हैं.
क्या है परेशानी : दरअसल केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2012-13 की समाप्ति पर यह घोषणा की कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत संचालित मोबाइल हेल्थ सर्विस की बसों को एक खास रंग व डिजाइन में रंगना होगा. केंद्र ने निर्देश दिया कि बसों पर हिंदी, अंगरेजी व स्थानीय भाषा में एमएमयू लिखा जाना चाहिए. वहीं इस पर एनआरएचएम के तहत संचालन संबंधी सूचना दी जानी चाहिए. केंद्र ने बसों के नये स्वरूप की तसवीर भी मुहैया करायी. बसों पर स्टीकर लगाने का काम राज्य सरकार (सिविल सजर्नों) को करना है.
बजट आवंटन बाद में : केंद्र सरकार ने यह शर्त रखी है कि सभी एमएमयू को अपेक्षित रंग-रूप में ला कर इसकी रिपोर्ट उसे सौंपी जाये. इसी के बाद वह बसों के संचालन मद का बजट पास करेंगी. इधर, झारखंड में गत चार महीने से यह काम पूरा ही नहीं हुआ है. इससे केंद्र ने राज्य सरकार को बस संचालन मद का बजट आवंटित नहीं किया है. इसी वजह से एनजीओ को भुगतान (प्रति माह 1.80 लाख) भी बंद है.
कुल 99 बसें : राज्य के विभिन्न जिलों के लिए कुल 103 मोबाइल हेल्थ सर्विस बसें (एमएमयू) मुहैया करायी गयी थी. इनमें से कुछ बसें खराब हैं या अन्य कारणों से खड़ी हैं. इस तरह विभिन्न जिलों में अभी 99 बसें ही संचालित हैं.